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Showing posts from August, 2015

यदि आप प्राइवेट स्कूलों कि मनमानी से परेशान हैं

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आप शिकायत कर सकते है इस मेल ई. डी पर

गन्दा तालाब

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फ्रेडी मेंढक एक तालाब के पास से गुजर रहा था , तभी उसे किसी की दर्द भरी आवाज़ सुनाई दी . उसने रुक के देखा तो फ्रैंक नाम का एक मेंढक उदास बैठा हुआ था . ” क्या हुआ , तुम इतने उदास क्यों हो ?” , फ्रेडी ने पुछा . ” देखते नहीं ये तालाब कितना गन्दा है …यहाँ ज़िन्दगी कितनी कठिन है ,” फ्रैंक ने बोलना शुरू किया , “पहले यहाँ इतने सारे कीड़े-मकौड़े हुआ करते थे …पर अब मुश्किल से ही कुछ खाने को मिल पाता है …अब तो भूखों मरने की नौबत आ गयी है .” फ्रेडी बोला , ” मैं करीब के ही एक तालाब में रहता हूँ , वो साफ़  है और वहां बहुत सारे कीड़े -मकौड़े भी मौजूद हैं , आओ तुम भी वहीँ चलो .” ” काश यहाँ पर ही खूब सारे कीड़े होते तो मुझे हिलना नहीं पड़ता .”, ” फ्रैंक मायूस होते हुए बोला . फ्रेडी ने समझाया , “लेकिन अगर तुम वहां चलते हो तो तुम पेट भर के कीड़े खा सकते हो !” ” काश मेरी जीभ इतनी लम्बी होती कि मैं यहीं बैठे -बैठे दूर -दूर तक के कीड़े पकड़ पाता …और मुझे यहाँ से हिलना नहीं पड़ता ..”, फ्रैंक हताश होते हुए बोला . फ्रेडी ने फिर से समझाया , ” ये तो तुम भी जानते हो कि तुम्हारी जीभ कभी इतनी लम्बी

सच्ची मदद

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एक नन्हा परिंदा अपने परिवार-जनों से बिछड़ कर अपने आशियाने से बहुत दूर आ गया था । उस नन्हे परिंदे को अभी उड़ान भरने अच्छे से नहीं आता था… उसने उड़ना सीखना अभी शुरू ही किया था ! उधर नन्हे परिंदे के परिवार वाले बहुत परेशान थे और उसके आने की राह देख रहे थे । इधर नन्हा परिंदा भी समझ नहीं पा रहा था कि वो अपने आशियाने तक कैसे पहुंचे? वह उड़ान भरने की काफी कोशिश कर रहा था पर बार-बार कुछ ऊपर उठ कर गिर जाता। कुछ दूर से एक अनजान परिंदा अपने मित्र के साथ ये सब दृश्य बड़े गौर से देख रहा था । कुछ देर देखने के बाद वो दोनों परिंदे उस नन्हे परिंदे के करीब आ पहुंचे । नन्हा परिंदा उन्हें देख के पहले घबरा गया फिर उसने सोचा शायद ये उसकी मदद करें और उसे घर तक पहुंचा दें । अनजान परिंदा – क्या हुआ नन्हे परिंदे काफी परेशान हो ? नन्हा परिंदा – मैं रास्ता भटक गया हूँ और मुझे शाम होने से पहले अपने घर लौटना है । मुझे उड़ान भरना अभी अच्छे से नहीं आता । मेरे घर वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे । आप मुझे उड़ान भरना सीखा सकते है ? मैं काफी देर से कोशिश कर रहा हूँ पर कामयाबी नहीं मिल पा रही है । अन

दोस्ती की आग

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अली नाम के एक लड़के को पैसों की सख्त ज़रुरत थी . उसने अपने मालिक से मदद मांगी . मालिक पैसे देने को तैयार हो गया पर उसने एक शर्त रखी . शर्त ये थी कि अली को बिना आग जलाये कल की रात पहाड़ी की सबसे ऊँची चोटी पर बितानी थी , अगर वो ऐसा कर लेता तो उसे एक बड़ा इनाम मिलता और अगर नहीं कर पाता तो उसे मुफ्त में काम करना होता . अपने काम, अपने कथन और अपने मित्र के प्रति सच्चे रहिये…. अली जब दुकान से निकला तो उसे एहसास हुआ कि वाकई कड़ाके की ठण्ड पड़ रही है और बर्फीली हवाएं इसे और भी मुश्किल बना रही हैं . उसे मन ही मन लगा कि शायद उसने ये शर्त कबूल कर बहुत बड़ी बेवकूफी कर दी है . घबराहट में वह तुरंत अपने दोस्त आदिल के पास पहुंचा और सारी बात बता दी . आदिल ने कुछ देर सोचा और बोला , “ चिंता मत करो , मैं तुम्हारी मदद करूँगा . कल रात , जब तुम पहाड़ी पर होगे तो ठीक सामने देखना मैं तुम्हारे लिए सामने वाली पहाड़ी पर सारी रात आग जल कर बैठूंगा . तुम आग की तरफ देखना और हमारी दोस्ती के बारे में सोचना ; वो तुम्हे गर्म रखेगी। और जब तुम रात बिता लोगे तो बाद में मेरे पास आना , मैं बदले में तुमसे कुछ लूंगा .” अ

लघु कहानी

अक्ल के अंधे प्रवीण कुमार के एक मित्र हैं--- हितैषी राय . कुछ-एक लोगों के साथ मिलकर उन्होंने एक कल्याणकारी संस्था बनायी. संस्था का नाम रखा -- 'जन कल्याण.' हालांकि उनकी संस्था छोटी है , लेकिन उनकी भावी योजनाएं बड़ी हैं. फिलहाल उनकी योजना एक अनाथालय भवन निर्माण की है . एक दिन हितैषी राय दान लेने के लिए प्रवीण के पास गए. बोले- "प्रवीण जी, आप मेरे परम मित्र हैं. हमारे शुभ कार्य अनाथालय के भवन-निर्माण के लिए दिल खोलकर दान दीजिए और दान देने के लिए अपने सेठ मित्रों के नाम भी सुझाइए." दान देने के बाद प्रवीण कुमार ने नगर के उद्योगपति गिरधारी लाल का नाम सुझाया और बात-बात में यह भी बता दिया -- "गिरधारी लाल ऎसी तबियत के शख्स हैं कि दान देने के लिए उन्हें किसी मित्र के सिफारिशी ख़त की ज़रूरत नहीं पड़ती. दूसरे दिन ही हितैषी राय अपने कुछ साथियों के साथ दान लेने के लिए गिरधारी लाल के पास पहुंच गये. रास्ते में उन्होंने अपने सथियों को सावधान कर दिया --'हमें गिरधारी लाल से यह कहने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है कि दान लेने के लिए प्रवीण कुमार ने हमे आपके पास भेजा है. ख

लघुकथाएं

अपने–अपने सन्दर्भ इस भयंकर ठंड में भी वेद बाबू दूध वाले के यहाँ मुझसे पहले बैठे मिले। मंकी कैप से झाँकते उनके चेहरे पर हर दिन की तरह धूप–सी मुस्कान बिखरी थी। लौटते समय वेदबाबू को सीने में दर्द महसूस होने लगा। वे मेरे कंधे, पर हाथ मारकर बोले–‘‘जानते हो, यह कैसा दर्द है?’’मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना मद्धिम स्वर में बोले–‘‘यह दर्दे–दिल है। यह दर्द या तो मुझ जैसे बूढ़ों को होता है या तुम जैसे जवानों को।’’ मैं मुस्करा दिया। धीरे–धीरे उनका दर्द बढ़ने लगा। ‘‘मैं आपको घर तक पहुँचा देता हूँ।’’ मोड़ पर पहुँचकर मैंने आग्रह किया–‘‘आज आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही है।’’ ‘‘तुम क्यों तकलीफ करते हो? मैं चला जाऊँगा। मेरे साथ तुम कहाँ तक चलोगे? अपने वारण्ट पर चित्रगुप्त के साइन होने भर की देर है।’’ वेद बाबू ने हंसकर मुझको रोकना चाहा। मेरा हाथ पकड़कर आते हुए वेदबाबू को देखकर उनकी पत्नी चौंकी–‘‘लगता है आपकी तबियत और अधिक बिगड़ गई है? मैंने दूध लाने के लिए रोका था न?’’ ‘‘मुझे कुछ नहीं हुआ। यह वर्मा जिद कर बैठा कि बच्चों की तरह मेरा हाथ पकड़कर चलो। मैंने इनकी बात मान ली।’’ वे हँसे उनकी पत्नी

लघुकथाएं

मुखौटा नेताजी को चुनाव लड़ना था। जनता पर उनका अच्छा प्रभाव न था। इसके लिए वे मुखौटा बेचने वाले की दूकान में गए। दूकानदार ने भालू, शेर, भेडिए,साधू–संन्यासी के मुखौटे उसके चेहरे पर लगाकर देखे। कोई भी मुखौटा फिट नहीं बैठा। दूकानदार और नेताजी दोनों ही परेशान। दूकानदार को एकाएक ख्याल आया। भीतर की अँधेरी कोठरी में एक मुखौटा बरसों से उपेक्षित पड़ा था। वह मुखौटा नेताजी के चेहरे पर एकदम फिट आ गया। उसे लगाकर वे सीधे चुनाव–क्षेत्र में चले गए। परिणाम घोषित हुआ। नेताजी भारी बहुमत से जीत गए। उन्होंने मुखौटा उतारकर देखा। वे स्वयं भी चौंक उठे–वह इलाके के प्रसिद्ध डाकू का मुखौटा था। >>>>>>>>>>>>>>>>>> दूसरा सरोवर एक गाँव था। उसी के पास में था स्वच्छ जल का एक सरोवर। गाँव वाले उसी सरोवर का पानी पीते थे। किसी को कोई कष्ट नहीं था। सब खुशहाल थे। एक बार उजले–उजले कपड़े पहनकर एक आदमी गाँव में आया। उसने सब लोगों को मुखिया की चौपाल में इकट्ठा करके बहुत अच्छा भाषण दिया। उसने कहा–‘‘सरोवर आपके गाँव में एक मील की दूरी पर है। आप लोगों को पानी ल

लघुकथाएं

धारणा मैं इस शहर में बिल्कुल अनजान था । काफी भाग–दौड़ करके किसी तरह पासी मुहल्ले में एक मकान खोज सका था । परसों ही परिवार शिफ्ट किया था । बातों ही बातो में ऑफिस में पता चल गया कि मैं अपना परिवार पासी मुहल्ले में शिफ्ट कर चुका हूँ। बड़े साहब चौंके–’’ आप सपरिवार इस मुहल्ले में रह पाएँगे ?’’ ‘‘क्या कुछ गड़बड़ हो गई सर ?’’ मैने हैरान होकर पूछा । ‘‘बहुत गन्दा मुहल्ला है । यहॉं आए दिन कुछ न कुछ होता रहता है । सॅंभलकर रहना होगा ।’’ साहब के माथे पर चिन्ता की रेखाएँ उभरी–‘‘यह मुहल्ला गंदे मुहल्ले के नाम से बदनाम है । गुडागर्दी कुछ ज्यादा ही है ।’’ मैं अपनी सीट पर आकर बैठा ही था कि बड़े बाबू आ पहुचे–‘‘सर आपने मकान गंदे मुहल्ले में लिया है ?’’ ‘‘लगता है मैने ठीक नही किया है ’’–मैं पछतावे के स्वर में बोला । ‘‘हाँ सर,ठीक नहीं किया । यह मुहल्ला रहने लायक नहीं है । जितनी जल्दी हो सके, मकान बदल लीजिए उन्होंने अपनी अनुभवी आँखें मुझ पर टिका दीं । इस मुहल्ले में आने के कारण मैं चिन्तित हो उठा । घर के सामने पान–टॉफी बेचने वाले खोखे पर नजर गई । खोखे वाला काला–कलूटा मुछन्दर एक दम छॅंटा हुआ गुण

लघु कथा अच्छा किया

बहुत दिनों बाद एक अच्छी काम वाली पा कर तनाव मुक्त हो गई थी।पर रोज सुबह आठ बजे तक आ जाने वाली लक्ष्मी दस बजे तक नहीं आइ थी...मैने बर्तन मॉजना शुरू ही किया था कि सिर पर पट्टी बाँधे वह सामने खड़ी थी -- -"हटो अम्मा हम साफ करते ' "अरे ये क्या हुआ... कहीं गिर गई क्या ?' "नही अम्मा ..... रात में वो बच्चियों का नान्ना ( पिता ) गाँव से आया,वोइच झगड़ा किया।' "उसी ने मारा ?' "हौ अम्मा' "क्यों मारा ?' "अब क्या बोलूं अम्मा। एक छोटी सी कोठरी मे हम लोगाँ रहते,बाजू मे दो जवान बेटियाँ सोतीं। उसको नजदीक नही आने दी ... तो बोत गुस्से मे आ गिया...बच्चियों की भी शरम नही किया, बोला- "बहनो के मरद से काम चल जाता हुँगा, अब अपने मरद की क्या जरूरत'...दिल तो किया अम्मा कि उसका मुँह नोच लूँ पर बच्चियो के कारण मुँह सिल ली। मेरे कु उसका आना जरा भी पसंद नहीं ।' "लक्ष्मी तेरा मरद है, तुझ से शादी की है उसने.. तेरे पास नही आयेगा तो किस के पास जायेगा ?' "अरे अम्मा उसका चरित्तर आप को नहीं मालुम ,सारे ऐब हैं उसमें फिर

माध्यम

Wednesday, July 1, 2015 प्रशासनिक अधिकारी सुभाष ने खिड़की के बाहर देखते हुए अपनी पत्नी से कहा-- "स्मृति सुनो कुछ लोग गेट से अंदर आ रहे हैं,मुझे पूछें तो कह देना घर पर नहीं हैं।' "ठीक है ' "हाँ कहिये...किस से मिलना है ?' "मैडम हम सुजाता स्कूल से आए हैं ।पुरस्कार वितरण सामारोह में मुख्य अतिथि बनाना चाहते हैं।' "लेकिन मेरे पति तो अभी घर पर नहीं हैं।' "हम आपको अतिथि बनाना चाहते हैं।' "अरे नहीं मुझे ऐसे प्रोग्रामों से क्या लेना देना।मैं तो एक घरेलू महिला हूँ।मेरे पति एक अधिकारी हैं  ,बनाना है तो उन्हें बनाऐ।' "हर कामयाब पति की सफलता के पीछे उसकी पत्नी का हाथ होता है।...आप अपने को कम मत आँकिए ।हम सब आपको ही मुख्य अतिथि बनाने की इच्छा ले कर आये हैं।' "ठीक है मुझे तारीख और समय बता दीजिये .  एक-दो दिन का समय भी दें यदि उस दिन मैं फ्री हुई तो आपको फोन पर स्वीकृति दे दूँगी ।' "थैक्यू मैडम हम परसों इसी टाइम आपको फोन कर लेंगे।'- कह कर वह लोग चले गए । पति ने राहत की साँस लेते हुए कहा--&qu

दो नुकसान

आते ही कामवाली मनोरमा  बोली ---    "अम्मा सरकार का दिमाग खराब हो गया है क्या ?'' "क्या हुआ मनोरमा, बहुत परेशान दिख रही हो ?'' "अरे अम्मा होना क्या है ?...आप को तो मालुम मेरे दोनो लड़के एक फैक्ट्री में काम करते हैं पर अब मालिक काम से हटाता बोलरा।'' "क्यों ?'' "बोलरा छोटे बच्चों से काम कराना अपराध है।जो लोग ऐसा करेंगे उन को पुलिस पकड़ लेगी,फिर उन्हें सजा भी हो सकती है ।'' "हाँ सरकार बाल मजदूरी के खिलाफ कानून बनाया तो है । उनका कहना है कि कम मजदूरी दे कर बच्चों से बहुत काम लिया जाता हैं और उन्हें अभी पढ़ना चाहिए।'' "ये बात तो ठीक है अम्मा बच्चों से बहुत काम कराते हैं और मजदूरी बड़ो से आधी भी नहीं देते.. उनकी पगार बढ़ाने को कानून बनाये ,काम के घन्टे तय कर दें पर ये तो काम ही नहीं कराना बोल रए.. इस से दो नुकसान हैं अम्मा।'' "कौन से नुकसान हैं ?'' 'एक तो अम्मा बच्चे जो पगार लाते हैं वो बन्द हो जाएगी तो गुजारा कैसे होगा ?दूसरा बिना काम के वो करेंगे क्या ..इधर उधर आवारा घू

खेल खेल में

अंकुश स्कूल से लौटा तो मम्मी ने कहा --"बेटा अंकुश तीन दिन के लिए मुझे और तेरे पापा को मुंबई जाना है बुआ के यहाँ ,उनकी बेटी की सगाई है...तू चलेगा ?' "नहीं मम्मी परीक्षाए निकट आ रही हैं तो आजकल पढ़ाई का विशेष प्रेशर है...एक्सट्रा क्लासेज भी हो रही हैं।पर आप तीन दिन के लिए क्यों जा रही हैं।सफर एक रात का ही तो है।' "बेटा जा तो एक दिन के लिए भी सकती हूँ पर भागम भाग हो जाएगी ,साथ ही थकान भी ।वैसे भी फूफा जी के न रहने पर बुआ को आजकल मदद की जरूरत है। फिर सब से बड़ी बात उन्हों ने जल्दी आने का विशेष आग्रह भी किया है पर तुझे अकेला छोड़ने को मन नहीं कर रहा ।' "मम्मी जाना जरूरी हैं तो आप दोनो चले जाइए ।' "ठीक हैं बेटा कल रात को बस से जाना है।कल मैं तेरे लिए दो सब्जी और दाल बना कर रख दूँगी । रोटी बाहर से ले आना और दाल ,सब्जी जो खानी हो माइक्रोअवन में गरम कर लेना ।कभी बाहर खाने का मन हो तो बाहर खालेना । वैसे मला हुआ थोड़ा आटा भी रखा है पर तू रोटी बनाने के चक्कर में नहीं पड़ना और रात को सोते समय गैस नीचे से बन्द करना नहीं भूलना ।' "ठीक है

बताना जरुरी है

ग्यारहवीं क्लास में पढने वाली श्वेता ने कालेज जाते समय अपनी मम्मी से कहा -- “मम्मी आज मुझे कॉलेज से लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी .” “क्यों श्वेता ? “ ‘आज मेरी दोस्त मधु का जन्मदिन है ,इसलिए वह हमें पार्टी दे रही है .” “किसी होटल में ?” “नहीं माँ होटल तो बहुत मंहगा पड़ता है.हमारे कॉलेज के पास एक फ़ास्ट फ़ूड सेंटर है ,हम सभी को उसके आइटम टेस्टी भी लगते हैं और हमारी पसंद की सब चीजें वहां मिल जाती हैं .” “बेटा देख कर खाना .इस तरह के फ़ास्ट फ़ूड सेंटरों में सफाई का ध्यान कम रखा जाता है .” “माँ हम वहां बहुत बार खा चुके हैं.सभी दोस्त खास मौकों पर वहीँ पार्टी करते हैं.” शाम को श्वेता घर आई तो बोली – ‘माँ पेट में बहुत मरोड़ सा हो रहा है .लगता है उल्टी भी आएगी ..कहते कहते वह भाग कर टॉयलेट में चली गई .आवाज से पता चल रहा था कि वह उलटी कर रही है . “माँ लगता है आपका कहना सही हो गया ...लूज मोशन भी शुरू हो गए हैं.” “बेटा अब मैं क्या बोलूँ ... तुम लोग सुनते नहीं हो ...सुबह ही मैं ने तुम्हें बताया था... .  मेरे पास दवा है, जल्दी फायदा हो जायेगा .” तभी श्वेता की दोस्त रानी का फोन आगया – “

हिंदी कहानियाँ

मेहमान घर में आए मेहमान से मनु ने पूछा --"क्या पीएगें, गर्म या ठंडा?" "नही, कुछ नहीं." मेहमान ने अपनी मोटी गर्दन हिलाकर कहा. "कुछ तो चलेगा?" "कहा न कुछ नहीं." 'शराब?" "वो भी नहीं" "ये कैसे हो सकता है? आप हमारे घर में पहली बार पधारे हैं. कुछ तो चलेगा ही." मेहमान इस बार चुप रहा. मनु शिवास रीगल की महंगी शराब की बोतल अंदर से उठा लाया. मेहमान की जीभ लपलपा उठी पर उसने पीने से न कह दी. मनु के बार-बार कहने पर आखि़र उसने एक छोटा सा पैग लेना स्वीकार कर लिया. उस छोटे पैग का नशा मेहमान पर कुछ ऎसा तारी हुआ कि देखते ही देखते वो आधी से जिआदा बोतल खाली कर गया. मनु का दिल बैठ गया. मेहमान रुखसत हुआ. मनु मेज़ पर मुक्का मारकर चिल्ला उठा -- "मैंने तो इतनी महंगी शराब की बोतल उसके सामने रख कर दिखावा किया था लेकिन हरामी आधी से जिआदा गटक गया, गोया उसके बाप का माल था." वाह री लक्ष्मी "लक्ष्मी, देख लेना, एक दिन मेरा पांसा ज़रूर सीधा पड़ेगा. एक दिन मैं ज़रूर लॉटरी जीतूगां.तब मैं तुम्हें ऊपर से

बचत

मूसलाधार बारिश में विमला दौड़ी-दौड़ी सुकीर्ति के पास आयी. हांफते हुए बोली,”सुकीर्ति, कान्ले पार्क में सैन्स्बुरी सुपर स्टोर में बटर की सेल लगी है. ढाई सौ ग्राम की लारपाक बटर की टिकिया सिर्फ़ पचासी पेनिओं में. एक टिकिया के पीछे दस पेनिओं की छूट है. सुनहरी मौका है बटर खरीदने का. आ चलें खरीदने. ” स्टोक और कान्ले पार्क में पूरे छः मील का फासला . सुकीर्ति फिर भी तैयार हो गयी. विमला और सुकीर्ति अपने-अपने सिर पर छतरी ताने बस स्टॉप पर आ गयीं. कान्ले पार्क पहुंचने के लिए उन्होंने दो बसें पकड़ीं. पहले २७ नम्बर और फिर सिटी सेंटर से १२ नम्बर. दोनों ने डे ट्रिप टिकट लिया. लगभग दो घंटों के सफर के बाद वे कान्ले पार्क पहुंचीं. लोगों की भारी मांग के कारण विमला और सुकीर्ति पच्चीस-पच्चीस टिकियां ही खरीद पायीं. पच्चीस – पच्चीस टिकियों से दोनों को ढाई-ढाई पाउंड का लाभ हो गया था. दोनों खुश थीं. घर पहुंचते ही विमला और सुकीर्ति ने अपनी खुशी की वजह अपने पति्यों को बतायीं. पति बरस पड़े. “क्या खा़क ढाई-ढाई पाउंड की बचत की है तुम दोनों ने? अरे मूर्खों तुम दोनों बसों में फ्री तो गयी और आयी नहीं. ढाई-ढाई पा

वक्त वक्त की बात

सरिता अरोड़ा की देवेन्द्र साही से जान-पहचान कॉलेज के दिनों से है. कभी दोनों में एक-दूसरे के प्रति प्यार भी जागा था. आज देवेन्द्र साही का फ़िल्म उद्योग में बड़ा नाम है. उसने एक नहीं तीन-तीन हिट फिल्में दी हैं. उसकी फिल्में साफ़ -सुथरी होती हैं. सरिता अरोड़ा के मन में इच्छा जागी कि क्यों न वो अपनी रूपवती बेटी अरुणा को हेरोइन बनाने की बात देवेन्द्र से कहे. मन में इच्छा जागते ही उसने मुम्बई का टिकट लिया और जा पहुंची अपने पुराने मित्र के पास. देवेन्द्र साही सरिता अरोड़ा के मन की बात सुनकर बोला -- "ये फ़िल्म जगत है. इसके रंग-ढंग बड़े निराले हैं. सुनोगी तो दांतों में उंगलियां दबा लोगी. यहां हर हेरोइन को पारदर्शी कपड़े पहनने पड़ते हैं. कभी-कभी तो उसे निर्वस्त्र भी-----." तो क्या हुआ ? हम सभी कौन से वस्त्र पहन कर जन्मे थे? सभी इस संसार में नंगे ही तो आते हैं." सरिता अरोड़ा अपनी बात कहे जा रही थी और देवेन्द्र साही सोचे जा रहा था कि क्या यह वही सरिता अरोड़ा है जो अपने तन को पूरी तरह से ढक कर कॉलेज आया करती थी.

लघु कहानी पांच लघुकहानियां

अंतर रामप्रसाद बाबू के हाथों में बेटी राधा का पत्र था, जिसमें उसने लिखा था कि बाबूजी मकान खरीद रही हूं. एक लाख रुपये कम हैं, भेज दें. जैसे ही होंगे तुरंत वापस भेज दूंगी. रामप्रसाद बाबू सोच में पड़ गए. बेटी को धन देना तो चाहिए पर वापसी तो ठीक नहीं है. फिर दूसरा रास्ता क्या है? अंत में रामप्रसाद बाबू ने बेटी को पत्र लिखा - 'बेटी बहुत मजबूरी है कि तुम्हारी जरूरत पर मेरे हाथ खाली हैं' और फिर डाकघर जाकर पत्र पोस्ट कर दिया. एक हफ्ता ही बीता था कि बेटे का पत्र दिल्ली से आया - 'बाबूजी मकान खरीद रहा हूं कुछ मदद करें.' रामप्रसाद बाबू ने तुरंत पत्नी से बातचीत कर बैंक से रुपये निकलवाए और बैंक ड्राफ्ट बनवाकर बेटे को भेज दिया. इधर रामप्रसाद बाबू काफी बीमार थे, उन्होंने बेटे और बेटी दोनों को तार कर दिया था. बेटे का कहीं पता न था जबकि बेटी तीसरे दिन पहुंच गई और साथ चलने की जिद कर रही थी. रामप्रसाद बाबू मौन, बिस्तर पर लेटे बस बेटी का हाथ अपने हाथ में लेकर रोते जा रहे थे. अवमूल्यन एक अध्यापक अक्सर अपने छात्रों को पढ़ाते समय आदिकाल की सम्मानजनक गुरु-शिष्य परंपरा

भूख स्वाद नही देखती

पप्पू बुरी तरह घबरा गया था, हड़बड़ी मैं किसी और का आर्डर मिस्टर बवेजा को दे आया था, बवेजा का गुस्सा वो पहले देख चुका था, नमक कम होने पर ही वो कई बार खाना फ़ेंक चुका था, कंपकंपाता वो डाबा मालिक रामलाल के पीछे जाकर खड़ा हो गया, राम लाल ने उसे इसतरह खड़ा देखा तो डाँटते हुए बोला अबे ओये पप्या यहाँ खड़ा-खड़ा क्या कर रहा है, ग्राहकों को क्या तेरा बाप देखेगा, लेकिन पप्पू वहां से हिला तक नही, यह देख रामलाल समझ गया कि कुछ गड़बड़ हो गयी है, उसने पप्पू कों पुचकारा तो उसने सारीबात बता दी, मामला समझने के बाद रामलाल के चहरे पर भी चिंता कि लकीरें दिखाई देने लगी, लेकिन अब क्या हो सकता था, अब क्या होगा दादा, पप्पू ने डरते हुए पूछा, वही होगा जो मंजूरेबवेजा होगा, रामलाल इससे ज्यादा नही बोल सका, तभी किसी ग्राहक ने आवाज दी, हाँ भइया कितना देना है, रामलाल ने देखा बवेजा काउंटर पर खड़ा था, लेकिन वह सामान्य नजर दिखाई दे रहा था, गुस्से का कोई भावः उसे नही दिखा, तो उसकी चिंता ख़त्म हो गयी और उसने पप्पू से पूछ कर पेमेंट ले लिया,जब वह चला गया तो पप्पू रामलाल के पास आकर बोला, आज तो कमाल ही हो गया दादा, नमक

खुजली

एक बार ब्रह्माजी की दाडी में खुजली हो गयी, सलाह मशविरे के बाद दाडी कटवाने का निर्णय लिया गया, हज्जाम बुलाया गया, हज्जाम रस्ते में नारद से टकरा गया, हड़बड़ी का कारन जाने बिना नारदजी उसे कहाँ छोड़ने वाले थे, सारीबात पता चलने पर उन्होंने हज्जाम से एक वचन ले लिया कि वो दाडी के बाल कहीं फेंकने के बजाय उन्हें लाकर देदे, हज्जाम ने ऐसा ही किया, नारदजी ने सारे बाल अपने कमंडल में डाले और मृत्यु लोक में छिड़क दिए, उससे जो जीव पैदा हुए वो पत्रकार बने,

नजरिया

सीट दो की है तो क्या हुआ, थोड़ा सा खिसक कर किसी को बेठा लेंगे तो क्या चला जाएगा ? इंसानियत भी कोई चीज होती है , बस मैं मेरी बगल मैं खड़े सज्जन सीटों पैर बेठे लोगों को कोसते हुए बडबडा रहे थे, अगले स्टोपेज पर एक सवारी उतारी तो उन महाशय को भी सीट मिल गयी, वह भी मेरी तरह ही दुबले पतले से थे, सीट मैं थोडी जगह दिखाई दे रही थी, इससे मुझे भी थोडी उम्मीद जगी, मैंने उनसे कहा भाईसाहब, थोड़ा खिसक जाओ तो मैं भी अटक जाऊं,इतना सुनते ही वे भड़क गए,बोले, सेट दो की है और हम दो ही बैठे हैं, कहाँ जगह दिख रही है तुम्हें ? अपनी सहूलियत देखते हैं सब, दूसरे की परेशानी नही समझाते, अब मुझे समझ मैं आ गया था कि दो की सीट पर दो ही क्यों बेठे हैं,

लघुकथा- ईमानदार

लघुकथा- ईमानदार रोज शाम बगीचे में घूमने जाना मेरी आदत में शामिल था | फाटक के पास ही शर्माजी मिल गए | वहां रुक कर कुछ देर उनसे बतियाने लगा | सावन का पहला सोमवार था | आज कुछ विशेष रौनक थी | कुछ एक गुब्बारे-कुल्फी वाले भी आ जुटे थे | शर्माजी से जैरामजी कर आगे बढ़ने लगा तो पास में खड़े कुल्फी वाले ने कुरते की बाह पकड़ कर कहा : "बाबूजी पैसे" ? मैं हतप्रभ: "कैसे पैसे" ? उसने पास खड़े कुल्फी खाते एक बच्चे की तरफ़ इशारा कर के कहा : "आपका नाम ले कुल्फी ले गया है, पैसे तो आपको देने ही पड़ेंगे" | मुझे गुस्सा आ गया बच्चे के पास गया और दो थप्पड़ जड़ दिए और कहा "मुफ्त की कुल्फी खाते शर्म नही आती" ? वह बोला : "मुफ्त की कहाँ ? इसके बदले थप्पड़ खाने के लिए तो आपके पास खड़ा था वरना भाग ना जाता"?

स्वतन्त्रता दिवस की बधाई

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