सच्चा दोस्त बाल कहानी

स्कूल से लौटते समय अशोक ने अपने मित्र रमन से कहा --"यार मैंने ताश का एक नया खेल सीखा है.. उसे तीन पत्ती कहते हैं, तुम्हें आता है ?'"नहीं।'"अरे यार बहुत आसान है। मैं तुम्हें सिखा दूँगा। इस बार दीपावली के दिन हम लोग यह गेम पैसों से खेलेंगे, बहुत मजा आएगा।'"अशोक मैंने कभी ताश नहीं खेले इसीलिए मुझे ताश का कोई खेल नहीं आता और ना ही मैं सीखना चाहता हूँ। वैसेभी जो खेल पैसों से खेला जाए उसे जुआ कहते हैं और मैं जुआ नहीं खेलता।'"रमन तू मेरा कैसा दोस्त है ?...तुझ से रोज खेलने को नहीं कह रहा, हम तो बस दीपावली के दिन खेलेंगे। अरे यार इस एक दिन जुआ खेलने की छूट तो हमारे परिवार में मिलती है।'इस एक दिनकी छूट ने ही बहुत लोगों को जुआरी बना दिया है। हरेक का स्वयं पर इतना नियंत्रण नहीं होता। एक बार ये चस्का लगजाए तो जिंदगी भर नहीं छूटता। बाबाजी के जमाने में हमारे परिवार में सभी को दीपावली के दिन जुआ खेलनेकी छूट मिली हुई थी। मेरे एक चाचा को तो ताश मेंरुचि नहीं थी। एक दीपावली पर परिवार में सदस्यों की संख्या कम होने की वजह से ताश खेलने में मजा नहीं आ रहा था तो बाबा जी ने चाचा को भी खेलने के लिए जबरन बैठा लिया। चाचा उस दिन खूब जीते और तब से उन्हें इस खेलका ऐसा चस्का लगा, जो अब तक नहीं छूटा है। पहले वह दोस्तों में टाइम पास करने के लिए खेलते थे फिर पैसों से खेलना शुरू किया। अब तो वे पक्के जुआरी बन चुके हैं। अपनी कमाई का अधिकांश पैसा जुए में उड़ा देते हैं। चाचीबहुत दुखी रहती हैं। चाचा तो स्पष्ट कहते हैं कि मुझे ये चस्का घर वालों ने ही लगाया है। तब से हमारे परिवार में दीपावली के दिनकोई ताश भी नहीं खेलता।'"लेकिन रमन, मैं इतना नादान नहीं हूँ। मेरा स्वयं पर बहुत नियंत्रण है। हम बस एक दिन खेलेंगे।'"नहीं अशोक, न मैं खेलूँगा न तुम्हें खेलने दूँगा।'"देखो दोस्त तुम खेलो या मत खेलो, तुम्हारी मर्जी पर मैं तो खेलूँगा।'"अपने यार की एक छोटी सी बात नहीं मानेगा अशोक ? '"तुम भी तो मेरी बात नहीं मान रहे।'"मेरी बातसमझने की कोशिश करो अशोक। जुआ खेलना गलत है, अपराध भी है। ये हमें गलत राह पर ले जा सकता है। सच्ची दोस्ती का मतलब यह नहीं है कि अपने दोस्त की गलत बात में भी साथ दिया जाए। सच्चा दोस्त वह है, जोअपने दोस्त के गलत राह पर बढ़ते कदमों को रोकने की कोशिश करे।'"तुम तो मुझे उपदेश देने लगे। मैं अपना अच्छा-बुरा समझता हूँ। यह खेल मैंने अपने मोहल्ले के लड़कों से ही सीखा है। दीपावली के दिन मैं तुमको वहाँ ले जाना चाहता था। तुम नहीं जानाचाहते तो तुम्हारी इच्छा, मैं तो जाऊँगा। तुम से उम्मीद रखता हूँ कि मेरे मम्मी-पापा को इस विषय में कुछ नहीं बताओगे।'"दीपावली के दिन अशोक की मम्मी रमन के घर आर्इं और पूछा, "अशोक तुम्हारे साथ है क्या ?'"नहीं आंटी मुझे आज सुबह से अशोक नहीं मिला है।'"बता सकते हो कि कहाँ होगा? घर पर दिवाली का इतना काम पड़ा है.. बाजार से सामान मँगानाहै लेकिन उसका पता ही नहीं है कि कहाँहै ?'रमन ने अंदाजा लगाया कि जरूर वह लड़कों के साथ जुआ खेल रहा होगा। उसने अशोक की मम्मी को कुछ भी नहीं बताया और कहा- "आंटी आप घर जाएँ। मैं उसे ढूँढ़ कर अभी लाता हूँ।'दो-तीन जगह पूछने पर अशोक के ठिकाने का पता लग गया। रमन को आया देख कर अशोक चहक कर बोला --"यह हुई न दोस्तों वाली बात। तुम हमें एक-दो बाजी खेलते हुए देखो तो तुम्हें भी गेम समझ में आ जाएगा।'"मैं यहाँ गेम समझने नहीं आया हूँ। तुम्हारी मम्मी तुम्हें ढूँढ़रही है।'"तुमने मम्मी को मेरे बारे में कुछ बताया तो नहीं ?'"अभी तो नहीं बताया है... फौरनचलो वर्ना उन्हें सब बता दूँगा।'"नहीं ऐसा मत करना, मैं अभीचल रहा हूँ।'दोनों उस ठिकानेसे निकल कर थोड़ी दूर ही गए थे कि तभी उन्होंने कुछ पुलिसवालों को उधर जाते देखा।थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि अशोक के साथ जुआ खेलने वालों को पुलिस पकड़ कर ले जा रही थी।अपने साथियों को पुलिस की गिरफ्त में देखकर अशोक भय से थरथराने लगा और बोला-"रमन, तुमने मुझे बचा लिया दोस्त, आज तो गजब हो जाता। मैं मम्मी-पापा को मुँह दिखाने लायक नहीं रहता। तुमने ठीक कहा था कि सच्चा दोस्तवही है, जो सही राह दिखाए। अब मैं यह खेल कभी नहीं खेलूँगा।

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