हिंदी की कवितायेँ


Best motivational poem in Hindi 





जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
जो साथ न मेरा दे पाये, उनसे कब सूनी हुई डगर?
मैं भी न चलूँ यदि तो क्या, राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गये स्वाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अंतर?
कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर!
आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गये व्यथा का जो प्रसाद –
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।



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Motivational poem in Hindi on success


जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई 

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Inspirational poems in hindi 



जीवन के इस दौर में
सब पर आपाधापी छाई हैं
दौड़ लगी है बेसुध – अंतहीन
इच्छाओं की भरी पिटारी है
न चिंता है देश समाज जनहित की
बस अपनी ही सुध में पलते हैं
हमदर्द, हमराह, हम ख़याल
अब अकेले पड़े है तन्हाई में
लूट संस्कृति का चालान जोरों पर है
मर्यादा की खाल पल पल नुच रही हैं
निज स्वार्थ निज लाभ
बस इतना ही आंखो में समाता है
सुबिधाओं का अम्बार लगाना
हर कोई चाहता हैं
दिल में भी नही
घर में भी नही
ख्यालों में भी नही
अब किसी के लिए
किसी के पास जगह नही
मतलब की नाव पर
हर कोई सवार हो रखा है
और मतलब पुरा होते ही
कौन है आप? किसे याद रहता है
बड़ी विचित्र हवा चल रही है
अब इस अंधी दुनिया में
हाय पैसा ! बस पैसा !
की चल रही महामारी हैं
रिश्तों की अब किसे जरुरत
न ही दोस्त चाहिए अब
ख़ुद का सुख ही
सर्वस्व है अब
इतने में सिमट रही अब
दुनिया सारी हैं
शान्ति समर्पण और तपस्या
सब मौन पड़े है
झूठ और हिंसा
इस युग के नए नारे है
इश्वर को भी चन्दा देकर खरीदने का
ढोंग हो रहा है हर और
मीनार ऊँची करने में बस लगा हुआ है
आज के युग का हर प्रानी
धरम सत्य और अहिंसा
सब बेमानी है इस दौर में
जीवन तो कठिन नही रहा पर
मोक्ष जरुर नामुमकिन कर रहे है
सब पिस रहे है मोह की चक्की में
और मस्त जीने की अदा
क्या खूब कर रहे है
असली नकली का भेद खत्म कर
सब एक राह चल पड़े है ! !
च्न्य है आज की मानव संस्कृति
और उसमें बसने वाले लोग
क्या कहे अब हम इनको
जो भूलाये ही रखना चाहते है
ख़ुद के इंसान होने का सत्य............

Motivational poem in Hindi

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