कहानियाँ

भ्रांत धारणा



एक व्यक्ति हर रोज तालाब के किनारे घूमने जाता था. पानी में उसकी परछाईदिखाई पड़ती थी. तालाब में बहुत सारीमछलियाँ रहा करती थी. एक मछली ने एक दिन उस व्यक्ति के प्रतिबिम्ब को पानी में देखा तो उसे सर नीचे और पाँव ऊपर नज़र आये. वह हर रोज ऐसा ही देखती थी इसलिए उसने यह दृढ़ धारणा बना ली कि आदमी एक ऐसा प्राणी है जिसका सर नीचे और पाँव ऊपर होते हैं.एक दिन वह मछली पानी की सतह पर आई. आज उसने कुछ और ही देखा. आज उसे आदमीका सर ऊपर और पाँव नीचे दिखाई दिए. मछली ने सोचा कि यह व्यक्ति जरुर शीर्षासन कर रहा है क्योंकि वैसे तो आदमी का सर नीचे और पाँव ऊपर होते हैं. यह उस मछली की भ्रांत धारणा थी. पर यहाँ स्थिति केवल उस मछली की नहीं हम सब की है.


सुख और दुःख


हकीम लुकमान का बचपन बहुत अभावों में गुजरा था. अपने भरण-पोषण के लिए उन्हें गुलामी भी करनी पड़ी. एक बार उनके मालिक ककड़ी खाना चाहते थे. लुकमान उनके लिए ककड़ी ले आये. मालिकने जैसे ही ककड़ी को चखा उन्हें पता चला कि वह तो बहुत कड़वी है. मालिक नेककड़ी लुकमान को देते हुए कहा, ‘इसे तू खा ले.’लुकमान ने मालिक से ककड़ी ली और बिनामुंह बिचकाए आराम से ककड़ी खा ली. मालिक को बहुत आश्चर्य हुआ. वे तो सोच रहे थे कि लुकमान इसे नहीं खायेगा और फेंक देगा. पर जब लुकमान ने आराम से पूरी ककड़ी खा ली तो मालिक ने पूछा, ‘तूने इतनी कड़वी ककड़ी कैसे खा ली ?’लुकमान हँसते हुए बोले, ‘ मालिक, आप हर रोज मुझे इतना स्वादिष्ट भोजन खिलाते हैं. जिसे मैं आनंद से खाता हूँ तो अगर एक दिन आपने कड़वी ककड़ी दे भी दी तो क्या मैं उसे नहीं खा सकता ? मैंने इसे भी और चीजों की तरहही अच्छा मानकर खा लिया.’मालिक बहुत समझदार और दयालु थे. लुकमान की बात को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, ‘ तुमने आज मुझे जीवन का एक बहुत बड़ा सत्य बताया है. ईश्वर हमें खुश होने के कई कारण देता है. इसलिए अगर कभी दुःख भी आये तो हमें हर्ष से उसे स्वीकार करना चाहिए. तभी हमारा जीवन सार्थक होगा.जाओ आज से तुम गुलामी से मुक्त हो.

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