हिंदी की कहानियाँ
रंग भरा गुब्बारा -hindi motivational story for students
होली के दूसरे दिन सुबह यश जल्दी उठ गया। उसे अखबार का इंतजार था। रोज अखबार सुबह छह बजे तक आ जाता था। सात बजे तक नहीं आया तो उसे ध्यान आया कि आज तो समाचार पत्र नहीं आते।...वह बेचैन हो उठा।...पता नहीं कल जो आदमी स्कूटर से गिरा था, उसका क्या हाल है। यदि मामूली चोट लगी होगी तो अखबार में उसका जिक्र नहीं होगा। यदि हालत गंभीर होगी या मौत हो चुकी होगी तो समाचार पत्र में न्यूज अवश्य आएगी।
यश पूरे दिन परेशान रहा। दूसरे दिन उठते ही सबसे पहले उसने समाचार पत्र लेकर वह पृष्ठ खोला, जिसमें दुर्घटना आदि के समाचार छपते हैं। तभी उसकी नजर एक समाचार पर रुक गई। उसमें लिखा था "एक शरारती बच्चे द्वारा रंग भरा गुब्बारा फेंकने से चालीस वर्षीय सुमेर स्कूटर पर संतुलन खो बैठने से गिर पड़े। उनके सिर में गंभीर चोट आई है। हालत नाजुक है।'
समाचार पढ़ कर यश रो पड़ा। यद्यपि वह घायल आदमी न उसका रिश्तेदार था और न कोई परिचित।
उसने अंदाजा लगाया कि वह पापा की उम्र का ही होगा। मेरी उम्र के उसके भी बेटे-बेटी होंगे, पत्नी होगी। हो सकता है बूढ़े माँ-बाप भी हों। हो सकता है वह घर में कमाने वाला अकेला व्यक्ति हो....यदि उसे कुछ हो गया तो उसके परिवार का क्या होगा।...होली पर की गई मेरी ये छोटी सी शरारत किसी के लिए जान लेवा साबित हो सकती है ऐसा तो मैंने सोचा भी नहीं था।
परसों होली वाले दिन छोटे गुब्बारों में रंगीन पानी भरते देख कर मम्मी ने टोका था, -"यश, सीधे-साधे रंगों से होली खेलना। राह चलते लोगों पर ये गुब्बारे मत फेंकना। इससे किसी को चोट लग सकती है, कोई दुर्घटना भी हो सकती है।'
"कुछ नहीं होता मम्मी आप तो वैसे ही डरती हैं।'
उसकी बात सुने बिना ही मम्मी दूसरे कमरे में चली गई थीं। यश रंगों की पुड़िया, पिचकारी व गुब्बारे लेकर अपने दोस्तों के घर की तरफ चल दिया था। बहुत जल्दी उसके रंग समाप्त हो गए थे और रंग लेने के लिए वह अपने घर की तरफ लौट रहा था। उसके हाथ में एक गुब्बारा बचा था। स्कूटर पर जाते हुए एक आदमी पर उसकी नजर पड़ी। उसे ताज्जुब हुआ कि उसके ऊपर किसी ने भी रंग क्यों नहीं डाला। बस हाथ का गुब्बारा उसने स्कूटर वाले पर उछाल दिया था।...उस आदमी को स्कूटर के साथ गिरते देख कर वह डर गया और भाग कर अपने घर आ गया। उसे किसी ने शायद गुब्बारा फेंकते नहीं देखा था।
मम्मी ने उसे टोका भी था कि 'अरे आज तो तू बड़ी जल्दी होली खेल कर घर आ गया।'
"हाँ मम्मी सिर में थोड़ा दर्द है।'
मम्मी ने माथे पर हाथ लगा कर देखा फिर कहा, "बुखार तो नहीं है।...पानी गर्म कर देती हूँ, जल्दी से नहा-धो ले। अभी तो रंग छुड़ाने में ही आधा घंटा लगेगा...फिर खाना खाकर थोड़ी देर सो जाना।'
उसे कई दोस्त बुलाने आए। 'उसके सिर में दर्द है' कह कर मम्मी ने उन्हें बाहर से ही लौटा दिया।
कल भी पूरे दिन वह परेशान रहा। मम्मी ने कारण पूछा तो वह बोला "कुछ नहीं मम्मी, परीक्षा आरही हैं न उसी की वजह से थोड़ा तनाव हो रहा है।'
आज अखबार में स्कूटर वाले की गंभीर हालत का समाचार पढ़ कर तो वह बहुत दुखी हो गया। जल्दी से तैयार हुआ। टिफिन बॉक्स बैग में रखा। मम्मी आवाज ही देती रह गई। वह बिना नाश्ता किए घर के बाहर बने मंदिर में गया। भगवान से स्कूटर वाले का जीवन बचाने की प्रार्थना की और स्कूल चला गया।
क्लास में लेट आने पर टीचर ने राहुल को बाहर खड़े रहने को कहा तो वह बोला,
-" मैडम मेरे लेट होने की वजह सुन लें। फिर भी आप सजा देंगी तो मुझे मंजूर होगी।...मेरे ताऊजी का होली वाले दिन एक एक्सीडेंट हो गया था। दो दिन से वह बेहोश थे।मैं पापा और ताई जी को हास्पिटल में चाय-नाश्ता दे कर आ रहा हूँ इसीलिए कुछ लेट हो गया।'
"ठीक है अंदर आओ।...कैसे हो गया था एक्सीडेंट ? अब वे कैसे हैं ?'--टीचर ने पूछा
"होली वाले दिन स्कूटर चलाते हुए एक रंग भरा गुब्बारा उनके मुँह पर आकर लगा। संतुलन बिगड़ जाने से वह गिर पड़े थे।...आज वे होश में आए हैं।...अब खतरे से बाहर है।'
अनायास ही यश के हाथ जुड़ गए और उसके मुँह से निकला "थैंक गॉड।'
बराबर में बैठे छात्र ने चौंक कर पूछा "तुझे क्या हुआ ?'
"कुछ नहीं उसके ताऊजी खतरे से बाहर हैं यह जान कर अच्छा लगा।'
टीचर ने पढ़ाना शुरू कर दिया था किंतु यश का ध्यान पढ़ने में नहीं था।...वह बहुत खुश था उसकी वजह से जो व्यक्ति दुर्घटना का शिकार हो गया था, उस व्यक्ति का जीवन अब बच गया है वर्ना वह कभी अपने को माफ नहीं कर पाता। उसने मन ही मन कसम खाई कि इस तरह की होली अब वह कभी नहीं खेलेगा और दोस्तों को भी नहीं खेलने देगा।
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बुरखे वाला लड़का - motivational stories for success in hindi
सिनेमा हाल के मैनेजेर ने पुलिस जीप रुकते ही उनकी अगवानी की और कहा-- "सर मैं यहाँ का मैनेजर हूं, मैं ने ही आपको फोन किया था।'
खाली कागज का कमाल - a short hindi story with moral
तुषार भूख से व्याकुल था। सुबह से चाय तक पीने को नहीं मिली थी। इस अनजान जगह में अपहरण करके लाए हुए चार दिन हो चुके थे किंतु वह अभी तक अपने उस अपहरणकर्ता को ढंग से पहचान भी नहीं पाया है। पहचाने भी कैसे, उसका लगभग आधा चेहरा तो बड़े फ्रेम के काले चश्मे में छिपा रहता है।
मम्मी-पापा, पप्पू-सोनू, दादी माँ चार दिन से कितने परेशान होंगे। किसी से खाना भी नहीं खाया गया होगा। पापा ने शायद अखबार में फोटो निकलवाया होगा। थाने में भी रिपोर्ट लिखाई होगी। सोचते-सोचते वह फिर रोने लगा। वह भी कितना पागल था, जो बातों में आ गया। इस तरह अपहरण करके ले जाने के कितने क़िस्से-कहानियाँ वह पढ़ता-सुनता रहा है फिर भी अपना अपहरण करा बैठा।
हैड मास्टर साहब ने बुलाकर कहा था, "तुषार तुम्हारे घर से किसी का फोन आया है कि आज ड्राइवर कार लेकर तुम्हें लिवाने नहीं आ सकेगा वे फैक्ट्री के रमेश नाम के नौकर को भेज रहे हैं, वह काला चश्मा लगाता है , तुमको पहचानता भी है, उसके साथ टैक्सी करके आ जाना।'
छुट्टी के समय स्कूल के गेट पर पहुँचते ही काला चश्मा लगाए हुए एक आदमी आगे आया "चलिए छोटे साहब।'
"तुमने मुझे कैसे पहचान लिया,...मैंने तो तुम्हें पहले कभी नहीं देखा।'
"पहले मैं चश्मा नहीं लगाता था। कुछ दिन पहले आँख का ऑपरेशन करवाया है, तभी से लगाने लगा हूँ. इसीलिए आप नहीं पहचान पा रहे हैं।'
"चलो जल्दी से टैक्सी पकड़ो। बहुत ठंडी हवा है, सर्दी लग रही है।'
पास में खड़ी एक टैक्सी में वे बैठ गए थे जिसे एक सरदार जी चला रहे थे। तभी उसने चौंक कर कहा - "रमेश टैक्सी गलत रास्ते पर जा रही है।'
"खैर चाहते हो तो चुपचाप बैठो, खबरदार जो शोर मचाया।'
टैक्सी के चारों तरफ के शीशे बंद थे। चिल्लाने पर भी आवाज बाहर नहीं जा सकती थी। इसीलिए वह सहम कर चुप हो गया। न जाने कितनी सड़कें, चौराहे, गलियाँ, मोड़ पार करने के बाद एक सुनसान जगह कुछ खँडहरों के बीच टैक्सी उन्हें उतार कर चली गई। एक-दो घंटे बाद रात घिर आई थी। चारों तरफ गहरा अंधेरा था। एक-दूसरे को ठीक से देख पाना भी मुश्किल था। तब उसे बहुत पैदल चलना पड़ा, उसके बाद एक कोठरी में बंद कर दिया गया था।
दरवाजे पर ताला खुलने की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ। उसने अंदाजा लगाया कि चश्मे वाला आदमी खाना लेकर आया होगा, दरवाजा खुलने के साथ ही हल्का सा प्रकाश भी कमरे में घुस आया। उसकी नजर चश्मे वाले के पैरों पर पड़ी। उसके दोनों पैरों में छह-छह उँगली थीं।
तभी उसे अपने घर में काम कर चुके एक नौकर रमुआ का ख्याल आया। उसने अपने मम्मी-पापा से सुना था कि उसके हाथ-पैरों में छह-छह उँगलियाँ थीं... रंग गोरा था, एक आँख की पुतली पर सफेदी फैली थी। जब वह स्वयं चार-पाँच वर्ष का था तभी अलमारी में से गहने निकालते हुए मम्मी ने रमुआ को पकड़ा था...पापा के आने तक वह भाग चुका था। रमुआ की उसे याद नहीं है पर अब वह चश्मे में छिपी उसकी आँखें देखना चाहता था।
वह कागज में रोटी- सब्जी रख कर उसे खाने को दे गया था। दरवाजे में कई सुराख थे जिसमें से काफी रोशनी अंदर आ सकती थी किंतु उस पर बाहर से किसी कपड़े का पर्दा डाल दिया गया था जिससे कमरे में अंधेरा रहता और वह बाहर भी नहीं देख सकता था।
भूख उसे तेजी से लगी थी। मोटी-मोटी रोटियों को छूते ही उसे फिर माँ याद आ गई। माँ के हाथ के बने करारे परांठे याद आ गए। मन न होते हुए भी उसने रोटी खाई व लोटे से पानी पी गया।
अभी वह गिलास में चाय देकर बाहर निकला ही था कि कमरे में रोशनी की एक रेखा देखकर उसने किवाड़ की दरार से बाहर झाँका। वह आदमी चश्मा हाथ में लिए सरदार से बातें कर रहा था। यह देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा कि उसकी एक आँख खराब थी उसमें सफेदी फैली थी। उसने प्रसन्नता से अपनी पीठ स्वयं थपथपाई कि वह भी कहानी के पात्रों जैसा नन्हा जासूस हो गया है। तभी उसकी आशा पुन: निराशा में बदल गई। ठीक है उसने जासूसी करके अपहरणकर्ता का पता लगा लिया है, उसे पहचान लिया है लेकिन क्या फायदा.. यह जानकारी वह घर या पुलिसवालों तक कैसे पहुँचाए , पाँच दिन हो चुके हैं। किसी भी दिन यह मुझे मार डालेंगे। वह फिर सुबकने लगा।
किवाड़ों पर हुई खटपट की आवाज सुनकर उसने सोचा, अभी तो वह चाय देकर गया था पुन: क्यों आ रहा है.. क्या पता कहीं दूसरी जगह ले जाए या हो सकता है मार ही दे।
चश्मे वाले ने उसके हाथ में एक लिफाफा थमाया और कहा, "पेन तुम्हारे बस्ते में होगा, कागज भी होगा। अपने पापा को पत्र लिखो कि जिंदा देखना चाहते हैं तो माँगी हुई रकम बताई हुई जगह पर पहुँचा दें। पुलिस को बताने की कोशिश हर्गिज़ न करें वर्ना बेटे को हमेशा के लिए खो देंगे।'
किसी के खाँसने की आवाज सुन कर वह बाहर जाते हुए बोला, "दरवाजे का पर्दा हटा देता हूँ, कमरे में रोशनी हो जाएगी। जल्दी से पत्र लिख दो, लिफाफे पर पता भी लिख दो..... मैं अभी आकर ले जाऊँगा।'
"वाह बेटे, तुम तो बहुत तेज हो। जैसा मैंने कहा था वैसा ही लिख दिया। पत्र को खाली कागज में क्यों लपेट दिया है ?' उसने कागज को उलट-पलट कर देखते हुए कहा।
"थोड़ी देर पहले आप कह रहे थे बादल हो रहे हैं, पानी बरस सकता है। इसीलिए पत्र को खाली कागज में लपेट दिया है। लिफाफा भीग भी जाए तो पत्र न भीगे। अक्षर मिट गए तो पापा पढ़ेंगे कैसे। फिर मुझे कैसे ले जाएँगे।'
"शाबाश ठीक किया तुमने।'
पत्र गए तीन दिन हो चुके थे। इस बीच वह सोते-जागते तरह-तरह की कल्पनाएँ करता रहा था। सपने में कभी उसे चश्मे वाला छुरा लिए अपनी तरफ आता हुआ दिखता। कभी सब बीमार माँ के पास बैठे हुए दिखाई देते। कभी उदास खड़े पापा दिखते, कभी रोती हुई बहन दिखती।
तभी उसे एक तेज आवाज सुनाई दी- "तुषार... तुषार, तुम कहाँ हो'
अरे यह तो पापा की आवाज है। वह चौंक कर उठा और दरवाजा पीटने लगा -" पापा मैं यहाँ हूँ, इस कोठरी में।'
तभी ताला तोड़ने की आवाज आई। दरवाजा खुलते ही पहले दरोगा जी अंदर आए फिर पापा आए। वह पापा से लिपट कर जोर-जोर से रोने लगा।...पापा भी उसे सीने से लगाए रो रहे थे - "मेरे बेटे मैं आ गया, तू ठीक तो है न ?'
घर जाते हुए उसने रास्ते में पूछा - "पापा उस दिन कार मुझे लेने क्यों नहीं आई थी।'
"बेटे फोन पर किसी ने कहा था कि आज स्कूल में फंक्शन है। तुषार को लेने के लिए कार दो घंटे लेट भेजना, ऐसा कई बार हो चुका है... हमें क्या पता था कि धोखा हो सकता है।'
घर पर उसे देखने वालों की भीड़ इकट्ठी थी। सब इतने खुश थे, जैसे कोई उत्सव हो। सबको मिठाई बाँटी जा रही थी।
तभी उसने पूछा- "मम्मी उस घर का पता कैसे लगा ?'
"जब अपहरणकर्ता का ही पता लग गया फिर उसके घर का पता लगाना कौन सा मुश्किल था।...सब तेरे उस पत्र के साथ आए खाली कागज का कमाल है।'
"माँ, उस कागज को पढ़ा किसने ? मैंने तो अंधेरे में तीर मारा था। मुझे उम्मीद नहीं थी कि कोई उसे पढ़ पाएगा।'
पप्पू ने गर्व से सीना फुलाकर कहा - "भैया मैंने पढ़ा था।'
"तूने,...तूने कैसे पढ़ा ?'
"चार-पाँच दिन पहले तुम्हारे दोस्त संदीप भैया आए थे। उदास थे, बहुत देर बैठे रहे। वही बता रहे थे कि अपहरण वाले दिन उन्होंने तुम को एक पेन्सिल दी थी जिसका लिखा कागज पर दिखाई नहीं देता। उन्होंने पढ़ने की तरकीब भी बताई थी। तुम्हारे पत्र के साथ आए खाली कागज को पापा ने उलट-पलट कर बेकार समझ कर फेंक दिया था। मैं तब खाना खा रहा था। मुझे संदीप भैया की बात याद आ गई। मैंने कागज उठा लिया और उस पर दाल की गर्म कटोरी रख कर घुमादी।....देखते ही देखते कागज पर लिखे तुम्हारे अक्षर चमकने लगे। बिना पढ़े ही मैं उसे लेकर पापा के पास गया। पत्र से पता लग गया कि अपहरण रमुआ ने किया है फिर क्या था, घर में हलचल मच गई। पापा तभी पुलिस स्टेशन गए और उनकी सहायता से तुम्हें ढूँढ़ लाए।'
तभी पापा खुशी से चहकते हुए घर में घुसे और कुर्सी पर आराम से बैठते हुए बोले- "साला रमुआ भी पकड़ में आ गया है।'
फिर कुछ ठहर कर पूछा - "तुषार बेटे उस खाली कागज का रहस्य क्या था ?'
"भैया क्या वह जादू की पेन्सिल थी ?'
"अरे नहीं, जादू कैसा..... असल में वह पेन्सिल मोम की थी इसीलिए उसके लिखे अक्षर कागज पर दिखाई नहीं दे रहे थे। पप्पू ने उस पर गर्म कटोरी रख दी, गर्मी पाकर मोम पिघल गया और अक्षर स्पष्ट दिखने लगे, यही उसका रहस्य था।'
"भाई कुछ भी हो खाली कागज ने कमाल कर दिखाया। वर्ना पता नहीं तुझे फिर से देख भी पाते या नहीं।' माँ की आँखों में हर्ष के आँसू थे
मम्मी-पापा, पप्पू-सोनू, दादी माँ चार दिन से कितने परेशान होंगे। किसी से खाना भी नहीं खाया गया होगा। पापा ने शायद अखबार में फोटो निकलवाया होगा। थाने में भी रिपोर्ट लिखाई होगी। सोचते-सोचते वह फिर रोने लगा। वह भी कितना पागल था, जो बातों में आ गया। इस तरह अपहरण करके ले जाने के कितने क़िस्से-कहानियाँ वह पढ़ता-सुनता रहा है फिर भी अपना अपहरण करा बैठा।
हैड मास्टर साहब ने बुलाकर कहा था, "तुषार तुम्हारे घर से किसी का फोन आया है कि आज ड्राइवर कार लेकर तुम्हें लिवाने नहीं आ सकेगा वे फैक्ट्री के रमेश नाम के नौकर को भेज रहे हैं, वह काला चश्मा लगाता है , तुमको पहचानता भी है, उसके साथ टैक्सी करके आ जाना।'
छुट्टी के समय स्कूल के गेट पर पहुँचते ही काला चश्मा लगाए हुए एक आदमी आगे आया "चलिए छोटे साहब।'
"तुमने मुझे कैसे पहचान लिया,...मैंने तो तुम्हें पहले कभी नहीं देखा।'
"पहले मैं चश्मा नहीं लगाता था। कुछ दिन पहले आँख का ऑपरेशन करवाया है, तभी से लगाने लगा हूँ. इसीलिए आप नहीं पहचान पा रहे हैं।'
"चलो जल्दी से टैक्सी पकड़ो। बहुत ठंडी हवा है, सर्दी लग रही है।'
पास में खड़ी एक टैक्सी में वे बैठ गए थे जिसे एक सरदार जी चला रहे थे। तभी उसने चौंक कर कहा - "रमेश टैक्सी गलत रास्ते पर जा रही है।'
"खैर चाहते हो तो चुपचाप बैठो, खबरदार जो शोर मचाया।'
टैक्सी के चारों तरफ के शीशे बंद थे। चिल्लाने पर भी आवाज बाहर नहीं जा सकती थी। इसीलिए वह सहम कर चुप हो गया। न जाने कितनी सड़कें, चौराहे, गलियाँ, मोड़ पार करने के बाद एक सुनसान जगह कुछ खँडहरों के बीच टैक्सी उन्हें उतार कर चली गई। एक-दो घंटे बाद रात घिर आई थी। चारों तरफ गहरा अंधेरा था। एक-दूसरे को ठीक से देख पाना भी मुश्किल था। तब उसे बहुत पैदल चलना पड़ा, उसके बाद एक कोठरी में बंद कर दिया गया था।
दरवाजे पर ताला खुलने की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ। उसने अंदाजा लगाया कि चश्मे वाला आदमी खाना लेकर आया होगा, दरवाजा खुलने के साथ ही हल्का सा प्रकाश भी कमरे में घुस आया। उसकी नजर चश्मे वाले के पैरों पर पड़ी। उसके दोनों पैरों में छह-छह उँगली थीं।
तभी उसे अपने घर में काम कर चुके एक नौकर रमुआ का ख्याल आया। उसने अपने मम्मी-पापा से सुना था कि उसके हाथ-पैरों में छह-छह उँगलियाँ थीं... रंग गोरा था, एक आँख की पुतली पर सफेदी फैली थी। जब वह स्वयं चार-पाँच वर्ष का था तभी अलमारी में से गहने निकालते हुए मम्मी ने रमुआ को पकड़ा था...पापा के आने तक वह भाग चुका था। रमुआ की उसे याद नहीं है पर अब वह चश्मे में छिपी उसकी आँखें देखना चाहता था।
वह कागज में रोटी- सब्जी रख कर उसे खाने को दे गया था। दरवाजे में कई सुराख थे जिसमें से काफी रोशनी अंदर आ सकती थी किंतु उस पर बाहर से किसी कपड़े का पर्दा डाल दिया गया था जिससे कमरे में अंधेरा रहता और वह बाहर भी नहीं देख सकता था।
भूख उसे तेजी से लगी थी। मोटी-मोटी रोटियों को छूते ही उसे फिर माँ याद आ गई। माँ के हाथ के बने करारे परांठे याद आ गए। मन न होते हुए भी उसने रोटी खाई व लोटे से पानी पी गया।
अभी वह गिलास में चाय देकर बाहर निकला ही था कि कमरे में रोशनी की एक रेखा देखकर उसने किवाड़ की दरार से बाहर झाँका। वह आदमी चश्मा हाथ में लिए सरदार से बातें कर रहा था। यह देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा कि उसकी एक आँख खराब थी उसमें सफेदी फैली थी। उसने प्रसन्नता से अपनी पीठ स्वयं थपथपाई कि वह भी कहानी के पात्रों जैसा नन्हा जासूस हो गया है। तभी उसकी आशा पुन: निराशा में बदल गई। ठीक है उसने जासूसी करके अपहरणकर्ता का पता लगा लिया है, उसे पहचान लिया है लेकिन क्या फायदा.. यह जानकारी वह घर या पुलिसवालों तक कैसे पहुँचाए , पाँच दिन हो चुके हैं। किसी भी दिन यह मुझे मार डालेंगे। वह फिर सुबकने लगा।
किवाड़ों पर हुई खटपट की आवाज सुनकर उसने सोचा, अभी तो वह चाय देकर गया था पुन: क्यों आ रहा है.. क्या पता कहीं दूसरी जगह ले जाए या हो सकता है मार ही दे।
चश्मे वाले ने उसके हाथ में एक लिफाफा थमाया और कहा, "पेन तुम्हारे बस्ते में होगा, कागज भी होगा। अपने पापा को पत्र लिखो कि जिंदा देखना चाहते हैं तो माँगी हुई रकम बताई हुई जगह पर पहुँचा दें। पुलिस को बताने की कोशिश हर्गिज़ न करें वर्ना बेटे को हमेशा के लिए खो देंगे।'
किसी के खाँसने की आवाज सुन कर वह बाहर जाते हुए बोला, "दरवाजे का पर्दा हटा देता हूँ, कमरे में रोशनी हो जाएगी। जल्दी से पत्र लिख दो, लिफाफे पर पता भी लिख दो..... मैं अभी आकर ले जाऊँगा।'
"वाह बेटे, तुम तो बहुत तेज हो। जैसा मैंने कहा था वैसा ही लिख दिया। पत्र को खाली कागज में क्यों लपेट दिया है ?' उसने कागज को उलट-पलट कर देखते हुए कहा।
"थोड़ी देर पहले आप कह रहे थे बादल हो रहे हैं, पानी बरस सकता है। इसीलिए पत्र को खाली कागज में लपेट दिया है। लिफाफा भीग भी जाए तो पत्र न भीगे। अक्षर मिट गए तो पापा पढ़ेंगे कैसे। फिर मुझे कैसे ले जाएँगे।'
"शाबाश ठीक किया तुमने।'
पत्र गए तीन दिन हो चुके थे। इस बीच वह सोते-जागते तरह-तरह की कल्पनाएँ करता रहा था। सपने में कभी उसे चश्मे वाला छुरा लिए अपनी तरफ आता हुआ दिखता। कभी सब बीमार माँ के पास बैठे हुए दिखाई देते। कभी उदास खड़े पापा दिखते, कभी रोती हुई बहन दिखती।
तभी उसे एक तेज आवाज सुनाई दी- "तुषार... तुषार, तुम कहाँ हो'
अरे यह तो पापा की आवाज है। वह चौंक कर उठा और दरवाजा पीटने लगा -" पापा मैं यहाँ हूँ, इस कोठरी में।'
तभी ताला तोड़ने की आवाज आई। दरवाजा खुलते ही पहले दरोगा जी अंदर आए फिर पापा आए। वह पापा से लिपट कर जोर-जोर से रोने लगा।...पापा भी उसे सीने से लगाए रो रहे थे - "मेरे बेटे मैं आ गया, तू ठीक तो है न ?'
घर जाते हुए उसने रास्ते में पूछा - "पापा उस दिन कार मुझे लेने क्यों नहीं आई थी।'
"बेटे फोन पर किसी ने कहा था कि आज स्कूल में फंक्शन है। तुषार को लेने के लिए कार दो घंटे लेट भेजना, ऐसा कई बार हो चुका है... हमें क्या पता था कि धोखा हो सकता है।'
घर पर उसे देखने वालों की भीड़ इकट्ठी थी। सब इतने खुश थे, जैसे कोई उत्सव हो। सबको मिठाई बाँटी जा रही थी।
तभी उसने पूछा- "मम्मी उस घर का पता कैसे लगा ?'
"जब अपहरणकर्ता का ही पता लग गया फिर उसके घर का पता लगाना कौन सा मुश्किल था।...सब तेरे उस पत्र के साथ आए खाली कागज का कमाल है।'
"माँ, उस कागज को पढ़ा किसने ? मैंने तो अंधेरे में तीर मारा था। मुझे उम्मीद नहीं थी कि कोई उसे पढ़ पाएगा।'
पप्पू ने गर्व से सीना फुलाकर कहा - "भैया मैंने पढ़ा था।'
"तूने,...तूने कैसे पढ़ा ?'
"चार-पाँच दिन पहले तुम्हारे दोस्त संदीप भैया आए थे। उदास थे, बहुत देर बैठे रहे। वही बता रहे थे कि अपहरण वाले दिन उन्होंने तुम को एक पेन्सिल दी थी जिसका लिखा कागज पर दिखाई नहीं देता। उन्होंने पढ़ने की तरकीब भी बताई थी। तुम्हारे पत्र के साथ आए खाली कागज को पापा ने उलट-पलट कर बेकार समझ कर फेंक दिया था। मैं तब खाना खा रहा था। मुझे संदीप भैया की बात याद आ गई। मैंने कागज उठा लिया और उस पर दाल की गर्म कटोरी रख कर घुमादी।....देखते ही देखते कागज पर लिखे तुम्हारे अक्षर चमकने लगे। बिना पढ़े ही मैं उसे लेकर पापा के पास गया। पत्र से पता लग गया कि अपहरण रमुआ ने किया है फिर क्या था, घर में हलचल मच गई। पापा तभी पुलिस स्टेशन गए और उनकी सहायता से तुम्हें ढूँढ़ लाए।'
तभी पापा खुशी से चहकते हुए घर में घुसे और कुर्सी पर आराम से बैठते हुए बोले- "साला रमुआ भी पकड़ में आ गया है।'
फिर कुछ ठहर कर पूछा - "तुषार बेटे उस खाली कागज का रहस्य क्या था ?'
"भैया क्या वह जादू की पेन्सिल थी ?'
"अरे नहीं, जादू कैसा..... असल में वह पेन्सिल मोम की थी इसीलिए उसके लिखे अक्षर कागज पर दिखाई नहीं दे रहे थे। पप्पू ने उस पर गर्म कटोरी रख दी, गर्मी पाकर मोम पिघल गया और अक्षर स्पष्ट दिखने लगे, यही उसका रहस्य था।'
"भाई कुछ भी हो खाली कागज ने कमाल कर दिखाया। वर्ना पता नहीं तुझे फिर से देख भी पाते या नहीं।' माँ की आँखों में हर्ष के आँसू थे
थोड़ी सी नासमझी - motivational stories in hindi
फोन की घन्टी सुन कर माँ ने अमृता को पुकार कर बताया कि तेरी दोस्त सारा का फोन आया है।
'अच्छा माँ अभी आई '
"हैलो कौन सारा....क्या ...कल शाम रोश्नी छत से गिर गई थी ? ...पर वह उस समय छत पर क्या कर रही थी ?'
'पतंग उड़ा रही थी '
"उसे पतंग उड़ाना भी आता है ?'
"हाँ, पतंग के दिनो में अपने भाई का चरक पकड़ते , पकड़ते उसने भी पतंग उड़ाना सीख लिया था।'
"अरे पहले यह तो बता वह कैसी है ... बहुत चोट तो नहीं लगी ?'
"बहुत अच्छी किस्मत थी ,छोटी मोटी चोट आई है... हॉ पैर की हड्डी भी टूटी है।'
"थेंक गॉड , वरना छत से गिर कर तो जान भी जा सकती थी और गम्भीर चोट भी लग सकती थी। पिछले वर्ष मेरा कजिन भी पतंग उड़ाते समय छत से गिर गया था ,उसका तो सिर फट गया था, कुछ घन्टों में ही उसकी मौत हो गई थी,मालुम है माँ- बाप का वह अकेला बेटा था।'
" अच्छा ! आज कल तो ज्यादातर परिवारों में एक दो बच्चे ही होते हैं। रोशनी भी तो अकेली बेटी ही है,एक भाई भी है।'
"पर वह गिर कैसे गई ?'
"अपने भाई के साथ छत पर पतंग उड़ाने गई थी । एक पतंग लूटने चक्कर में नीचे गिर गई।'
'अरे बड़ी बेवकूफी की उसने... कटी पतंग लूटने की क्या जरूरत थी, क्या उसके पास पतंगे नहीं थीं ?'
"अरे उनके पास बहुत सारी नई - नई पतंगे हैं पर पतंग उड़ाने में ज्यादा बच्चों को पतंग लूटने में मजा आता है ।'
"क्या उसकी छत पर रेलिंग नहीं थी ?'
"उसकी छत पर तो रेलिंग है पर पतंग लूटने के लिए वह अपनी छत से जुड़े व नए बन रहे मकान की छत पर चली गई थी,उस छत की रेलिंग अभी बनी नहीं थी ... मैं भी उसके साथ ही थी पर माँ के डर से जल्दी लौट गई थी ।'
"बड़ी नासमझी की उसने ... पतंग के दिनों में इस तरह की बहुत सी घटनाए होती रहती हैं। इस विषय में अखबारों में भी खबरे छपती रहती हैं।मेरी मम्मी ने तो छत पर ताला लगा रखा है ,बस एक दिन ही पतंग उड़ाने की छूट मिलती है वह भी किसी बड़े के साथ होने पर ।'
"ताला तो उनकी छत पर भी लगा रहता है पर आज उसके मम्मी पापा किसी काम से बाहर गए थे ...और इन्हें मौका मिल गया ।'
"जब रोशनी छत से गिरी तो उसके घर में कोई नहीं था ? '
"गिरने के पाँच मिनट के अंदर ही उसके मम्मी - पापा आ गए थे ,वे ही उसे लेकर अस्पताल भागे।'
"कोई खतरे की बात तो नहीं है ?
' ना बस डेढ़ - दो महीने के लिए पैर पर प्लास्टर चढ़ गया है। स्कूल नहीं जा पाएगी ... वह तो अच्छा हुआ हाथ सलामत हैं वरना परीक्षा कैसे लिखती ?'
"सच में सारा थोड़ी सी नासमझी कितनी खरतनाक हो सकती है पर हम समझते ही नहीं ।माँ बाप जब हमें समझाने की कोशिश करते हैं तो हमें वह दुश्मन नजर आते हैं।...स्कूल से लौटते समय उससे मिलने चलेंगे। '
"हैलो कौन सारा....क्या ...कल शाम रोश्नी छत से गिर गई थी ? ...पर वह उस समय छत पर क्या कर रही थी ?'
'पतंग उड़ा रही थी '
"उसे पतंग उड़ाना भी आता है ?'
"हाँ, पतंग के दिनो में अपने भाई का चरक पकड़ते , पकड़ते उसने भी पतंग उड़ाना सीख लिया था।'
"अरे पहले यह तो बता वह कैसी है ... बहुत चोट तो नहीं लगी ?'
"बहुत अच्छी किस्मत थी ,छोटी मोटी चोट आई है... हॉ पैर की हड्डी भी टूटी है।'
"थेंक गॉड , वरना छत से गिर कर तो जान भी जा सकती थी और गम्भीर चोट भी लग सकती थी। पिछले वर्ष मेरा कजिन भी पतंग उड़ाते समय छत से गिर गया था ,उसका तो सिर फट गया था, कुछ घन्टों में ही उसकी मौत हो गई थी,मालुम है माँ- बाप का वह अकेला बेटा था।'
" अच्छा ! आज कल तो ज्यादातर परिवारों में एक दो बच्चे ही होते हैं। रोशनी भी तो अकेली बेटी ही है,एक भाई भी है।'
"पर वह गिर कैसे गई ?'
"अपने भाई के साथ छत पर पतंग उड़ाने गई थी । एक पतंग लूटने चक्कर में नीचे गिर गई।'
'अरे बड़ी बेवकूफी की उसने... कटी पतंग लूटने की क्या जरूरत थी, क्या उसके पास पतंगे नहीं थीं ?'
"अरे उनके पास बहुत सारी नई - नई पतंगे हैं पर पतंग उड़ाने में ज्यादा बच्चों को पतंग लूटने में मजा आता है ।'
"क्या उसकी छत पर रेलिंग नहीं थी ?'
"उसकी छत पर तो रेलिंग है पर पतंग लूटने के लिए वह अपनी छत से जुड़े व नए बन रहे मकान की छत पर चली गई थी,उस छत की रेलिंग अभी बनी नहीं थी ... मैं भी उसके साथ ही थी पर माँ के डर से जल्दी लौट गई थी ।'
"बड़ी नासमझी की उसने ... पतंग के दिनों में इस तरह की बहुत सी घटनाए होती रहती हैं। इस विषय में अखबारों में भी खबरे छपती रहती हैं।मेरी मम्मी ने तो छत पर ताला लगा रखा है ,बस एक दिन ही पतंग उड़ाने की छूट मिलती है वह भी किसी बड़े के साथ होने पर ।'
"ताला तो उनकी छत पर भी लगा रहता है पर आज उसके मम्मी पापा किसी काम से बाहर गए थे ...और इन्हें मौका मिल गया ।'
"जब रोशनी छत से गिरी तो उसके घर में कोई नहीं था ? '
"गिरने के पाँच मिनट के अंदर ही उसके मम्मी - पापा आ गए थे ,वे ही उसे लेकर अस्पताल भागे।'
"कोई खतरे की बात तो नहीं है ?
' ना बस डेढ़ - दो महीने के लिए पैर पर प्लास्टर चढ़ गया है। स्कूल नहीं जा पाएगी ... वह तो अच्छा हुआ हाथ सलामत हैं वरना परीक्षा कैसे लिखती ?'
"सच में सारा थोड़ी सी नासमझी कितनी खरतनाक हो सकती है पर हम समझते ही नहीं ।माँ बाप जब हमें समझाने की कोशिश करते हैं तो हमें वह दुश्मन नजर आते हैं।...स्कूल से लौटते समय उससे मिलने चलेंगे। '
जी का जंजाल - hindi story for children
स्कूल साथ साथ जाते हुए पाही ने नयना से पूछा --"नयना तुम्हारा नया मकान बने हुए तो बहुत दिन हो गए ,उसमें रहने कब जा रही हो ?''
"अरे जाना तो दशहरे पर ही था लेकिन पापा मम्मी के कुछ मित्रों ने कहा कि इस में तो वास्तु के बहुत दोष हैं ।प्रवेश से पहले किसी वास्तु विशेषज्ञ की सलाह ले लो।हमारे मम्मी पापा को इस में विश्वास नहीं है पर शुभ चिन्तकों के लगातार आग्रह पर मम्मी को भी बहम हो गया और यह बहम जी का जंजाल बन गया।''
"वास्तु का नाम तो इधर मैं नें भी सुना है बल्कि हमारे पड़ौस में भी एक वास्तु शास्त्री रहते हैं पर यह क्या है मुझे इस विषय में कुछ नहीं पता।''
"अच्छा है जो तुम्हें इसका ज्ञान नहीं है,जो इसके जाल में फंस जाता है वह चकर घिन्नी बन जाता है।''
"मतलब ''
"मतलब यही है कि इनके चक्कर में फंस कर फायदा हो न हो पर रुपयों को पंख जरूर लग जाते हैं और सब से बड़ी बात यह है कि एक वास्तु विशेषज्ञ के हिसाब से बने मकान को दूसरा विशेषज्ञ कभी सही नहीं बताता । वह पहले विशेषज्ञ को अज्ञानी बता कर दोषों की लिस्ट थमा देता है।''
"तुम्हारे साथ क्या हुआ ?''
"वही जिसका अनुमान था।जब से विशेषज्ञ जी घर देख कर गए हैं,मम्मी पापा बहुत तनाव में हैं।एक एक पैसा जोड़ कर व आफिस से लोन ले कर पापा ने यह फ्लैट खरीदा था और जब उसमें रहने जाने का समय आया तो वास्तु के चक्कर में फँस गए।लोन लेते समय पापा ने सोचा था कि किराए के मकान का जो आठ हजार रुपए महिने किराया जाता हैं वह अपने फ्लैट में जाने के बाद लोन की किश्त जमा कराने के काम आ जाएगा ।वह भी नहीं हो पाया।'
"तो क्या वास्तु के हिसाब से मकान ठीक करवा रहे हो ?'
"फ्लैट में वह सब सुधार संभव नहीं हैं,प्रवेश द्वार जिस दिशा में है वहीं रहेगा ।रसोई ,बाथरूम,किचन किसी का भी स्थान कैसे बदल सकता है । पापा ने कई लोगों से सलाह ली है ,छोटे मोटे बदलाव भी जो संभव थे कराए हैं।...विशेषज्ञ जी ने तो यहाँ तक कहा है कि इसे बेच कर दूसरा ले लो ।लेने से पूर्व विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लेना ।''
"पर नयना यह सलाह खरीद ने से पहले ले ली होती तो इन मुश्किलों से बच जाते ।''
"असल में पापा ने यह मकान रिसेल में लिया था,पापा के परिचित का ही मकान था।वह इस मकान में करीब सात साल रहे।''
"यदि वास्तु दोष हैं तो जिन से तुमने खरीदा उनको भी इस में परेशानियां उठानी पड़ी होंगी ?''
"पापा बताते हैं कि खरीदने से पूर्व मकान मालिक से वास्तु आदि के विषय में पूछा था तो उन्हों ने कहा था कि "मैं ने भी बना बनाया लिया था , किसी से सलाह नहीं ली थी ।घर में हवा, पानी, धूप का अभाव नहीं था बस यही बात मुझे भा गई थी ।मेरे बच्चे इसी मकान में रहते हुए पले - बढ़े हैं...आज दोनो बेटे मल्टी नेशनल कंपनी में काम कर रहे हैं।घर में सुख शान्ति है।'..यह सब बात पापा भी जानते थे।बस ले लिया ।''
"तो अब तुम्हारे पापा ने क्या सोचा है ....क्या बेचने की सोच रहे हैं ?''
"पाही मकान बेचना या खरीदना क्या इतना आसान होता है ?''
"फिर...''
"अभी एक सप्ताह पहले पापा के एक मित्र की पत्नी का कैंसर से स्वर्ग वास हो गया था ।पापा बताते हैं वह बहुत संपन्न हैं। उन्होंने जमीन खरीदने से ले कर कोठी बनवाने तक पूरा काम एक वास्तु-विशेषज्ञ की देख रेख में कराया था पर उस में जाने के एक साल के अंदर ही यह सब हो गया । मंदी के चलते उनको व्यापार में भी बहुत घाटा हुआ है।तब से पापा के दिमाग ने पल्टी खाई है और वह भ्रम की स्थिति से बाहर आगए हैं।उनका कहना है कि सुख- दुख सब के जीवन में आते हैं। उन्हें यह तथा कथित विशेषज्ञ नहीं रोक सकते और यदि रोक सकते तो उन के जीवन में सुख ही सुख होते ।'...
"हाँ नयना तुम्हारे पापा का सोचना ठीक ही है। हमारे पड़ौस में जो वास्तु शास्त्री रहते हैं वह तो समाचार पत्र में इस विषय में कालम भी लिखते हैं। उनके घर से तो रोज झगड़े की आवाजें आती रहती हैं,उनका बेटा भी बहुत बिगड़ा हुआ है... एक बार पुलिस केस में भी फंस गया था।'
"अच्छा ! वैसे पापा ने भी तय कर लिया है...अब हम इस महिने के अंत में अपने फ्लैट में चले जाएंगे।''
"अरे जाना तो दशहरे पर ही था लेकिन पापा मम्मी के कुछ मित्रों ने कहा कि इस में तो वास्तु के बहुत दोष हैं ।प्रवेश से पहले किसी वास्तु विशेषज्ञ की सलाह ले लो।हमारे मम्मी पापा को इस में विश्वास नहीं है पर शुभ चिन्तकों के लगातार आग्रह पर मम्मी को भी बहम हो गया और यह बहम जी का जंजाल बन गया।''
"वास्तु का नाम तो इधर मैं नें भी सुना है बल्कि हमारे पड़ौस में भी एक वास्तु शास्त्री रहते हैं पर यह क्या है मुझे इस विषय में कुछ नहीं पता।''
"अच्छा है जो तुम्हें इसका ज्ञान नहीं है,जो इसके जाल में फंस जाता है वह चकर घिन्नी बन जाता है।''
"मतलब ''
"मतलब यही है कि इनके चक्कर में फंस कर फायदा हो न हो पर रुपयों को पंख जरूर लग जाते हैं और सब से बड़ी बात यह है कि एक वास्तु विशेषज्ञ के हिसाब से बने मकान को दूसरा विशेषज्ञ कभी सही नहीं बताता । वह पहले विशेषज्ञ को अज्ञानी बता कर दोषों की लिस्ट थमा देता है।''
"तुम्हारे साथ क्या हुआ ?''
"वही जिसका अनुमान था।जब से विशेषज्ञ जी घर देख कर गए हैं,मम्मी पापा बहुत तनाव में हैं।एक एक पैसा जोड़ कर व आफिस से लोन ले कर पापा ने यह फ्लैट खरीदा था और जब उसमें रहने जाने का समय आया तो वास्तु के चक्कर में फँस गए।लोन लेते समय पापा ने सोचा था कि किराए के मकान का जो आठ हजार रुपए महिने किराया जाता हैं वह अपने फ्लैट में जाने के बाद लोन की किश्त जमा कराने के काम आ जाएगा ।वह भी नहीं हो पाया।'
"तो क्या वास्तु के हिसाब से मकान ठीक करवा रहे हो ?'
"फ्लैट में वह सब सुधार संभव नहीं हैं,प्रवेश द्वार जिस दिशा में है वहीं रहेगा ।रसोई ,बाथरूम,किचन किसी का भी स्थान कैसे बदल सकता है । पापा ने कई लोगों से सलाह ली है ,छोटे मोटे बदलाव भी जो संभव थे कराए हैं।...विशेषज्ञ जी ने तो यहाँ तक कहा है कि इसे बेच कर दूसरा ले लो ।लेने से पूर्व विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लेना ।''
"पर नयना यह सलाह खरीद ने से पहले ले ली होती तो इन मुश्किलों से बच जाते ।''
"असल में पापा ने यह मकान रिसेल में लिया था,पापा के परिचित का ही मकान था।वह इस मकान में करीब सात साल रहे।''
"यदि वास्तु दोष हैं तो जिन से तुमने खरीदा उनको भी इस में परेशानियां उठानी पड़ी होंगी ?''
"पापा बताते हैं कि खरीदने से पूर्व मकान मालिक से वास्तु आदि के विषय में पूछा था तो उन्हों ने कहा था कि "मैं ने भी बना बनाया लिया था , किसी से सलाह नहीं ली थी ।घर में हवा, पानी, धूप का अभाव नहीं था बस यही बात मुझे भा गई थी ।मेरे बच्चे इसी मकान में रहते हुए पले - बढ़े हैं...आज दोनो बेटे मल्टी नेशनल कंपनी में काम कर रहे हैं।घर में सुख शान्ति है।'..यह सब बात पापा भी जानते थे।बस ले लिया ।''
"तो अब तुम्हारे पापा ने क्या सोचा है ....क्या बेचने की सोच रहे हैं ?''
"पाही मकान बेचना या खरीदना क्या इतना आसान होता है ?''
"फिर...''
"अभी एक सप्ताह पहले पापा के एक मित्र की पत्नी का कैंसर से स्वर्ग वास हो गया था ।पापा बताते हैं वह बहुत संपन्न हैं। उन्होंने जमीन खरीदने से ले कर कोठी बनवाने तक पूरा काम एक वास्तु-विशेषज्ञ की देख रेख में कराया था पर उस में जाने के एक साल के अंदर ही यह सब हो गया । मंदी के चलते उनको व्यापार में भी बहुत घाटा हुआ है।तब से पापा के दिमाग ने पल्टी खाई है और वह भ्रम की स्थिति से बाहर आगए हैं।उनका कहना है कि सुख- दुख सब के जीवन में आते हैं। उन्हें यह तथा कथित विशेषज्ञ नहीं रोक सकते और यदि रोक सकते तो उन के जीवन में सुख ही सुख होते ।'...
"हाँ नयना तुम्हारे पापा का सोचना ठीक ही है। हमारे पड़ौस में जो वास्तु शास्त्री रहते हैं वह तो समाचार पत्र में इस विषय में कालम भी लिखते हैं। उनके घर से तो रोज झगड़े की आवाजें आती रहती हैं,उनका बेटा भी बहुत बिगड़ा हुआ है... एक बार पुलिस केस में भी फंस गया था।'
"अच्छा ! वैसे पापा ने भी तय कर लिया है...अब हम इस महिने के अंत में अपने फ्लैट में चले जाएंगे।''
खिड़की खुली न रखना - motivational stories in hindi for success
दीपावली की रात को पूजा हो चुकी थी। मम्मी ने कहा --"चलो जल्दी से घर बंद करो, बुआ के घर दीपावली की शुभ कामनाएं व मिठाई दे आते हैं ।'
सौम्या ने मम्मी से पूछा -- "मम्मी सब खिड़कियां भी बंद कर दूँ ?'
"नहीं बेटा खिड़कियां बंद नही करना ।'
"क्यों मम्मी ?'
"तुम्हारी दादी ने दीपावली के दिन कभी मुझे खिड़कियाँ बंद नहीं करने दीं।कहती थीं खिड़की दरवाजे बंद देख कर लक्ष्मी जी बाहर से ही लौट जाएगी ।शुरू में मुझे भी यह आदेश अच्छा नहीं लगता था फिर आदत पड़ गई है ।'
"पर मम्मी अब तो आदेश देने या गुस्सा करने को दादी नहीं हैं, आप फिर भी वही सब कर रही हैं जो दादी के सामने करती थीं ।'
"हाँ बेटा इतनी जल्दी उनकी बातें भूलने को मन नहीं कर रहा ।...वैसे भी अपने फ्लैट्स बहुत सुरक्षित हैं यहाँ चोरी चकोरी का बिलकुल डर नहीं है।'
"मम्मी आप ठीक कह रही हैं यहाँ चोरी का डर तो बिलकुल नहीं है पर खिड़की खुली रखने से आग का खतरा बढ़ जाता है ।'
"दीदी खिड़की से आग का क्या संबंध है ?'
"तुम्हारे जैसे शरारती बच्चे जब मन में आया कहीं भी पटाखे जलाना शुरू कर देते हैं।पिछले वर्ष मेरी सहेली के घर में इसी तरह आग लग गई थी।बाहर से जलता हुआ राकेट खिड़की से उनके बैडरूम में आ कर बिस्तर पर गिर गया.था.....पर उस समय वह सब लोग घर में ही थे,अत:एक बड़ी दुर्घटना टल गई वरना सभी फ्लैट्स आग की चपेट में आ जाते ।'
"हाँ दीदी आप ठीक कह रही हैं , मम्मी दीदी से खिड़की के दरवाजे भी बन्द करने को कह दीजिए न ।'
"सौम्या तुम ठीक ही कह रही हो,इस तरह की सावधानी बरतने में कोई नुकसान नहीं है।घर की सभी खिड़कियां बंद कर दो ।'
"वैसे दीदी खिड़की दरवाजे बंद करने से एक फायदा और भी है।'
"क्या ?'
"दरवाजे बंद होने से बाहर की लक्ष्मी अंदर नहीं आ सकेंगी तो क्या ,जो लक्ष्मी अंदर हैं वह भी तो बाहर नहीं जा सकेंगी ।इस तरह घर की लक्ष्मी तो घर में ही रहेंगी ।'
सौम्या ने प्यार से छोटी बहन को चपत लगाते हुये कहा -"बात में दम है दादी माँ,अब चलें ?'
सौम्या ने मम्मी से पूछा -- "मम्मी सब खिड़कियां भी बंद कर दूँ ?'
"नहीं बेटा खिड़कियां बंद नही करना ।'
"क्यों मम्मी ?'
"तुम्हारी दादी ने दीपावली के दिन कभी मुझे खिड़कियाँ बंद नहीं करने दीं।कहती थीं खिड़की दरवाजे बंद देख कर लक्ष्मी जी बाहर से ही लौट जाएगी ।शुरू में मुझे भी यह आदेश अच्छा नहीं लगता था फिर आदत पड़ गई है ।'
"पर मम्मी अब तो आदेश देने या गुस्सा करने को दादी नहीं हैं, आप फिर भी वही सब कर रही हैं जो दादी के सामने करती थीं ।'
"हाँ बेटा इतनी जल्दी उनकी बातें भूलने को मन नहीं कर रहा ।...वैसे भी अपने फ्लैट्स बहुत सुरक्षित हैं यहाँ चोरी चकोरी का बिलकुल डर नहीं है।'
"मम्मी आप ठीक कह रही हैं यहाँ चोरी का डर तो बिलकुल नहीं है पर खिड़की खुली रखने से आग का खतरा बढ़ जाता है ।'
"दीदी खिड़की से आग का क्या संबंध है ?'
"तुम्हारे जैसे शरारती बच्चे जब मन में आया कहीं भी पटाखे जलाना शुरू कर देते हैं।पिछले वर्ष मेरी सहेली के घर में इसी तरह आग लग गई थी।बाहर से जलता हुआ राकेट खिड़की से उनके बैडरूम में आ कर बिस्तर पर गिर गया.था.....पर उस समय वह सब लोग घर में ही थे,अत:एक बड़ी दुर्घटना टल गई वरना सभी फ्लैट्स आग की चपेट में आ जाते ।'
"हाँ दीदी आप ठीक कह रही हैं , मम्मी दीदी से खिड़की के दरवाजे भी बन्द करने को कह दीजिए न ।'
"सौम्या तुम ठीक ही कह रही हो,इस तरह की सावधानी बरतने में कोई नुकसान नहीं है।घर की सभी खिड़कियां बंद कर दो ।'
"वैसे दीदी खिड़की दरवाजे बंद करने से एक फायदा और भी है।'
"क्या ?'
"दरवाजे बंद होने से बाहर की लक्ष्मी अंदर नहीं आ सकेंगी तो क्या ,जो लक्ष्मी अंदर हैं वह भी तो बाहर नहीं जा सकेंगी ।इस तरह घर की लक्ष्मी तो घर में ही रहेंगी ।'
सौम्या ने प्यार से छोटी बहन को चपत लगाते हुये कहा -"बात में दम है दादी माँ,अब चलें ?'
फौजी का बेटा - hindi inspirational story
आजाद अपने कुछ साथियों के साथ स्कूल से लौट रहा था ।उसे घर जाने की जल्दी थी क्यों कि उसकी माँ बीमार थी। वह सुबह स्कूल नहीं आना चाहता था पर मम्मी ने उसे जबरन भेज दिया -- "बेटा अपनी पढ़ाई में ढ़ील मत दो।मैं ठीक हूँ फिर भी तू मोबाइल ले जा,कोई परेशानी हुई तो तुझे फोन कर दूँगी ।''
" पर... मम्मी स्कूल में मोबाइल ले जाने की इजाजत नहीं है।...यदि किसी ने देख लिया तो ड़ांट तो पड़ेगी ही ,जुर्माना भी देना पड़ेगा ।... फिर भी मैं ले जाता हूँ ,साइलेंट मोड में वाइब्रोशन के साथ रख लेता हूँ।जरूरी हो तो आप कर लेना वरना मैं खाने की छुट्टी में आप से बात कर लूँगा ।''
" हाँ बेटा ,यह ठीक रहेगा।''
आजाद ने दोपहर में मम्मी से बात कर ली थी। शाम को स्कूल से लौटते समय उसे मम्मी के लिए कुछ फल ले जाने थे ।वह फलों की तलाश में इधर उधर नजर घुमा रहा था तभी उसकी नजर भीड़ भरे इलाके में स्थित एक कचरा कुंडी पर पड़ी।एक आदमी उस में कुछ डाल कर गया था,पर उसके हाव भाव देख कर आजाद को लगा कि कुछ दाल में काला है। उसने अपने आसपास चलते हुए कुछ बच्चों का ध्यान उधर खींचना चाहा पर वह कान में ईयरफोन लगाए गाने सुनने में व्यस्त थे ।
उसे लगा कि समय अच्छा नहीं है।लोगों को आँख कान खुले रख कर चौकन्ना रहने की जरूरत है।...एक लड़के के कान से ईयरफोन निकाल कर उसने कहा -"अभी मैं ने एक आदमी को उस कचरा कुंडी में कुछ डाल कर जाते देखा है...मुझे शक है कि वह बम भी हो सकता है ।''
बच्चे ने बड़ी लापरवाही और बेरुखी से उसे घूर कर देखा और कहा -- "कचरे के डिब्बे में कोई कचरा ही डालेगा न '' और अपने कान पर दुबारा ईयरफोन लगाते हुए उस से आगे निकल गया ।
तभी आजाद को वह आदमी अपनी तरफ आते हुए दिखा।एक पेड़ की आड़ में खड़े हो कर आजाद ने मोबाइल से उसका फोटो भी लेने का प्रयास किया । अब आजाद दुविधा में था कि क्या करूँ ? पुलिस को बताया जाए या नहीं। यदि वहाँ कुछ नहीं मिला तो वे समझेंगे कि मैं ने उन्हें बिना बात गुमराह कर के उनका समय बर्बाद किया है ।कुछ पुलिस वाले तो इतने बद्दिमाग होते हैं कि गलत सूचना पर उसे चोट भी पंहुचा सकते हैं ।
आखिर उसने अपनी दुविधा पर विजय पाली ,100 नं.पर फोन मिला कर उसने अपना नाम ,अपने स्कूल का नाम व जगह बता कर अपना शक जाहिर करते हुए कहा कि मैं नहीं जानता कि मेरा शक सही है या गलत ।हो सकता है वहाँ कुछ भी न मिले ।...आप चाहें तो जगह की जाँच कर सकते हैं ?''
"ठीक है बेटा,जब तुमने अपनी पूरी पहचान बता कर फोन किया है तो हम तुम्हें झूठी अफवाह फैलाने वाला तो नहीं मान सकते।...हम वहाँ जा कर देखेंगे।''
"सर अब मै अपने घर जा रहा हूँ ...मेरी माँ बीमार है।मेरा मोबाइल नंबर आपके पास रिकार्ड हो गया होगा।मेरी किसी मदद की जरूरत हो तो आप मुझे फोन कर सकते हैं।''
"ओ के बेटा।''
एक घन्टे बाद पुलिस का फोन आया ---"आजाद तुम्हारा शक सही निकला ।वहाँ एक जीवित बम पाया गया है।वह यदि फट जाता तो बहुत सी जाने जा सकती थीं ।हम तुम से मिलना चाहते हैं ...तुम से उसका हुलिया जान कर हमारे एक्सपर्ट गुनहगार का चित्र बनाएँगे ताकि उसे पकड़ा जा सके ।''
"सर मैं ने मोबाइल से उसका फोटो लिया था ,हो सकता है आप को उस से कुछ मदद मिल सके।''
"ओ वेरी गुड ,यह तुमने बहुत अच्छा किया,तुम मोबाइल के साथ आ जाओ ।''
आजाद ने अपनी मम्मी को विस्तार से पूरी घटना बताई।सुन कर मम्मी बहुत खुश हुई और बोलीं--
"शाबाश बेटा,मुझे तुम पर नाज है।फौजी पापा के बहादुर बेटे हो तुम।...सुन कर पापा बहुत खुश होंगे ।''
थोड़ी देर बाद मम्मी ने टी. वी. चालू किया तो समाचार आ रहा था --- "एक बच्चे की मदद से एक बहुत बड़ा हादसा होते होते बचा।उसने पुलिस को बम रखे होने का शक जाहिर किया था जो सही निकला। उस साहसी बच्चें से अभी मीडिया का संपर्क नहीं हो पाया है।....अभी अभी खबर आई है कि दो जगह और भी बम विस्फोट हुए हैं।ताजा जानकारी के साथ हम फिर हाजिर होंगे ।''
" पर... मम्मी स्कूल में मोबाइल ले जाने की इजाजत नहीं है।...यदि किसी ने देख लिया तो ड़ांट तो पड़ेगी ही ,जुर्माना भी देना पड़ेगा ।... फिर भी मैं ले जाता हूँ ,साइलेंट मोड में वाइब्रोशन के साथ रख लेता हूँ।जरूरी हो तो आप कर लेना वरना मैं खाने की छुट्टी में आप से बात कर लूँगा ।''
" हाँ बेटा ,यह ठीक रहेगा।''
आजाद ने दोपहर में मम्मी से बात कर ली थी। शाम को स्कूल से लौटते समय उसे मम्मी के लिए कुछ फल ले जाने थे ।वह फलों की तलाश में इधर उधर नजर घुमा रहा था तभी उसकी नजर भीड़ भरे इलाके में स्थित एक कचरा कुंडी पर पड़ी।एक आदमी उस में कुछ डाल कर गया था,पर उसके हाव भाव देख कर आजाद को लगा कि कुछ दाल में काला है। उसने अपने आसपास चलते हुए कुछ बच्चों का ध्यान उधर खींचना चाहा पर वह कान में ईयरफोन लगाए गाने सुनने में व्यस्त थे ।
उसे लगा कि समय अच्छा नहीं है।लोगों को आँख कान खुले रख कर चौकन्ना रहने की जरूरत है।...एक लड़के के कान से ईयरफोन निकाल कर उसने कहा -"अभी मैं ने एक आदमी को उस कचरा कुंडी में कुछ डाल कर जाते देखा है...मुझे शक है कि वह बम भी हो सकता है ।''
बच्चे ने बड़ी लापरवाही और बेरुखी से उसे घूर कर देखा और कहा -- "कचरे के डिब्बे में कोई कचरा ही डालेगा न '' और अपने कान पर दुबारा ईयरफोन लगाते हुए उस से आगे निकल गया ।
तभी आजाद को वह आदमी अपनी तरफ आते हुए दिखा।एक पेड़ की आड़ में खड़े हो कर आजाद ने मोबाइल से उसका फोटो भी लेने का प्रयास किया । अब आजाद दुविधा में था कि क्या करूँ ? पुलिस को बताया जाए या नहीं। यदि वहाँ कुछ नहीं मिला तो वे समझेंगे कि मैं ने उन्हें बिना बात गुमराह कर के उनका समय बर्बाद किया है ।कुछ पुलिस वाले तो इतने बद्दिमाग होते हैं कि गलत सूचना पर उसे चोट भी पंहुचा सकते हैं ।
आखिर उसने अपनी दुविधा पर विजय पाली ,100 नं.पर फोन मिला कर उसने अपना नाम ,अपने स्कूल का नाम व जगह बता कर अपना शक जाहिर करते हुए कहा कि मैं नहीं जानता कि मेरा शक सही है या गलत ।हो सकता है वहाँ कुछ भी न मिले ।...आप चाहें तो जगह की जाँच कर सकते हैं ?''
"ठीक है बेटा,जब तुमने अपनी पूरी पहचान बता कर फोन किया है तो हम तुम्हें झूठी अफवाह फैलाने वाला तो नहीं मान सकते।...हम वहाँ जा कर देखेंगे।''
"सर अब मै अपने घर जा रहा हूँ ...मेरी माँ बीमार है।मेरा मोबाइल नंबर आपके पास रिकार्ड हो गया होगा।मेरी किसी मदद की जरूरत हो तो आप मुझे फोन कर सकते हैं।''
"ओ के बेटा।''
एक घन्टे बाद पुलिस का फोन आया ---"आजाद तुम्हारा शक सही निकला ।वहाँ एक जीवित बम पाया गया है।वह यदि फट जाता तो बहुत सी जाने जा सकती थीं ।हम तुम से मिलना चाहते हैं ...तुम से उसका हुलिया जान कर हमारे एक्सपर्ट गुनहगार का चित्र बनाएँगे ताकि उसे पकड़ा जा सके ।''
"सर मैं ने मोबाइल से उसका फोटो लिया था ,हो सकता है आप को उस से कुछ मदद मिल सके।''
"ओ वेरी गुड ,यह तुमने बहुत अच्छा किया,तुम मोबाइल के साथ आ जाओ ।''
आजाद ने अपनी मम्मी को विस्तार से पूरी घटना बताई।सुन कर मम्मी बहुत खुश हुई और बोलीं--
"शाबाश बेटा,मुझे तुम पर नाज है।फौजी पापा के बहादुर बेटे हो तुम।...सुन कर पापा बहुत खुश होंगे ।''
थोड़ी देर बाद मम्मी ने टी. वी. चालू किया तो समाचार आ रहा था --- "एक बच्चे की मदद से एक बहुत बड़ा हादसा होते होते बचा।उसने पुलिस को बम रखे होने का शक जाहिर किया था जो सही निकला। उस साहसी बच्चें से अभी मीडिया का संपर्क नहीं हो पाया है।....अभी अभी खबर आई है कि दो जगह और भी बम विस्फोट हुए हैं।ताजा जानकारी के साथ हम फिर हाजिर होंगे ।''
यह भी चोरी है - short hindi story with moral
सोमेश को पुस्तक के पन्ने फाड़ते देख कर मम्मी ने टोका --" बेटा यह किस की किताब है और तुम इस किताब में से पन्ने क्यों फाड़ रहे हो ?'
"मम्मी यह स्कूल के पुस्तकालय किताब है, कल इसे पुस्तकालय को लौटाना है और मुझे इस में से डिवेट के लिए कुछ सामग्री चाहिए पर अब पढ़ने का समय नहीं है ।'
"सामग्री चाहिए तो ये इतनी सारी जीरोक्स की दुकाने हैं , किताब ले जा कर उन पन्नों की जीरोक्स करा लाओ । '
"अरे मम्मी देखो न बाहर पानी बरसने को है और मेरा मन अभी बाहर जाने को नहीं है।'
'देखों बेटा यह बहुत गलत बात है ।पुस्तकालय का मतलब है पुस्तकों का घर।स्कूल - कालेज में,गाँव ,शहर में पुस्तकालय इसी लिए होते हैं कि वहाँ पर विभिन्न विषयों की पुस्तकें एक जगह मिल जाती हैं ।हमें किसी खास विषय पर कुछ जानकारी चाहिए तो उसके लिए हमें पुस्तकालय से बहुत मदद मिलती है क्यों कि एक एक जानकारी प्राप्त करने के लिए पुस्तक खरीदना हरेक के बस की बात नहीं है। जिस विषय पर किसी को जानकारी चाहिए ,वह लाइब्रेरी का सहारा लेता है। लाइब्रेरी की पुस्तको की रक्षा करना हर पाठक का फर्ज है।... पन्ने फाड़ने की गल्ती नहीं करनी चाहिए ।'
"अरे मम्मी एक मेरे न फाड़ने से क्या होगा... बहुत से बच्चे फाड़ते हैं ।कई बार ऐसा हुआ है कि मुझे भी मन चाही सामग्री नहीं मिली ...पन्ने फटे हुए थे ।'
" और वहीं गलती तुम भी करने जा रहे हो । बेटा यह भी एक तरह की चोरी ही है ।'
"इसे भी चोरी कहेंगे ?'
'बिल्कुल यह भी चोरी है ।अब तुम बता रहे थे कि तुम्हारे यहाँ एक बच्चे ने किसी की किताब चुरा ली थी, पकड़े जाने पर उसे सबके सामने सजा दी गई थी ,इसी तरह यह किताब तुम्हारी नहीं,स्कूल की है ,चुपके से या चोरी से उसके पन्ने फाड़ना भी चोरी है ? "
"हाँ ,आप ठीक कह रही हैं ...थैंक यू मम्मी आपने मुझे एक गलत काम करने से बचा लिया।मैं अभी जाकर इनकी जीरोक्स करा के लाता हूँ।'
दूसरे दिन सोमेश जब पुस्तकालय में किताब लौटाने गया तो लाइब्रेरी वाले सर दो बच्चों को डाँट रहे थे, उन्होने बच्चो को चुपके से कुछ पन्नें फाड़ते देख लिया था ...उन बच्चों का नाम लिख कर उन पर फाइन लगा दिया गया था ।...सोमेश की किताब भी खोल कर सर ने चैक की थी ।
"मम्मी यह स्कूल के पुस्तकालय किताब है, कल इसे पुस्तकालय को लौटाना है और मुझे इस में से डिवेट के लिए कुछ सामग्री चाहिए पर अब पढ़ने का समय नहीं है ।'
"सामग्री चाहिए तो ये इतनी सारी जीरोक्स की दुकाने हैं , किताब ले जा कर उन पन्नों की जीरोक्स करा लाओ । '
"अरे मम्मी देखो न बाहर पानी बरसने को है और मेरा मन अभी बाहर जाने को नहीं है।'
'देखों बेटा यह बहुत गलत बात है ।पुस्तकालय का मतलब है पुस्तकों का घर।स्कूल - कालेज में,गाँव ,शहर में पुस्तकालय इसी लिए होते हैं कि वहाँ पर विभिन्न विषयों की पुस्तकें एक जगह मिल जाती हैं ।हमें किसी खास विषय पर कुछ जानकारी चाहिए तो उसके लिए हमें पुस्तकालय से बहुत मदद मिलती है क्यों कि एक एक जानकारी प्राप्त करने के लिए पुस्तक खरीदना हरेक के बस की बात नहीं है। जिस विषय पर किसी को जानकारी चाहिए ,वह लाइब्रेरी का सहारा लेता है। लाइब्रेरी की पुस्तको की रक्षा करना हर पाठक का फर्ज है।... पन्ने फाड़ने की गल्ती नहीं करनी चाहिए ।'
"अरे मम्मी एक मेरे न फाड़ने से क्या होगा... बहुत से बच्चे फाड़ते हैं ।कई बार ऐसा हुआ है कि मुझे भी मन चाही सामग्री नहीं मिली ...पन्ने फटे हुए थे ।'
" और वहीं गलती तुम भी करने जा रहे हो । बेटा यह भी एक तरह की चोरी ही है ।'
"इसे भी चोरी कहेंगे ?'
'बिल्कुल यह भी चोरी है ।अब तुम बता रहे थे कि तुम्हारे यहाँ एक बच्चे ने किसी की किताब चुरा ली थी, पकड़े जाने पर उसे सबके सामने सजा दी गई थी ,इसी तरह यह किताब तुम्हारी नहीं,स्कूल की है ,चुपके से या चोरी से उसके पन्ने फाड़ना भी चोरी है ? "
"हाँ ,आप ठीक कह रही हैं ...थैंक यू मम्मी आपने मुझे एक गलत काम करने से बचा लिया।मैं अभी जाकर इनकी जीरोक्स करा के लाता हूँ।'
दूसरे दिन सोमेश जब पुस्तकालय में किताब लौटाने गया तो लाइब्रेरी वाले सर दो बच्चों को डाँट रहे थे, उन्होने बच्चो को चुपके से कुछ पन्नें फाड़ते देख लिया था ...उन बच्चों का नाम लिख कर उन पर फाइन लगा दिया गया था ।...सोमेश की किताब भी खोल कर सर ने चैक की थी ।
फूलों की चाहत - motivational stories in english
"दीदी मैं अभी आयी।गुप्ता आन्टी से कुछ फूल माँग कर लाती हूँ।'
"दिव्या, फूलों का इतनी सुबह क्या करेगी ?'
"आज मेरी प्रिय टीचर मिस लिली का बर्थ-डे है।उन्हें मैं फूलों का गुलदस्ता भेंट करना चाहती हूँ। गुप्ता आन्टी का बगीचा बहुत सुन्दर है।उनके यहाँ तरह तरह के फूल हैं।'
"मैं ने भी देखा है, उनका बगीचा सचमुच बहुत सुन्दर है।जरूर उनके पास माली होगा।'
"नही दीदी उनके यहाँ कोइ माली नही है,अंकल ,आन्टी बगीचे की देख भाल खुद करते हैं।'
"जो अपने बगीचे की देख भाल खुद करते हैं,मुझे नही लगता कि उनसे तुम्हे फूल माँगने चाहिये। ऐसे लोगो को अपने पौधों से बच्चों की तरह प्यार होता है।...जब तुमने पहले से सोच रखा था कि मिस को गुलदस्ता भेंट करना है तो उसका इंतजाम करके रखना चाहिये था..बाजार में क्या नही मिलता ?'
"बाजार मे तो बुके बहुत मंहगा मिलता है दीदी।मैं कोइ रोज तो माँगती नही हूँ,आज पहली बार लेने जा रही हूँ। आन्टी बहुत अच्छी हैं...आप देखना वह मना नही करेगी,मुझे बहुत प्यार करती हैं।'
"हो सकता है वह दे दें । उनकी जगह मै होती तो एक दो फूल शायद दे भी देती पर गुलदस्ते के लिये तो मना कर देती।'
"दीदी एक बात बताइये हम फूल नही तोड़ेगे तब भी वह पेड़ पर रहने वाले तो हैं नही, एक दो दिन मे मुर्झा कर खुद गिर जायेंगे।...यदि किसी के काम आजाये तो अच्छा है न। बाजार मे इतने फूल बिकते है वह भी तो किसी के बगीचों से ही आते होंगे ?'
"बाजार मे बिकने वाले फूल शौकिया बगीचा रखने वालों के बगीचे से नही आते।..बाजार में बिकने के लिये फूल उगाना अपने आप मे एक अलग व्यवसाय है,उनकी बाकायदा खेती की जाती है लेकिन जो अपने घर के बगीचे की देखभाल के लिये अपना पसीना बहाते हैं वह बड़ी बेसब्री से पौधों पर कलियाँ आने का इंतजार करते हैं फिर उनको खिलते हुये देखने का भी।...इतनी मेहनत वह इसलिये तो नहीं करते कि फूल तोड़-तोड़ कर बाट दें।'
"शायद आप ठीक कह रहीं हैं दीदी,मैं ने इतनी गहरायी से सोचा ही नही था लेकिन अब इतना समय नही है कि बाजार से फूल ला सकूँ यदि आन्टी ने दे दिया तो बस एक गुलाब का फूल लाऊँगी।'
दिव्या गुप्ता आन्टी के घर पहुँची तो उसने आन्टी को बगीचे के गेट पर दो बच्चों से बात करते हुये खड़ा पाया।उन के चेहरे पर कुछ उदासी छायी थी।तभी आन्टी का स्वर उसके कान मे पड़ा-"सॉरी बच्चों मैं फूल नही दे सकती ।पूजा के लिये चाहिये तो भी आपको बाजार जाना चाहिये था।'
"आन्टी प्लीज बस दो-तीन दे दीजिये न।'
उन के चेहरे पर तनिक गुस्सा छा गया था - "इतनी देर से समझा रही हूँ फिर भी नही समझ रहे,अब जाओ यहाँ से।'
तभी आन्टी की नजर दिव्या पर पड़ी । वह बोली - "देखों दिव्या इन फूल माँगने वालो से मैं परेशान हो गई हूँ, रोज कोइ न कोइ फूल माँगने चला आता है । सबको एक-एक, दो-दो भी देने लगूँ तो मेरे बगीचे में एक भी फूल नही बचेगा।किसी को घर में पूजा के लिये फूल चाहिये तो किसी को मंदिर मे चढ़ाने के लिये,किसी को जन्म दिन के लिये चाहिये तो किसी को अपने लाड़लों की माँग पूरी करने के लिये।...तंग हो गइ हूँ मैं।पहले तो मुझे पता ही नही चलता था और फूल गायब हो जाते थे।अब मै ने सरकाने वाला गेट लगवाया है जिसे बच्चे आसानी से नही खोल पाते तो बैल बजा-बजा के मुसीबत किये रहते हैं,समझ मे नही आता क्या करूँ ?'
आन्टी की परेशानी दिव्या समझ रही थी।उसने कहा-"आन्टी एक काम और कर के देखिये।आप गेट पर एक बोर्ड यह लिख कर लगवा दीजिये कि यहाँ फूल तोडना और माँगना दोनो सख्त मना है।...मैं समझती हूँ माँगने वालो की सख्या मे कमी जरूर आयेगी।'
"ठीक है बेटा यह उपाय भी करके देखती हूँ।'
लौटते समय दिव्या इस बात से बहुत खुश थी कि वह फूल माँगने की गलती करने से बच गयी थी। उसे अहसास हो गया था कि फूलों की चाहत को माँग कर नही खरीद कर पूरा करना चाहिये
"दिव्या, फूलों का इतनी सुबह क्या करेगी ?'
"आज मेरी प्रिय टीचर मिस लिली का बर्थ-डे है।उन्हें मैं फूलों का गुलदस्ता भेंट करना चाहती हूँ। गुप्ता आन्टी का बगीचा बहुत सुन्दर है।उनके यहाँ तरह तरह के फूल हैं।'
"मैं ने भी देखा है, उनका बगीचा सचमुच बहुत सुन्दर है।जरूर उनके पास माली होगा।'
"नही दीदी उनके यहाँ कोइ माली नही है,अंकल ,आन्टी बगीचे की देख भाल खुद करते हैं।'
"जो अपने बगीचे की देख भाल खुद करते हैं,मुझे नही लगता कि उनसे तुम्हे फूल माँगने चाहिये। ऐसे लोगो को अपने पौधों से बच्चों की तरह प्यार होता है।...जब तुमने पहले से सोच रखा था कि मिस को गुलदस्ता भेंट करना है तो उसका इंतजाम करके रखना चाहिये था..बाजार में क्या नही मिलता ?'
"बाजार मे तो बुके बहुत मंहगा मिलता है दीदी।मैं कोइ रोज तो माँगती नही हूँ,आज पहली बार लेने जा रही हूँ। आन्टी बहुत अच्छी हैं...आप देखना वह मना नही करेगी,मुझे बहुत प्यार करती हैं।'
"हो सकता है वह दे दें । उनकी जगह मै होती तो एक दो फूल शायद दे भी देती पर गुलदस्ते के लिये तो मना कर देती।'
"दीदी एक बात बताइये हम फूल नही तोड़ेगे तब भी वह पेड़ पर रहने वाले तो हैं नही, एक दो दिन मे मुर्झा कर खुद गिर जायेंगे।...यदि किसी के काम आजाये तो अच्छा है न। बाजार मे इतने फूल बिकते है वह भी तो किसी के बगीचों से ही आते होंगे ?'
"बाजार मे बिकने वाले फूल शौकिया बगीचा रखने वालों के बगीचे से नही आते।..बाजार में बिकने के लिये फूल उगाना अपने आप मे एक अलग व्यवसाय है,उनकी बाकायदा खेती की जाती है लेकिन जो अपने घर के बगीचे की देखभाल के लिये अपना पसीना बहाते हैं वह बड़ी बेसब्री से पौधों पर कलियाँ आने का इंतजार करते हैं फिर उनको खिलते हुये देखने का भी।...इतनी मेहनत वह इसलिये तो नहीं करते कि फूल तोड़-तोड़ कर बाट दें।'
"शायद आप ठीक कह रहीं हैं दीदी,मैं ने इतनी गहरायी से सोचा ही नही था लेकिन अब इतना समय नही है कि बाजार से फूल ला सकूँ यदि आन्टी ने दे दिया तो बस एक गुलाब का फूल लाऊँगी।'
दिव्या गुप्ता आन्टी के घर पहुँची तो उसने आन्टी को बगीचे के गेट पर दो बच्चों से बात करते हुये खड़ा पाया।उन के चेहरे पर कुछ उदासी छायी थी।तभी आन्टी का स्वर उसके कान मे पड़ा-"सॉरी बच्चों मैं फूल नही दे सकती ।पूजा के लिये चाहिये तो भी आपको बाजार जाना चाहिये था।'
"आन्टी प्लीज बस दो-तीन दे दीजिये न।'
उन के चेहरे पर तनिक गुस्सा छा गया था - "इतनी देर से समझा रही हूँ फिर भी नही समझ रहे,अब जाओ यहाँ से।'
तभी आन्टी की नजर दिव्या पर पड़ी । वह बोली - "देखों दिव्या इन फूल माँगने वालो से मैं परेशान हो गई हूँ, रोज कोइ न कोइ फूल माँगने चला आता है । सबको एक-एक, दो-दो भी देने लगूँ तो मेरे बगीचे में एक भी फूल नही बचेगा।किसी को घर में पूजा के लिये फूल चाहिये तो किसी को मंदिर मे चढ़ाने के लिये,किसी को जन्म दिन के लिये चाहिये तो किसी को अपने लाड़लों की माँग पूरी करने के लिये।...तंग हो गइ हूँ मैं।पहले तो मुझे पता ही नही चलता था और फूल गायब हो जाते थे।अब मै ने सरकाने वाला गेट लगवाया है जिसे बच्चे आसानी से नही खोल पाते तो बैल बजा-बजा के मुसीबत किये रहते हैं,समझ मे नही आता क्या करूँ ?'
आन्टी की परेशानी दिव्या समझ रही थी।उसने कहा-"आन्टी एक काम और कर के देखिये।आप गेट पर एक बोर्ड यह लिख कर लगवा दीजिये कि यहाँ फूल तोडना और माँगना दोनो सख्त मना है।...मैं समझती हूँ माँगने वालो की सख्या मे कमी जरूर आयेगी।'
"ठीक है बेटा यह उपाय भी करके देखती हूँ।'
लौटते समय दिव्या इस बात से बहुत खुश थी कि वह फूल माँगने की गलती करने से बच गयी थी। उसे अहसास हो गया था कि फूलों की चाहत को माँग कर नही खरीद कर पूरा करना चाहिये
बरफ का गोला - short motivational stories in hindi
स्कूल के गेट से बाहर निकलते ही रंजीता की नजर ठेले पर बिक रहे बर्फ के रंग बिरंगे गोलों पर पड़ी ।गर्मी से बेहाल रंजीता का दिल भी उसे खाने को मचल उठा। उसने अपनी सहेली विपमा से कहा देख लड़कियाँ कैसे चुसकी ले ले कर बर्फ के गोले खा रही हैं ,चल आज अपन भी खाते हैं।'
"ना बाबा मैं इनको नहीं खाने वाली ।मम्मी ने मुझे कभी नहीं खाने दिया पर एक बार ऐसे ही स्कूल से निकलते हुए मैं ने भी खूब चुस्की ले ले कर इसे खाया था और मैं बीमार पड़ गई थी। कई दिन मुँह से आवाज नहीं निकली थी, तब से मैं ने तोबा कर ली कि इसे कभी नहीं खाना है।'
"तुम देखो रोज कितने बच्चें इसे खाते हैं और वास्तव में सबसे ज्यादा भीड़ भी इसी के ठेले पर रहती है,वह तो बीमार नहीं पड़ते । तू किसी और वजह से बीमार पड़ी होगी ।'
"रंजीता सोचने की कई बातें हैं, इसे खा कर कितने बीमार पड़ते हैं हमें कैसे पता लगेगा ? गला खराब होना, खाँसी जुकाम होना तो अब आम बीमारी बन गई है। तकलीफ हुई और दवा खाली लेकिन हम में से बहुत से यह जानने की कोशिश नहीं करते कि इस के पीछे कहीं हमारे खान पान की आदतें तो नहीं हैं। जब मैं बीमार हुई तो मम्मी डाक्टर के ले गई थीं। डाक्टर ने सब से पहले यही पूछा कि तुमने आइसक्रीम, बाहर का जूस आदि पिया था क्या ?'
"मुझसे पहले मम्मी ने कहा "हमारे बच्चे बाहर इस तरह की चीजें नहीं खाते पीते हैं' तब मुझे ध्यान आया कि मैं ने कल बर्फ का गोला खाया था।
"फिर तूने मम्मी को बताया ?'
"हाँ मैं ने डाक्टर साहब के सामने ही यह बात स्वीकार करली ।मम्मी को बुरा तो लगा पर वह मेरे सच बोलने पर खुश भी हुई ।'
"बस आपकी इस तकलीफ का कारण यही बर्फ का गोला है' डाक्टर अंकल ने कहा था
"पर वहाँ तो बहुत बच्चे इसे खाते हैं ।'
"उनको भी कुछ हुआ या नहीं आपको कैसे पता चलेगा ।.. जो भी माता पिता अपने बच्चों को जुकाम, खॉसी, गले में दर्द की तकलीफ ले कर यहाँ आते हैं मैं सब से पहले यही प्रश्न पूछता हूँ और अधिकतर मामलों में रोड साइड स्टालों से इस तरह की चीज खाना उनके इंफैक्शन का कारण होता है।'
"वह लोग सफाई से नहीं बनाते इस लिए ?'
"हाँ वह भी एक कारण हो सकता है पर तुम लोगों को इस सब से बचना चाहिए, खास कर ठण्डी चीजों से जैसे बरफ के गोले, आइसक्रीम ,आदि में यह खतरा ज्यादा होता है ?
मैं ने पूछा था -"ऐसा क्यों डाक्टर अंकल ?'
"बेटा आपके घर में पानी साफ करने के लिए कोई प्यूरीफायर है ?'
"हाँ है और हम तो स्कूल भी अपना पानी ले कर जाते हैं।'
" ये बर्फ का गोला बेचने वालों की बर्फ साघारण पानी की होती है ,उसमें भी वह रंग बिरंगे सिरप डाल कर उसे और हानिकारक बना देते हैं। ये सिरप अपने रंगों के कारण सब को अपनी तरफ आकर्षित तो करते हैं पर यही बीमारी की जड़ हैं। ये सब से सस्ते वाले रंगों का यह प्रयोग करते हैं । किसी पर यह जल्दी ही असर दिखाते हैं किसी पर धीरे धीरे केंन्सर आदि बीमारी के रूप में गम्भीर असर दिखाते हैं ।'
"बस रंजीता उस दिन के बाद से मैं इन ठेलों आदि से कुछ नहीं खाती ।'
"धन्यवाद विपमा आगे से मैं भी इन बातों का घ्यान रखूँगी ।'
"ना बाबा मैं इनको नहीं खाने वाली ।मम्मी ने मुझे कभी नहीं खाने दिया पर एक बार ऐसे ही स्कूल से निकलते हुए मैं ने भी खूब चुस्की ले ले कर इसे खाया था और मैं बीमार पड़ गई थी। कई दिन मुँह से आवाज नहीं निकली थी, तब से मैं ने तोबा कर ली कि इसे कभी नहीं खाना है।'
"तुम देखो रोज कितने बच्चें इसे खाते हैं और वास्तव में सबसे ज्यादा भीड़ भी इसी के ठेले पर रहती है,वह तो बीमार नहीं पड़ते । तू किसी और वजह से बीमार पड़ी होगी ।'
"रंजीता सोचने की कई बातें हैं, इसे खा कर कितने बीमार पड़ते हैं हमें कैसे पता लगेगा ? गला खराब होना, खाँसी जुकाम होना तो अब आम बीमारी बन गई है। तकलीफ हुई और दवा खाली लेकिन हम में से बहुत से यह जानने की कोशिश नहीं करते कि इस के पीछे कहीं हमारे खान पान की आदतें तो नहीं हैं। जब मैं बीमार हुई तो मम्मी डाक्टर के ले गई थीं। डाक्टर ने सब से पहले यही पूछा कि तुमने आइसक्रीम, बाहर का जूस आदि पिया था क्या ?'
"मुझसे पहले मम्मी ने कहा "हमारे बच्चे बाहर इस तरह की चीजें नहीं खाते पीते हैं' तब मुझे ध्यान आया कि मैं ने कल बर्फ का गोला खाया था।
"फिर तूने मम्मी को बताया ?'
"हाँ मैं ने डाक्टर साहब के सामने ही यह बात स्वीकार करली ।मम्मी को बुरा तो लगा पर वह मेरे सच बोलने पर खुश भी हुई ।'
"बस आपकी इस तकलीफ का कारण यही बर्फ का गोला है' डाक्टर अंकल ने कहा था
"पर वहाँ तो बहुत बच्चे इसे खाते हैं ।'
"उनको भी कुछ हुआ या नहीं आपको कैसे पता चलेगा ।.. जो भी माता पिता अपने बच्चों को जुकाम, खॉसी, गले में दर्द की तकलीफ ले कर यहाँ आते हैं मैं सब से पहले यही प्रश्न पूछता हूँ और अधिकतर मामलों में रोड साइड स्टालों से इस तरह की चीज खाना उनके इंफैक्शन का कारण होता है।'
"वह लोग सफाई से नहीं बनाते इस लिए ?'
"हाँ वह भी एक कारण हो सकता है पर तुम लोगों को इस सब से बचना चाहिए, खास कर ठण्डी चीजों से जैसे बरफ के गोले, आइसक्रीम ,आदि में यह खतरा ज्यादा होता है ?
मैं ने पूछा था -"ऐसा क्यों डाक्टर अंकल ?'
"बेटा आपके घर में पानी साफ करने के लिए कोई प्यूरीफायर है ?'
"हाँ है और हम तो स्कूल भी अपना पानी ले कर जाते हैं।'
" ये बर्फ का गोला बेचने वालों की बर्फ साघारण पानी की होती है ,उसमें भी वह रंग बिरंगे सिरप डाल कर उसे और हानिकारक बना देते हैं। ये सिरप अपने रंगों के कारण सब को अपनी तरफ आकर्षित तो करते हैं पर यही बीमारी की जड़ हैं। ये सब से सस्ते वाले रंगों का यह प्रयोग करते हैं । किसी पर यह जल्दी ही असर दिखाते हैं किसी पर धीरे धीरे केंन्सर आदि बीमारी के रूप में गम्भीर असर दिखाते हैं ।'
"बस रंजीता उस दिन के बाद से मैं इन ठेलों आदि से कुछ नहीं खाती ।'
"धन्यवाद विपमा आगे से मैं भी इन बातों का घ्यान रखूँगी ।'
बुरखे वाला लड़का - motivational stories for success in hindi
सिनेमा हाल के मैनेजेर ने पुलिस जीप रुकते ही उनकी अगवानी की और कहा-- "सर मैं यहाँ का मैनेजर हूं, मैं ने ही आपको फोन किया था।'
"ओ के, कहाँ है वह लड़का जिसे आपने में बुर्खे में पकड़ा है... किस उम्र का होगा ?"
"सर जो बुर्खे में था वह तेरह चौदह वर्ष से ज्यादा का नहीं लगता ...साथ में उसका एक साथी भी था,वह सतरह अठारह वर्ष का होगा ।हमने दोनो को पकड़ लिया है ।'
" ओ के , वैल डन ...कहाँ है वे दोनो ?"
"हमारे आफिस में हैं सर ।'
पुलिस को आता देख कर दोनों लड़के भय से काँपने लगे थे - "हमने कुछ नहीं किया सर ।'
"वह सब तो बाद में पता चलेगा।पहले अपने अपने नाम बताओ ।'
छोटा लड़का बोला - सर मेरा नाम यूनुस है और इसका नाम कमाल है।यही पिक्चर का लालच देकर मुझे यहाँ लाया था ।'
"सच सच बताओ तुम इस बच्चें को बुर्खा पहना कर क्यो लाए थे ,तुम्हें किस ने भेजा था और तुम क्या करना चाहते थे ?'
"सच मानिए सर यह सिर्फ एक मजाक था ,हम यहाँ कुछ भी गलत नहीं करना चाहते थे ।'
दोनो लड़कों को दो दो थप्पड़ मारते हुए इंसपैक्टर ने दोनो सिपाहियों से कहा ये यों आसानी से कुबूल करने वाले नहीं है। इन सालों को जीप में डाल कर थाने ले चलो, वहीं सच उगलवायेंगे ।'
दोनो लड़के पैर छू छू कर माफी माँग रहे थे और छोड़ देने की विनती कर रहे थे।उन्हें पुलिस स्टेशन लेजाया गया।
तलाशी में उनके पास से कुछ आपत्तिजनक सामान नहीं मिला था, उनसे पूछताछ जारी थी नाम, पता, पिता का नाम, पिता का व्यवसाय, स्कूल -कालेज की जानकारी इकट्ठी की गई। तुम्हे यहाँ किसने भेजा ....किस उद्देश्य से आए थे बहुत सारे सवाल थे । अनुमान था कि यह जरूर किसी गलत इरादे से सिनेमा हाल गए थे.. हो सकता हैं कोई आतंकी साजिश रची जा रही हो जिसमें इन लड़कों को मोहरा बनाया जा रहा हो ।
बच्चों से नंबर लेकर उनके घर वालों को पुलिस स्टेशन आने को कहा गया , लडको की पिटाई भी हुई पर वह कुछ बता नहीं पाए।कमाल जो दूसरे लड़के को बुर्खे में लाया था वह बस एक ही बात कहे जा रहा था कि मैं ने अपने दोस्तों को बेवकूफ बनाने के लिए यह नाटक किया था ,यह सब मजाक था और मजाक के सिवाय कुछ नहीं था ।'
"तुम्हारे साथ तो कोई दोस्त नहीं पकड़ा गया तुम किन्हें बेवकूफ बनाना चाहते थे ?'
"सर हमें पकड़े जाते देख वह भाग गए ,शायद वे डर गए होंगे ।'
"तुम्हारे साथ कितने दोस्त थे ?
"सर हमे छोड़ कर तीन और थे ।'
"उनके नाम और मोबाइल नंबर दो ।'
यूनुस और कमाल के पिता और भाई आदि थाने आ गए थे । सब परेशान थे कि यह क्या किया इन लड़कों ने ।आजकल आतंकवाद के चलते वैसे ही शहर में बहुत सख्ती बरती जा रही है और यह लड़के ऐसा कारनामा कर बैठे।खुदा जाने अब क्या होगा। इनकी तो जिन्दगी बरबाद हो जाएगी ।
पुलिस उनके तीनों दोस्तों को फोन कर रही थी पर सबके स्विच आफ आ रहे थे ।
पुलिस ने यूनुस और कमाल को जीप में बैठाया और उन लड़को के घर की तरफ चल दिए । एक लड़का तो घर पर मिल गया पुलिस उसे उठा लाई ।दो लड़के तलाशी लेने पर भी घर में नहीं मिले तो घरवालों से कहा उन को लेकर तुरन्त थाने पहुँचो वरना तुम्हें पकड़ लिया जाएगा ।'
लड़कों के स्कूल जाकर भी जानकारी इकट्ठी की गई ।थोड़ी ही देर में घर वाले उन दोनो लड़को को ले कर थाने पहुँच गए ...पुलिस ने अपनी तरह से उन लड़को से भी अलग अलग पूछताछ की । सब ने करीब करीब एक ही बात कही तो पुलिस को विश्वास हो गया कि लड़के बहुत शरारती हैं पर कोई अपराधी वृत्ति के नहीं हैं पर इस पूरी छानबीन के चलते सबको एक रात जेल में बितानी पड़ी । सब के घर वाले परेशान थे कि केस बन गया तो जाने क्या होगा ,बच्चें निर्दोष भी साबित हुए तो भी पुलिस न जाने कितना धन ऐंठ लेगी।
पर पुलिस इंसपैक्टर बहुत समझदार था ,इमानदार भी। पुलिस ने बच्चों को उनकी गल्ती बता कर, धमका कर और उनके माता पिता को चेतावनी देकर उन्हें बिना किसी कानूनी पचड़े में फँसाए छोड़ दिया।
कमाल से सबने पूछा - "तू इस लड़के को बुर्खा पहना कर क्यों ले गया था ?'
कमाल ने बताया कि उसके कुछ दोस्तों की गर्ल फ्रेण्ड थीं। वह सब मिल कर मुझे छेड़ते थे कि तेरी कोई गर्ल फ्रेण्ड क्यों नही है । उस मजाक से बचने के लिए मैंने झूठ कहना शुरू कर दिया कि मेरी भी एक गर्ल फ्रेण्ड है पर उसको अपने साथ लेकर यों घूम नहीं सकता ।
एक दिन दोस्तों ने कहा तू झूठ बोलता है तेरी कोई गर्ल फ्रेण्ड है ही नहीं या फिर तू जरूरत से ज्यादा डरपोक है।..मुझे भी जोश आगया और मैं इस परिचित बच्चे को सिनेमा दिखाने का लालच देकर बुरखा पहना कर यहाँ ले आया और दोस्तो से कह दिया था कि मेरी दोस्त मुँह नहीं खोलेगी... किसी परिचित ने उसे देख लिया तो हम दोनो मुसीबत में पड़ जाएंगे ।.... पर इस बड़ी मुसीबत में फँसने का तो अंदाजा भी नहीं था ।'
"हाँ बरखुरदार जोश में तुम होश खो बैठे थे, खुदा के फजल से बस बच ही गए वरना...
"हाँ अब्बा इंसपैक्टर अंकल बहुत नेक थे , अब हम कभी ऐसी शरारतें नहीं करेंगे।''
"सर जो बुर्खे में था वह तेरह चौदह वर्ष से ज्यादा का नहीं लगता ...साथ में उसका एक साथी भी था,वह सतरह अठारह वर्ष का होगा ।हमने दोनो को पकड़ लिया है ।'
" ओ के , वैल डन ...कहाँ है वे दोनो ?"
"हमारे आफिस में हैं सर ।'
पुलिस को आता देख कर दोनों लड़के भय से काँपने लगे थे - "हमने कुछ नहीं किया सर ।'
"वह सब तो बाद में पता चलेगा।पहले अपने अपने नाम बताओ ।'
छोटा लड़का बोला - सर मेरा नाम यूनुस है और इसका नाम कमाल है।यही पिक्चर का लालच देकर मुझे यहाँ लाया था ।'
"सच सच बताओ तुम इस बच्चें को बुर्खा पहना कर क्यो लाए थे ,तुम्हें किस ने भेजा था और तुम क्या करना चाहते थे ?'
"सच मानिए सर यह सिर्फ एक मजाक था ,हम यहाँ कुछ भी गलत नहीं करना चाहते थे ।'
दोनो लड़कों को दो दो थप्पड़ मारते हुए इंसपैक्टर ने दोनो सिपाहियों से कहा ये यों आसानी से कुबूल करने वाले नहीं है। इन सालों को जीप में डाल कर थाने ले चलो, वहीं सच उगलवायेंगे ।'
दोनो लड़के पैर छू छू कर माफी माँग रहे थे और छोड़ देने की विनती कर रहे थे।उन्हें पुलिस स्टेशन लेजाया गया।
तलाशी में उनके पास से कुछ आपत्तिजनक सामान नहीं मिला था, उनसे पूछताछ जारी थी नाम, पता, पिता का नाम, पिता का व्यवसाय, स्कूल -कालेज की जानकारी इकट्ठी की गई। तुम्हे यहाँ किसने भेजा ....किस उद्देश्य से आए थे बहुत सारे सवाल थे । अनुमान था कि यह जरूर किसी गलत इरादे से सिनेमा हाल गए थे.. हो सकता हैं कोई आतंकी साजिश रची जा रही हो जिसमें इन लड़कों को मोहरा बनाया जा रहा हो ।
बच्चों से नंबर लेकर उनके घर वालों को पुलिस स्टेशन आने को कहा गया , लडको की पिटाई भी हुई पर वह कुछ बता नहीं पाए।कमाल जो दूसरे लड़के को बुर्खे में लाया था वह बस एक ही बात कहे जा रहा था कि मैं ने अपने दोस्तों को बेवकूफ बनाने के लिए यह नाटक किया था ,यह सब मजाक था और मजाक के सिवाय कुछ नहीं था ।'
"तुम्हारे साथ तो कोई दोस्त नहीं पकड़ा गया तुम किन्हें बेवकूफ बनाना चाहते थे ?'
"सर हमें पकड़े जाते देख वह भाग गए ,शायद वे डर गए होंगे ।'
"तुम्हारे साथ कितने दोस्त थे ?
"सर हमे छोड़ कर तीन और थे ।'
"उनके नाम और मोबाइल नंबर दो ।'
यूनुस और कमाल के पिता और भाई आदि थाने आ गए थे । सब परेशान थे कि यह क्या किया इन लड़कों ने ।आजकल आतंकवाद के चलते वैसे ही शहर में बहुत सख्ती बरती जा रही है और यह लड़के ऐसा कारनामा कर बैठे।खुदा जाने अब क्या होगा। इनकी तो जिन्दगी बरबाद हो जाएगी ।
पुलिस उनके तीनों दोस्तों को फोन कर रही थी पर सबके स्विच आफ आ रहे थे ।
पुलिस ने यूनुस और कमाल को जीप में बैठाया और उन लड़को के घर की तरफ चल दिए । एक लड़का तो घर पर मिल गया पुलिस उसे उठा लाई ।दो लड़के तलाशी लेने पर भी घर में नहीं मिले तो घरवालों से कहा उन को लेकर तुरन्त थाने पहुँचो वरना तुम्हें पकड़ लिया जाएगा ।'
लड़कों के स्कूल जाकर भी जानकारी इकट्ठी की गई ।थोड़ी ही देर में घर वाले उन दोनो लड़को को ले कर थाने पहुँच गए ...पुलिस ने अपनी तरह से उन लड़को से भी अलग अलग पूछताछ की । सब ने करीब करीब एक ही बात कही तो पुलिस को विश्वास हो गया कि लड़के बहुत शरारती हैं पर कोई अपराधी वृत्ति के नहीं हैं पर इस पूरी छानबीन के चलते सबको एक रात जेल में बितानी पड़ी । सब के घर वाले परेशान थे कि केस बन गया तो जाने क्या होगा ,बच्चें निर्दोष भी साबित हुए तो भी पुलिस न जाने कितना धन ऐंठ लेगी।
पर पुलिस इंसपैक्टर बहुत समझदार था ,इमानदार भी। पुलिस ने बच्चों को उनकी गल्ती बता कर, धमका कर और उनके माता पिता को चेतावनी देकर उन्हें बिना किसी कानूनी पचड़े में फँसाए छोड़ दिया।
कमाल से सबने पूछा - "तू इस लड़के को बुर्खा पहना कर क्यों ले गया था ?'
कमाल ने बताया कि उसके कुछ दोस्तों की गर्ल फ्रेण्ड थीं। वह सब मिल कर मुझे छेड़ते थे कि तेरी कोई गर्ल फ्रेण्ड क्यों नही है । उस मजाक से बचने के लिए मैंने झूठ कहना शुरू कर दिया कि मेरी भी एक गर्ल फ्रेण्ड है पर उसको अपने साथ लेकर यों घूम नहीं सकता ।
एक दिन दोस्तों ने कहा तू झूठ बोलता है तेरी कोई गर्ल फ्रेण्ड है ही नहीं या फिर तू जरूरत से ज्यादा डरपोक है।..मुझे भी जोश आगया और मैं इस परिचित बच्चे को सिनेमा दिखाने का लालच देकर बुरखा पहना कर यहाँ ले आया और दोस्तो से कह दिया था कि मेरी दोस्त मुँह नहीं खोलेगी... किसी परिचित ने उसे देख लिया तो हम दोनो मुसीबत में पड़ जाएंगे ।.... पर इस बड़ी मुसीबत में फँसने का तो अंदाजा भी नहीं था ।'
"हाँ बरखुरदार जोश में तुम होश खो बैठे थे, खुदा के फजल से बस बच ही गए वरना...
"हाँ अब्बा इंसपैक्टर अंकल बहुत नेक थे , अब हम कभी ऐसी शरारतें नहीं करेंगे।''
सोनम की समझदारी - short motivational stories with morals
गर्मी की छुट्टियों में सोनम दिल्ली से अपने मामा के पास हैदराबाद गई हुई थी। उसके मामा ने वहाँ नई कोठी बनवाई थी। परीक्षाओं की वजह से वह गृहप्रवेश के समय नहीं जा पाई थी। कोठी तो बहुत सुंदर थी लेकिन वहाँ थोड़ा सन्नाटा था। आस पास कोई घर इतनी दूरी पर न था कि पुकारने से आवाज वहां पहुँच जाए।
मामाजी को ऑफिस के काम से एक सप्ताह के लिए दिल्ली जाना पड़ा। सोनम उसकी मामी व उनके दो छोटे बच्चे घर में रह गए थे। मामी वैसे तो घर में कई बार अकेली रही हैं किंतु तब वह फ्लैट में रहती थीं। वहाँ कोई डर नहीं था। इस नए मकान में आने के बाद यह पहला अवसर था जब मामा जी को कहीं बाहर जाना पड़ रहा था। जाते समय वह भी कुछ परेशान थे। वह हम सबको खूब समझा-बुझा कर गए थे। पुलिस व परिचितों के नंबर भी दे गए थे।
चार दिन आसानी से कट गए। रोज रात को मामाजी दिल्ली से फोन पर बात कर लेते थे। एक दिन आधी रात को दरवाजे के बाहर कुछ आहट सुन कर मामी की नींद खुल गई। उन्होंने सोनम को भी जगा लिया।
मामी ने दरवाजे पर लगी "मैजिक आई' में से बाहर देखा तो पाया कि एक आदमी रसोई में लगे एग्जौस्ट फैन को हटाने की कोशिश कर रहा है और दो आदमी उसके पास में खड़े हैं। यदि वह पंखा हट गया तो वह दुबला-पतला आदमी उस रास्ते से रसोई में आराम से प्रवेश पा सकता है बस यही सोच कर मामी ने सबसे पहले रसोई का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया ताकि चोर रसोई से घर के अन्य भाग में न आ पाए।
मामी ने पुलिस को फोन करना चाहा पर फोन उठाते ही वह घबरा कर बोलीं - "अरे सोनम, फोन तो खराब है। अब क्या होगा ? शोर मचाने से भी कोई फायदा नहीं,सब घर दूर-दूर हैं यहाँ कोई हमारी मदद को नहीं आ पाएगा।'
सोनम ने इशारे से मामी को चुप रहने को कहा फिर जोर से बोली - "मामी, दूसरा फोन ठीक है। मैं अभी पुलिस को फोन करती हूँ।'
वह दरवाजे के पास जाकर जोर से ऐसे बोलने लगी जैसे फोन पर बात कर रही हो, "हैलो, पुलिस स्टेशन...हैलो इंस्पेक्टर साहब, मैं जुबली हिल्स रोड, कोठी नंबर 36 से बोल रही हूँ। हमारे घर में चोर घुस आए हैं...आप जल्दी आइए...क्या कहा...आप का पुलिस दस्ता इस क्षेत्र में गश्त लगा रहा है...अच्छा, आप वायरलेस पर सूचना देकर हमारे पास भेज रहे हैं...क्या, पाँच मिनट में पुलिस यहाँ पहुँच जाएगी ...धन्यवाद अंकल, हमें बहुत डर लग रहा है...मामी, पुलिस पाँच मिनट में यहाँ पहुँच जाएगी।'
सोनम इतनी जोर से बोल रही थी ताकि बाहर चोरों तक भी उसकी आवाज पहुँच सके।
तभी बाहर भगदड़ की आवाज सुनाई दी, फिर एक कार स्टार्ट करने की आवाज आई।
"मामी, लगता है चोर पूरी तैयारी के साथ कार लेकर आए थे...लेकिन पुलिस के डर से भाग गए।'
"अरे सोनम, तू तो बहुत समझदार निकली। फोन कर ने की एÏक्टग कर के ही चोरों को भगा दिया...यह विचार तेरे दिमाग में आया कहाँ से ?... डर के मारे मेरे तो हाथ-पाँव फूल गए थे।'
"अरे मामी, मैं दिल्ली की लड़की हूँ। इतनी आसानी से हिम्मत नहीं हारती।'
मामी ने स्नेह से उसे अपने सीने से लगा लिया।
दूसरे दिन पड़ौसियो ने पुलिस में रिपोर्ट कराई।पुलिस को जब सोनम की समझदारी का पता चला तो वह भी दंग रह गई।
जब सोनम के माता-पिता को उसकी सूझबूझ का पता चला तो वे बेहद प्रसन्न हुए। दिल्ली से लौट कर मामा ने उसे शाबाशी देते हुए एक डिजिटल डायरी इनाम में दी।
मामाजी को ऑफिस के काम से एक सप्ताह के लिए दिल्ली जाना पड़ा। सोनम उसकी मामी व उनके दो छोटे बच्चे घर में रह गए थे। मामी वैसे तो घर में कई बार अकेली रही हैं किंतु तब वह फ्लैट में रहती थीं। वहाँ कोई डर नहीं था। इस नए मकान में आने के बाद यह पहला अवसर था जब मामा जी को कहीं बाहर जाना पड़ रहा था। जाते समय वह भी कुछ परेशान थे। वह हम सबको खूब समझा-बुझा कर गए थे। पुलिस व परिचितों के नंबर भी दे गए थे।
चार दिन आसानी से कट गए। रोज रात को मामाजी दिल्ली से फोन पर बात कर लेते थे। एक दिन आधी रात को दरवाजे के बाहर कुछ आहट सुन कर मामी की नींद खुल गई। उन्होंने सोनम को भी जगा लिया।
मामी ने दरवाजे पर लगी "मैजिक आई' में से बाहर देखा तो पाया कि एक आदमी रसोई में लगे एग्जौस्ट फैन को हटाने की कोशिश कर रहा है और दो आदमी उसके पास में खड़े हैं। यदि वह पंखा हट गया तो वह दुबला-पतला आदमी उस रास्ते से रसोई में आराम से प्रवेश पा सकता है बस यही सोच कर मामी ने सबसे पहले रसोई का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया ताकि चोर रसोई से घर के अन्य भाग में न आ पाए।
मामी ने पुलिस को फोन करना चाहा पर फोन उठाते ही वह घबरा कर बोलीं - "अरे सोनम, फोन तो खराब है। अब क्या होगा ? शोर मचाने से भी कोई फायदा नहीं,सब घर दूर-दूर हैं यहाँ कोई हमारी मदद को नहीं आ पाएगा।'
सोनम ने इशारे से मामी को चुप रहने को कहा फिर जोर से बोली - "मामी, दूसरा फोन ठीक है। मैं अभी पुलिस को फोन करती हूँ।'
वह दरवाजे के पास जाकर जोर से ऐसे बोलने लगी जैसे फोन पर बात कर रही हो, "हैलो, पुलिस स्टेशन...हैलो इंस्पेक्टर साहब, मैं जुबली हिल्स रोड, कोठी नंबर 36 से बोल रही हूँ। हमारे घर में चोर घुस आए हैं...आप जल्दी आइए...क्या कहा...आप का पुलिस दस्ता इस क्षेत्र में गश्त लगा रहा है...अच्छा, आप वायरलेस पर सूचना देकर हमारे पास भेज रहे हैं...क्या, पाँच मिनट में पुलिस यहाँ पहुँच जाएगी ...धन्यवाद अंकल, हमें बहुत डर लग रहा है...मामी, पुलिस पाँच मिनट में यहाँ पहुँच जाएगी।'
सोनम इतनी जोर से बोल रही थी ताकि बाहर चोरों तक भी उसकी आवाज पहुँच सके।
तभी बाहर भगदड़ की आवाज सुनाई दी, फिर एक कार स्टार्ट करने की आवाज आई।
"मामी, लगता है चोर पूरी तैयारी के साथ कार लेकर आए थे...लेकिन पुलिस के डर से भाग गए।'
"अरे सोनम, तू तो बहुत समझदार निकली। फोन कर ने की एÏक्टग कर के ही चोरों को भगा दिया...यह विचार तेरे दिमाग में आया कहाँ से ?... डर के मारे मेरे तो हाथ-पाँव फूल गए थे।'
"अरे मामी, मैं दिल्ली की लड़की हूँ। इतनी आसानी से हिम्मत नहीं हारती।'
मामी ने स्नेह से उसे अपने सीने से लगा लिया।
दूसरे दिन पड़ौसियो ने पुलिस में रिपोर्ट कराई।पुलिस को जब सोनम की समझदारी का पता चला तो वह भी दंग रह गई।
जब सोनम के माता-पिता को उसकी सूझबूझ का पता चला तो वे बेहद प्रसन्न हुए। दिल्ली से लौट कर मामा ने उसे शाबाशी देते हुए एक डिजिटल डायरी इनाम में दी।
एक मोहल्ला, एक ही होली - hindi short motivational stories
एम. रमेश राव के पिता आठ महीने पहले ही हैदराबाद से ट्रांसफर होकर उत्तर प्रदेश के इस शहर में आए थे। होली का त्यौहार आने वाला था। रमेश राव कुछ ज्यादा ही उत्साहित था। हैदराबाद में होली इतने धूमधाम से नहीं मनाई जाती, जितने उत्साह से उत्तर प्रदेश में मनाई जाती है। वहाँ तो रमेश ने कभी होली जलते हुए भी नहीं देखी थी।
उसके मोहल्ले के सभी मित्रों ने पंद्रह दिन पहले से होली की तैयारी शुरू कर दीं। सबने नए कपड़े खरीदे थे। होली के तीन-चार दिन पहले से सबके घरों में तरह-तरह की मिठाइयाँ और पकवान बनने प्रारंभ हो गए थे। मोहल्ले के सभी बच्चे घर-घर जाकर होली के लिए चंदा इकट्ठा करने में लगे थे। कभी-कभी रमेश भी उनके साथ चला जाता था। कम चंदा दिए जाने पर सब अधिक देने के लिए आग्रह करते थे, "अरे अंकल इतने कम से काम नहीं चलेगा। लकड़ी के भाव तो देखिए। कितनी महँगी हो गई है।'
फिर सभी मिलकर रमेश राव के घर भी गए। रमेश के माता-पिता ने बच्चों को बहुत प्यार से नाश्ता करवाया लेकिन चंदा माँगने पर रमेश के पापा ने साफ मना कर दिया।
उन्होंने पूछा- "बच्चों यह तो बताओ इस मोहल्ले में कितनी जगह होली जलाई जाती है ? सुबह से पाँच-छह ग्रुप चंदा माँगने आ चुके हैं।'
"अंकल एक तो मोहल्ले की बड़ी होली जलती है, जो बहुत वर्षों से जलती आ रही है। अब लोग
अपनी-अपनी गली और फ्लैट्स के अपार्टमेंट में अलग-अलग भी जलाने लगे हैं।'
"यह तो गलत है न। होली में लकड़ी जलाई जाती है और लकड़ी के लिए जंगल काटने पड़ते हैं। जितनी ज्यादा संख्या में होली जलाई जाएगी। उतनी ही ज्यादा लकड़ी भी जलेगी।....एक मोहल्ले में एक से ज्यादा होली नहीं जलाई जानी चाहिए। गरीबों को खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं मिल पाती क्योंकि बहुत महँगी है और यहाँ होली जलाने के नाम पर देश में लाखों टन लकड़ी मिनटों में जला कर राख कर दी जाती है।...इस लकड़ी के जलाए जाने से हमारा-तुम्हारा, समाज का, देश का कोई लाभ नहीं होता बल्कि नुकसान ही होता है।...देश की हालत देखते हुए मैं इस तरह लकड़ी जलाए जाने के सख्त खिलाफ हूँ। हमें तो पेड़ों की, जंगलों की रक्षा करनी चाहिए।...बोलो बच्चों क्या मैं गलत कह रहा हूँ ?'
'आप ठीक कह रहे है अंकल ।'
"बच्चों होली का मुख्य उद्देश्य आपसी बैर भाव भूल कर दोस्ती, सद्भाव बढ़ाना होना चाहिए। हाँ यदि तुम लोग यह चंदा किसी जरूरतमंद की मदद करने या किसी अच्छे काम के लिए माँगते तो मैं सबसे पहले देता।'
रमेश राव के दोस्त बिना चंदा पाए लौट गए। रमेश राव बहुत उदास था। उसके दोस्त पापा के विषय में क्या सोचेंगे। पापा को ऐसा नहीं करना चाहिए था।
दूसरे दिन रमेश अपनी पाकेट मनी के बचाए गए रुपयों में से पचास रुपये अपने दोस्तों को देने गया और अपने पापा के चंदा न दिए जाने की बात पर उनसे क्षमा माँगी।
उसके दोस्तों में से मयंक बोला, "रमेश तुम्हारे घर से लौटते समय हम सचमुच दुखी और अपमानित महसूस कर रहे थे किंतु जब हमने शांत मन से तुम्हारे पापा की कही गई बातों पर विचार किया तो हमें लगा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा। हमने उस दृष्टि से कभी सोचा ही नहीं था। एक तरफ तो हम जंगल बचाओ, पेड़ लगाओ की बात करते हैं, दूसरी तरफ इस तरह सैकड़ों टन लकड़ी व्यर्थ जला डालते हैं।...इस वर्ष हम एक शुरुआत तो कर ही सकते हैं कि अपनी गली में अलग-अलग होली नहीं जलाएँगे। जो रुपये हमने जमा किए हैं
उनसे गरीब बस्ती के उन नंग-धड़ंग बच्चों को वस्त्र देकर आएँगे, जिन्हें पुराने वस्त्र भी नसीब नहीं हैं। क्या आप सबको मेरा सुझाव मंजूर है ?'
सबने स्वीकृति में गर्दन हिला दी। रमेश भी अब अपने पिता से नाराज नहीं था।
उसके मोहल्ले के सभी मित्रों ने पंद्रह दिन पहले से होली की तैयारी शुरू कर दीं। सबने नए कपड़े खरीदे थे। होली के तीन-चार दिन पहले से सबके घरों में तरह-तरह की मिठाइयाँ और पकवान बनने प्रारंभ हो गए थे। मोहल्ले के सभी बच्चे घर-घर जाकर होली के लिए चंदा इकट्ठा करने में लगे थे। कभी-कभी रमेश भी उनके साथ चला जाता था। कम चंदा दिए जाने पर सब अधिक देने के लिए आग्रह करते थे, "अरे अंकल इतने कम से काम नहीं चलेगा। लकड़ी के भाव तो देखिए। कितनी महँगी हो गई है।'
फिर सभी मिलकर रमेश राव के घर भी गए। रमेश के माता-पिता ने बच्चों को बहुत प्यार से नाश्ता करवाया लेकिन चंदा माँगने पर रमेश के पापा ने साफ मना कर दिया।
उन्होंने पूछा- "बच्चों यह तो बताओ इस मोहल्ले में कितनी जगह होली जलाई जाती है ? सुबह से पाँच-छह ग्रुप चंदा माँगने आ चुके हैं।'
"अंकल एक तो मोहल्ले की बड़ी होली जलती है, जो बहुत वर्षों से जलती आ रही है। अब लोग
अपनी-अपनी गली और फ्लैट्स के अपार्टमेंट में अलग-अलग भी जलाने लगे हैं।'
"यह तो गलत है न। होली में लकड़ी जलाई जाती है और लकड़ी के लिए जंगल काटने पड़ते हैं। जितनी ज्यादा संख्या में होली जलाई जाएगी। उतनी ही ज्यादा लकड़ी भी जलेगी।....एक मोहल्ले में एक से ज्यादा होली नहीं जलाई जानी चाहिए। गरीबों को खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं मिल पाती क्योंकि बहुत महँगी है और यहाँ होली जलाने के नाम पर देश में लाखों टन लकड़ी मिनटों में जला कर राख कर दी जाती है।...इस लकड़ी के जलाए जाने से हमारा-तुम्हारा, समाज का, देश का कोई लाभ नहीं होता बल्कि नुकसान ही होता है।...देश की हालत देखते हुए मैं इस तरह लकड़ी जलाए जाने के सख्त खिलाफ हूँ। हमें तो पेड़ों की, जंगलों की रक्षा करनी चाहिए।...बोलो बच्चों क्या मैं गलत कह रहा हूँ ?'
'आप ठीक कह रहे है अंकल ।'
"बच्चों होली का मुख्य उद्देश्य आपसी बैर भाव भूल कर दोस्ती, सद्भाव बढ़ाना होना चाहिए। हाँ यदि तुम लोग यह चंदा किसी जरूरतमंद की मदद करने या किसी अच्छे काम के लिए माँगते तो मैं सबसे पहले देता।'
रमेश राव के दोस्त बिना चंदा पाए लौट गए। रमेश राव बहुत उदास था। उसके दोस्त पापा के विषय में क्या सोचेंगे। पापा को ऐसा नहीं करना चाहिए था।
दूसरे दिन रमेश अपनी पाकेट मनी के बचाए गए रुपयों में से पचास रुपये अपने दोस्तों को देने गया और अपने पापा के चंदा न दिए जाने की बात पर उनसे क्षमा माँगी।
उसके दोस्तों में से मयंक बोला, "रमेश तुम्हारे घर से लौटते समय हम सचमुच दुखी और अपमानित महसूस कर रहे थे किंतु जब हमने शांत मन से तुम्हारे पापा की कही गई बातों पर विचार किया तो हमें लगा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा। हमने उस दृष्टि से कभी सोचा ही नहीं था। एक तरफ तो हम जंगल बचाओ, पेड़ लगाओ की बात करते हैं, दूसरी तरफ इस तरह सैकड़ों टन लकड़ी व्यर्थ जला डालते हैं।...इस वर्ष हम एक शुरुआत तो कर ही सकते हैं कि अपनी गली में अलग-अलग होली नहीं जलाएँगे। जो रुपये हमने जमा किए हैं
उनसे गरीब बस्ती के उन नंग-धड़ंग बच्चों को वस्त्र देकर आएँगे, जिन्हें पुराने वस्त्र भी नसीब नहीं हैं। क्या आप सबको मेरा सुझाव मंजूर है ?'
सबने स्वीकृति में गर्दन हिला दी। रमेश भी अब अपने पिता से नाराज नहीं था।
दंड या पुरस्कार - best hindi motivational story
क्ला स से बाहर आते ही दीपक ने पूछा-"अतुल, चोर-सिपाही खेलेगा ?'
"नहीं यार, अभी मन नहीं है।'
"अच्छा मत खेल, हम तो दिनेश के साथ खेलेंगे।...अरे यार...जरा मुड़ कर हमारी तरफ भी देख लो, इतने बुरे तो हम नहीं हैं। खेलने को ही कह रहे हैं, तुमसे कुछ माँग तो नहीं रहे हैं ? लेकिन एक बात साफ है, चोर तुम्हें ही बनना पड़ेगा, हम तो सिपाही बनेंगे।'
दिनेश बिना किसी तरफ देखे चुपचाप क्लास में चला गया। अतुल ने दीपक को जा घेरा, "क्यों यार, कल कोई खास बात हो गई क्या ? दिनेश को ऐसे क्यों चिढ़ा रहे हो ?'
"तुझे नहीं मालूम ? अच्छा, कल तू टिफिन के बाद ही घर चला गया था, यह उसके बाद की बात है। मेरी हिंदी की किताब चोरी हो गई थी। सबसे पूछा, किसी ने नहीं बताया। सर ने क्लास के सभी लड़कों को कमरे से बाहर खड़ा कर दिया और हरेक के बस्ते की तलाशी ली गई। किताब दिनेश के बस्ते से निकली। तभी सर ने उसको तीन-चार छड़ी मारी और चोर की टोपी पहना कर स्कूल में घुमाया।'
अतुल के चेहरे पर मुस्कान खेल गई, "बहुत अच्छा हुआ, बनता भी बहुत होशियार था।'
"अच्छा मत खेल, हम तो दिनेश के साथ खेलेंगे।...अरे यार...जरा मुड़ कर हमारी तरफ भी देख लो, इतने बुरे तो हम नहीं हैं। खेलने को ही कह रहे हैं, तुमसे कुछ माँग तो नहीं रहे हैं ? लेकिन एक बात साफ है, चोर तुम्हें ही बनना पड़ेगा, हम तो सिपाही बनेंगे।'
दिनेश बिना किसी तरफ देखे चुपचाप क्लास में चला गया। अतुल ने दीपक को जा घेरा, "क्यों यार, कल कोई खास बात हो गई क्या ? दिनेश को ऐसे क्यों चिढ़ा रहे हो ?'
"तुझे नहीं मालूम ? अच्छा, कल तू टिफिन के बाद ही घर चला गया था, यह उसके बाद की बात है। मेरी हिंदी की किताब चोरी हो गई थी। सबसे पूछा, किसी ने नहीं बताया। सर ने क्लास के सभी लड़कों को कमरे से बाहर खड़ा कर दिया और हरेक के बस्ते की तलाशी ली गई। किताब दिनेश के बस्ते से निकली। तभी सर ने उसको तीन-चार छड़ी मारी और चोर की टोपी पहना कर स्कूल में घुमाया।'
अतुल के चेहरे पर मुस्कान खेल गई, "बहुत अच्छा हुआ, बनता भी बहुत होशियार था।'
"दिनेश, जरा बस्ता दिखाना, मेरी एक कॉपी नहीं मिल रही।' एक लड़के के यह पूछते ही क्लास के सब लड़के उसके चारों तरफ घिर आए। एक-एक चीज बस्ते से अलग निकाल कर देखी गई किंतु कॉपी नहीं मिली।
तभी दूसरा लड़का बोला- "ली भी होगी तो पिटने के लिए बस्ते में थोड़े ही रखेगा...छिपा दी होगी कहीं।'
क्लास में कोई सर नहीं थे। मेज पर डस्टर की चोट करते हुए एक लड़का बोला - "भाइयों, काले-पीले रंग की धारियों वाला मेरा पेन खो गया है। चोरी करना बहुत बुरी बात है.. जिसने भी लिया हो, वह अपने आप बता दे।'
सबकी निगाहें दिनेश की तरफ हो गई। वह अपना बस्ता क्लास में छोड़कर बाहर निकल गया।
"क्या बात है दिनेश, तुमने पढ़ाई में ढ़ील डाल दी है। इस महीने तुम्हारे नंबर हर विषय में कम आए हैं। कोई दिक्कत हो तो बताओ हमें लेकिन पढ़ाई में मत पिछड़ो।' सर ने कहा।
पीछे से कोई फुसफुसाया- "अब पढ़ाई से हट कर ध्यान चोरी में लग गया है। पढ़ने को समय ही कहाँ मिलता है ?'
दिनेश की आँखें भर आर्इं और टप टप आँसू टपकने लगे। तभी टन-टन-टन स्कूल की घंटी बजी। सर क्लास से बाहर चले गए।
अतुल को दिनेश पर बहुत दया आई- "दिनेश रोते क्यों हो ? सर की बात का बुरा मत मानना, तुम्हारी तो हमेशा तारीफ करते थे। इस परीक्षा में तुम्हारे कम नंबर देख कर उन्हें दुख हुआ है।'
फिर अतुल टिफिन खोल कर उसके सामने बैठ गया- "आओ दिनेश, खाना खाएँगे।'
"नहीं अतुल, मुझे भूख नहीं है। मैं घर से खाकर आता हूँ।'
"तुम्हें खाना होगा, जितनी भूख हो उतना ही खा लो।'
"यार, "चोरी मेरा काम' फिल्म लगी है, देखने जाएँगे।'
"नहीं यार, चोरी मेरा काम नहीं है, मैं तो नहीं जाऊँगा। जिसका काम हो वह जाए।'
"फिर तो दिनेश को जाना चाहए।'
"वो देखकर क्या करेगा..यह काम तो उसे आता है।' सब बच्चे हँसने लगे।
इस तरह बच्चे रोज क्लास में दिनेश को जलील करते थे। अतुल यह सब सहन नहीं कर पाया- "यह तुम लोगों की क्या तमीज है ? शर्म नहीं आती किसी का मजाक उड़ाते ?'
"अतुल, तू दिनेश की तरफदारी क्यों कर रहा है ? क्या उसने कुछ खिला दिया है ?'
"खिलाने को रखा क्या है, उसके पास ? अपने खाने को तो है नहीं- ' दीपक ने अपना वाक्य जोड़ा।
"दीपक, बस बहुत हो चुका.. अब चुप हो जाओ वर्ना अच्छा नहीं होगा। किसी गरीब का मजाक उड़ाना अच्छी बात नहीं है ।'
तभी प्रार्थना की घंटी बजी और सब लाइन में लगने लगे।
"मैं कल ही नया कलर बॉक्स लाया था। उसमें से चार-पाँच रंग की ट्यूब गायब हैं, दिनेश अपना बस्ता दिखाओ' मोहन ने अकड़ कर कहा।
"बस्ते में न मिलें, तो इसके कपड़े झाड़ना'-दूसरे ने सुझाव दिया।
रोज रोज के इस तमाशे दिनेश तंग हो गया था..उसे भी गुस्सा आ गया --"मेरे पास नहीं हैं। न मैं बस्ता दिखाऊँगा और न कपड़े झाड़ने दूँगा।'
"दिखाओगे कैसे नहीं ? तुम्हें दिखाना पड़ेगा।' बस्ता छीनते हुए मोहन ने कहा।
दिनेश ने ज़बरदस्ती करते मोहन को पीछे धकेल दिया।
"चोर, पहले चोरी करता है, फिर अकड़ता भी है।' मोहन अपनी नेकर की धूल झाड़ता दिनेश पर पुनः झपटा... उसे जमीन पर पटक कर उस पर चढ़ बैठा और उस पर तड़ातड़ चाँटे व मुक्के भी बरसाने लगा। दिनेश के होंठ से खून बहने लगा था ।
अतुल से यह सब देखा नहीं गया। अब उसका धैर्य समाप्त हो चुका था। उसका मन उसे बार-बार कचोटता था। दिनेश की इस दशा के लिए कई दिन से वह स्वयं को दोषी मान रहा था। उसने कई बार सोचा दिनेश को सब कुछ बता दे और उससे माफी माँग ले लेकिन इससे क्या फर्क पड़ेगा ? लड़के तो उसे चोर मानते ही रहेंगे। उसने यह बात कई बार अपने सर को भी बताने की सोची किंतु बदले में मिलने वाली सजा की याद आते ही उसका साहस जवाब दे जाता था ।
लेकिन आज वह हर सजा भोगने को तैयार था। वह अपनी क्लास के शिक्षक के पास पहुँच गया। उस समय वह कमरे में अकेले ही थे।
"सर आप से कुछ कहना है"
"कहो क्या बात है ?"
"सर, कुछ दिनों पहले मुझसे एक गलती हो गई थी, जो किसी को भी नहीं पता है किंतु अब मैं स्वयं ही बता रहा हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि उसके लिए मुझे कड़ी सजा मिलेगी।'
"क्या गलती हो गई थी, यह तो बताओ ?'
"सर डेढ़-दो महीने पहले एक किताब चुराने की वजह से दिनेश को शर्मा सर ने मारा था और चोर की टोपी पहना कर स्कूल में घुमाया था....लेकिन सर दिनेश गरीब जरूर है पर चोर नहीं है। उसने चोरी नहीं की थी, वह सब मेरी शरारत थी। ....
मैं ने दीपक की किताब निकाल कर दिनेश के बस्ते में रखी थी लेकिन अब सब लड़के चोर-चोर कह कर रोज उसका अपमान करते हैं। इसी झगड़े में आज दिनेश को खून भी निकल आया है।' कहते-कहते अतुल रोने लगा।
जोशी जी अचंभे में पड़े उसे देख रहे थे -- "अतुल यह तो बहुत बुरा हुआ। एक बार दोषी भले ही सजा से बच जाए किंतु निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। तभी दिनेश इतना चुप चुप और उदास रहता है। इसी वजह से शायद वह ढंग से पढ़ भी नहीं पाता होगा। इस बार उसके नंबर भी कम आए हैं लेकिन तुमने ऐसा क्यों किया ? इससे तुम्हें क्या मिला ?'
"सर, मुझे उससे बहुत चिढ़ हो गई थी। लगभग सब मेरी उससे तुलना करते हुए कहा करते थे कि मैं बारहों महीने घर पर भी मास्टर से पढ़ता हूँ, पढ़ने की हर सुविधा मुझे प्राप्त है फिर भी हर परीक्षा में कम अंक लाता हूँ। एक दिनेश है जिसके पास पढ़ने को पूरी पुस्तकें भी नहीं हैं फिर भी वह कितने अच्छे नंबर लाता है.. मेरे लिए शर्म की बात है।'
"सर, कुछ दिनों पहले मुझसे एक गलती हो गई थी, जो किसी को भी नहीं पता है किंतु अब मैं स्वयं ही बता रहा हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि उसके लिए मुझे कड़ी सजा मिलेगी।'
"क्या गलती हो गई थी, यह तो बताओ ?'
"सर डेढ़-दो महीने पहले एक किताब चुराने की वजह से दिनेश को शर्मा सर ने मारा था और चोर की टोपी पहना कर स्कूल में घुमाया था....लेकिन सर दिनेश गरीब जरूर है पर चोर नहीं है। उसने चोरी नहीं की थी, वह सब मेरी शरारत थी। ....
मैं ने दीपक की किताब निकाल कर दिनेश के बस्ते में रखी थी लेकिन अब सब लड़के चोर-चोर कह कर रोज उसका अपमान करते हैं। इसी झगड़े में आज दिनेश को खून भी निकल आया है।' कहते-कहते अतुल रोने लगा।
जोशी जी अचंभे में पड़े उसे देख रहे थे -- "अतुल यह तो बहुत बुरा हुआ। एक बार दोषी भले ही सजा से बच जाए किंतु निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। तभी दिनेश इतना चुप चुप और उदास रहता है। इसी वजह से शायद वह ढंग से पढ़ भी नहीं पाता होगा। इस बार उसके नंबर भी कम आए हैं लेकिन तुमने ऐसा क्यों किया ? इससे तुम्हें क्या मिला ?'
"सर, मुझे उससे बहुत चिढ़ हो गई थी। लगभग सब मेरी उससे तुलना करते हुए कहा करते थे कि मैं बारहों महीने घर पर भी मास्टर से पढ़ता हूँ, पढ़ने की हर सुविधा मुझे प्राप्त है फिर भी हर परीक्षा में कम अंक लाता हूँ। एक दिनेश है जिसके पास पढ़ने को पूरी पुस्तकें भी नहीं हैं फिर भी वह कितने अच्छे नंबर लाता है.. मेरे लिए शर्म की बात है।'
अत: उसे अपमानित करने के लिए ही मैंने ये शरारत की थी जो आज तक किसी दूसरे को नहीं पता। दिनेश को सजा मिलने की बात सुन कर भी मैं बहुत खुश हुआ था किंतु अब मेरा मन मुझे रोज धिक्कारता है।'
"तुमने यह बात मुझे बता कर बहुत अच्छा किया। प्रिंसीपल साहब तथा शर्मा जी को इसका पता चला तो तुम्हें सख्त सजा दिये बिना वे नहीं मानेंगे। पर दिनेश को निर्दोष साबित करने के लिए मुझे यह सब बातें उन्हें बतानी होंगी। बिना बताए काम नहीं चलेगा। अच्छा, अब तुम क्लास में जाओ।'
अतुल अब यह सोच कर दुखी था कि उसे सब लड़कों के सामने मार पड़ेगी फिर सब लड़के रोज चिढ़ाया करेंगे। उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। सारे समय उसे यही लगता रहा कि प्रिंसीपल साहब का बुलावा अब आया, बस अब आया।
"तुमने यह बात मुझे बता कर बहुत अच्छा किया। प्रिंसीपल साहब तथा शर्मा जी को इसका पता चला तो तुम्हें सख्त सजा दिये बिना वे नहीं मानेंगे। पर दिनेश को निर्दोष साबित करने के लिए मुझे यह सब बातें उन्हें बतानी होंगी। बिना बताए काम नहीं चलेगा। अच्छा, अब तुम क्लास में जाओ।'
अतुल अब यह सोच कर दुखी था कि उसे सब लड़कों के सामने मार पड़ेगी फिर सब लड़के रोज चिढ़ाया करेंगे। उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। सारे समय उसे यही लगता रहा कि प्रिंसीपल साहब का बुलावा अब आया, बस अब आया।
छुट्टी की घंटी बजते ही बस्ता उठाकर वह सबसे पहले स्कूल से बाहर निकल गया कि कहीं कोई रोक न ले।
दूसरे दिन प्रार्थना सभा में प्रार्थना के बाद जोशी जी आगे आए और बोले- "दिनेश यहाँ आओ। बच्चों, तुम्हें याद होगा कि कुछ दिन पूर्व कक्षा आठ के दिनेश को चोरी करने के अपराध में सजा दी गई थी लेकिन अब हमें ज्ञात हुआ है कि दिनेश ने चोरी नहीं की थी। उसे व्यर्थ की सजा मिली। इसका हमें बहुत ही दुख है। दिनेश ने किताब नहीं चुराई थी बल्कि शरारत वश एक लड़के ने किसी की किताब निकाल कर उसके बस्ते में रख दी थी। वह लड़का बहुत शर्मिंदा है और उसने स्वयं ही हमें यह बात बताई है।'
"सर उसका नाम बताइए। उसे कड़ी से कड़ी सजा दीजिए।' लड़कों के समूह में से आवाजें उभरीं।
डर से अतुल के पैर काँपने लगे।
"हाँ, यदि तुम लोगों की इच्छा होगी तो उसे सजा अवश्य दी जाएगी। सजा पाने के लिए वह तैयार है। दिनेश, उसका नाम तो तुम भी जानना चाहोगे ?'
दिनेश भौंचक्का-सा आँखें फाड़ कर यह सब देख-सुन रहा था, कुछ सोचकर बोला- "नहीं सर, मैं नाम जान कर क्या करूँगा ? कुछ देर से ही सही किंतु उस लड़के ने निश्चय ही मन से अपनी गलती महसूस की है तभी सजा की चिंता किए बिना उसने स्वयं ही यह सब बता दिया वर्ना आप सबको कैसे पता चलता कि मैं निर्दोष हूँ। वह जो भी है, मैं उसके प्रति आभारी हूँ कि उसने सच बोलने का साहस किया वर्ना मैं इस झूठे आरोप से इतना दुखी हो चुका था कि किसी दिन स्कूल आना बंद करके हमेशा के लिए पढ़ाई छोड़ देता। इस समय उसे दंड नहीं बल्कि सच बोलने का पुरस्कार मिलना चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि उसे आप कोई दंड न दें और उसका नाम भी न बतायें ।'
शर्माजी ने आगे बढ़ कर स्नेह से दिनेश की पीठ थपथपाई - "बहुत प्रतिभाशाली लड़का है। मैंने उस दिन इसकी बातों पर विश्वास नहीं किया था , व्यर्थ ही सजा दी। बेटे, तुम्हें मेरे विषय में कभी कोई दिक्कत महसूस हो तो नि:संकोच स्कूल में या घर पर मेरे पास आ सकते हो।'
स्कूल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा था । आठवें क्लास के छात्र समस्त अनुशासन भूल कर हर्ष मिश्रित ध्वनियाँ करते दिनेश की तरफ दौड़े। उससे पूर्व ही आगे बढ़ कर अतुल ने दिनेश को गले से लगा लिया था।
पंतग लूटने का मजा - real life inspirational stories
"देबू आज तो स्कूल की छुट्टी हो गई है,मेरे घर चल पतंग उड़ायेंगे' --सुमित ने कहा
"अरे यार अभी तो संक्रान्ति को आने में बहुत दिन हैं...इतने दिन पहले नहीं, वैसे भी अभी तो आसमान में एक भी पतंग उड़ती नहीं दिखाई दे रही।'
"शुरुआत हम ही करते हैं,तू देखना एक पतंग उड़ते अनेक पतंगें उड़ने लगेंगी।'
"सुमित, क्या बाजार में पंतग मिलनी शुरू हो गई ?'
"पता नहीं पर मेरे पास तो पिछले साल की बहुत सी पंतग रखी हैं ।'
"तेरी मम्मी गुस्सा तो नहीं करेंगी ?'
"नही मेरी मम्मी कुछ नहीं कहतीं,उन्हें घर -बाहर का काम ही इतना रहता है कि यह सब देखने की फुर्सत उनके पास नहीं है ।
" अरे वाह सुमित तेरी मम्मी तो बहुत अच्छी हैं...मेरी मम्मी की तो मेरे हर काम पर नजर रहती है। हर समय टोका टाकी करती रहती हैं कि यह करो यह मत करो ।'
"असल में मेरी मम्मी नौकरी करती हैं न इसलिये उनके पास यह सब देखने को समय नहीं रहता ।'
"पहले मेरी मम्मी भी काम करती थीं पर हम लोगों की देख भाल अच्छी तरह हो सके इसलिये काम छोड़ दिया ।'
"अच्छा...वैसे मेरे पापा भी यही चाहते थे पर मेरी मम्मी काम छोड़ने को तैयार नहीं थीं ...चल छोड़ इन सब बातों को ... पतंग ले कर छत पर चलते हैं ।'
"ठीक है चलते हैं ।'
"वैसे देबू मुझे पतंग उड़ाने की तुलना में लूटने में ज्यादा मजा आता है...पतंग लूटने के चक्कर में एक बार तो मैं छत से नीचे गिरते गिरते बचा था।'
"फिर भी तेरे मम्मी पापा तुझे पतंग उड़ाने देते हैं ?'
"मैं ने यह बात किसी को नहीं बताई वरना मेरा पतंग उड़ाना बंद हो जाता ।'
"सुमित ,मेरी मम्मी ने मुझे एक ही शर्त पर पतंग उड़ाने की छूट दी है कि मैं सिर्फ पतंग उड़ाऊं ,कटी पतंग को लूटने की कोशिश बिल्कुल न करूँ ।'
"फिर तू उनकी आज्ञा का पालन करता है ?'
"हाí मैं पतंग लूटने उसके पीछे नहीं भागता ।पतंग लूटने के चक्कर में जान जा सकती है।सब से बुरा तो तब होता है कि जान तो जैसे तैसे बच गई पर जिन्दगी भर के लिए अपाहिज हो गए ।असल में मेरे एक चाचा हैं। वह दूसरे शहर में रहते हैं, वो बैसाखी के सहारे चलते हैं ।पापा ने बताया था कि वह बचपन में पतंग लूटने के चक्कर में छत से गिर पड़े थे ।....
उनकी हालत देख कर मैं ने मम्मी पापा से वायदा किया था कि मैं पतंग लूटने की कोशिश कभी नहीं करूँगा।..पिछले वर्ष अखवार में पढ़ा था कि एक बच्चा छत पर पड़ी लोहे की रौड से कटी पतंग रोकने के कोशिश कर रहा था,रौड हाइ टेंशन वायर से छू गई ।बच्चे की वहीं मौत हो गई थी ।'
"हाँ पतंग के दिनों में एसी कई दुर्घटनायें हर वर्ष होती हैं...पर दोस्त देबू मैं भी आज तुझ से वादा करता हूँ कि कटी पतंग को पकड़ने की कोशिश कभी नहीं करूँगा।'
थोड़ी सी सूझबूझ - motivation story hindi
बहुत दिन अनुपस्थित रहने के बाद अंगद को स्कूल आया देख कर उसके दोस्त सोमेश ने पूँछा -
"अंगद तुम तो बहुत रेगुलर हो पर इतने दिनों से स्कूल क्यों नहीं आ रहे थे ?'
उदास स्वर में अंगद ने कहा--"सोमेश ,मेरे दादा जी नहीं रहे ।'
"अरे , क्या वो बीमार थे ?'
"वैसे उन्हें बी. पी. हाई रहता था तो उसकी वह दवा खाते थे।पर इस समय तो बिल्कुल ठीक थे।मेरी तीन चार दिन की छुट्टी थीं तो दादा,दादी बोले चलो हरिद्वार चलते हैं। गंगा नहा कर एक दो दिन वहाँ रुकेंगे।'… मैं भी तैयार हो गया।...मुझे क्या पता था कि ऐसा हो जाएगा।'
"तो क्या उनकी मौत हरिद्वार जा कर हुई थी ?'
"नहीं हरिद्वार जाते समय ट्रेन में उनकी तबियत खराब हो गई थी।टाइलेट से लौटे तो पसीने में भीगे हुए थे। मैं ने और दादी ने उन्हें बर्थ पर लिटा कर पानी पिलाया फिर उनकी हवा करने लगे । साथ ही गाड़ी हरिद्वार पहुंचने का इंतजार करने लगे।'
"हरिद्वार कितनी दूर रह गया था ?'
"करीब दो घन्टे का रास्ता बचा था ।'
"फिर तुमने कोई मेडिकल ऐड देने की कोशिश नहीं की ?'
"मैं क्या मदद करता... मैं कोई डाक्टर तो था नहीं।'
"अरे यार मरीज की मदद करने के लिए डाक्टर होना जरूरी नहीं होता। मेरे पापा एक बार दिल्ली से ट्रेन में अकेले आ रहे थे। उनकी तबियत एक दम से खराब हो गई था। उनके साथ के लोगों ने जैसे ही उनकी हालत बिगड़ते देखी वह लोग एक दम से एक्टिव हो गए।हर केबिन में जाकर पूछा कि आप में से कोई डाक्टर हैं क्या और उन में से एक डाक्टर निकल आया। दवाएं उनके पास थीं,उनसे पापा को आराम हो गया।'
"उन्हें क्या हुआ था ?'
"लूज मोशन्स और वोमेटिंग । ऐसे संकट के समय में टी टी से भी तुरंत सम्पर्क करना चाहिए। वह निकटतम स्टेशन पर डाक्टर की व्यवस्था कर के रख सकता हैं,ट्रेन में भी उनकी नजर में कोई डाक्टर हो तो बुला कर मदद कर सकता है।...कहने का मतलब यह कि कोशिश करने पर मदद की उम्मीद बढ़ जाती है।'
"हाँ यार तू ठीक कह रहा है। मैं उनकी हालत देख कर इतना घबड़ा गया था कि कुछ सूझा ही नहीं। हो सकता है हमारे भी आस पास की बोगी में कोई डाक्टर रहा हो या मैं टी टी से कहता तो वह भी कुछ मदद कर सकता था। कितना डफर हूँ मैं। काश मेरे दिमाग में भी यह ख्याल आया होता..अटैक के बाद दादा जी हरिद्वार तक जीवित रहे थे,स्टेशन पर उतरने के बाद जब तक डाक्टर साहब आए तब तक उनकी मौत हो चुकी थी ।'
"बाप रे, अंगद अकेले तूने यह सब कैसे संभाला होगा। फिर तुम उनके शव को यहाँ ले कर आए थे या वहाँ पर ही अंतिम संस्कार कर दिया था ?'
"अरे यार बड़ा मुश्किल समय था वह। अनजान शहर था । पुलिस ऐसे पूछताछ कर रही थी जैसे हमने उनकी हत्या कर दी हो। मोबाइल पास में था ,निकट के रिश्तेदारों को सूचना दी। तो पता लगा कि हमारे एक रिश्तेदार उस समय गंगा नहाने हरिद्वार आए हुए थे। समाचार मिलते ही वह स्टेशन आ गए। आते ही उन्हों ने सब स्थिति संभाल ली थी।. .. फिर धीरे धीरे परिवार के अन्य लोग आ गए। दूसरे दिन सुबह हरिद्वार में ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था। कभी कभी मैं गिल्टी महसूस करता हूँ...समय पर मदद मिल जाती तो शायद दादा जी बच जाते।'
"अंगद, अपने को दोष देने से कोई फायदा नहीं है। तेरी जगह मैं होता तो शायद मैं भी कुछ नहीं कर पाता। वह तो पापा को इस तरह की मदद ट्रेन में मिली थी तो हमें लगा था कि उनके साथ यात्रा कर रहे लोग कितने होशियार और सूझ बूझ वाले थे। हमारे सामने उन्हों ने एक उदाहरण पेश किया था कि अचानक आए संकट से घबड़ाना नहीं चाहिए । थोड़ी सूझबूझ से उसका सामना करना चाहिए।.....चल अब क्लास में चलते हैं।'
"अंगद तुम तो बहुत रेगुलर हो पर इतने दिनों से स्कूल क्यों नहीं आ रहे थे ?'
उदास स्वर में अंगद ने कहा--"सोमेश ,मेरे दादा जी नहीं रहे ।'
"अरे , क्या वो बीमार थे ?'
"वैसे उन्हें बी. पी. हाई रहता था तो उसकी वह दवा खाते थे।पर इस समय तो बिल्कुल ठीक थे।मेरी तीन चार दिन की छुट्टी थीं तो दादा,दादी बोले चलो हरिद्वार चलते हैं। गंगा नहा कर एक दो दिन वहाँ रुकेंगे।'… मैं भी तैयार हो गया।...मुझे क्या पता था कि ऐसा हो जाएगा।'
"तो क्या उनकी मौत हरिद्वार जा कर हुई थी ?'
"नहीं हरिद्वार जाते समय ट्रेन में उनकी तबियत खराब हो गई थी।टाइलेट से लौटे तो पसीने में भीगे हुए थे। मैं ने और दादी ने उन्हें बर्थ पर लिटा कर पानी पिलाया फिर उनकी हवा करने लगे । साथ ही गाड़ी हरिद्वार पहुंचने का इंतजार करने लगे।'
"हरिद्वार कितनी दूर रह गया था ?'
"करीब दो घन्टे का रास्ता बचा था ।'
"फिर तुमने कोई मेडिकल ऐड देने की कोशिश नहीं की ?'
"मैं क्या मदद करता... मैं कोई डाक्टर तो था नहीं।'
"अरे यार मरीज की मदद करने के लिए डाक्टर होना जरूरी नहीं होता। मेरे पापा एक बार दिल्ली से ट्रेन में अकेले आ रहे थे। उनकी तबियत एक दम से खराब हो गई था। उनके साथ के लोगों ने जैसे ही उनकी हालत बिगड़ते देखी वह लोग एक दम से एक्टिव हो गए।हर केबिन में जाकर पूछा कि आप में से कोई डाक्टर हैं क्या और उन में से एक डाक्टर निकल आया। दवाएं उनके पास थीं,उनसे पापा को आराम हो गया।'
"उन्हें क्या हुआ था ?'
"लूज मोशन्स और वोमेटिंग । ऐसे संकट के समय में टी टी से भी तुरंत सम्पर्क करना चाहिए। वह निकटतम स्टेशन पर डाक्टर की व्यवस्था कर के रख सकता हैं,ट्रेन में भी उनकी नजर में कोई डाक्टर हो तो बुला कर मदद कर सकता है।...कहने का मतलब यह कि कोशिश करने पर मदद की उम्मीद बढ़ जाती है।'
"हाँ यार तू ठीक कह रहा है। मैं उनकी हालत देख कर इतना घबड़ा गया था कि कुछ सूझा ही नहीं। हो सकता है हमारे भी आस पास की बोगी में कोई डाक्टर रहा हो या मैं टी टी से कहता तो वह भी कुछ मदद कर सकता था। कितना डफर हूँ मैं। काश मेरे दिमाग में भी यह ख्याल आया होता..अटैक के बाद दादा जी हरिद्वार तक जीवित रहे थे,स्टेशन पर उतरने के बाद जब तक डाक्टर साहब आए तब तक उनकी मौत हो चुकी थी ।'
"बाप रे, अंगद अकेले तूने यह सब कैसे संभाला होगा। फिर तुम उनके शव को यहाँ ले कर आए थे या वहाँ पर ही अंतिम संस्कार कर दिया था ?'
"अरे यार बड़ा मुश्किल समय था वह। अनजान शहर था । पुलिस ऐसे पूछताछ कर रही थी जैसे हमने उनकी हत्या कर दी हो। मोबाइल पास में था ,निकट के रिश्तेदारों को सूचना दी। तो पता लगा कि हमारे एक रिश्तेदार उस समय गंगा नहाने हरिद्वार आए हुए थे। समाचार मिलते ही वह स्टेशन आ गए। आते ही उन्हों ने सब स्थिति संभाल ली थी।. .. फिर धीरे धीरे परिवार के अन्य लोग आ गए। दूसरे दिन सुबह हरिद्वार में ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था। कभी कभी मैं गिल्टी महसूस करता हूँ...समय पर मदद मिल जाती तो शायद दादा जी बच जाते।'
"अंगद, अपने को दोष देने से कोई फायदा नहीं है। तेरी जगह मैं होता तो शायद मैं भी कुछ नहीं कर पाता। वह तो पापा को इस तरह की मदद ट्रेन में मिली थी तो हमें लगा था कि उनके साथ यात्रा कर रहे लोग कितने होशियार और सूझ बूझ वाले थे। हमारे सामने उन्हों ने एक उदाहरण पेश किया था कि अचानक आए संकट से घबड़ाना नहीं चाहिए । थोड़ी सूझबूझ से उसका सामना करना चाहिए।.....चल अब क्लास में चलते हैं।'
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मुकुल की दीपावली - best motivation story hindi
पापा के स्थानांतरण का समाचार सुन कर मुकुल उदास हो गया था। अब फिर एक नई जगह, नया स्कूल, नये साथी, नये शिक्षक। पता नहीं नई जगह उसका मन लगेगा या नहीं लेकिन जाना तो था ही। अभी वह पाँचवीं क्लास पास कर चुका था। नये स्कूल में दाखिला लेते समय भी वह उत्साहित नहीं था। कक्षा में मुकुल के बराबर की सीट पर सुकेश बैठता था। धीरे-धीरे वह दोनों एक-दूसरे के घनिष्ठ मित्र बन गए और मुकुल की उदासी कहीं गुम होती चली गई।
सुकेश के घर से स्कूल करीब एक किलोमीटर दूर था। वह पैदल ही स्कूल जाया करता था। रास्ते में मुकुल का घर पड़ता था। सुकेश मुकुल को उसके घर से लेते हुए साथ स्कूल जाता था। दोनों साथ ही लौटते थे। स्कूल में भी साथ ही खेलना, साथ ही खाना।
दीपावली के चार-पाँच दिन पहले सुकेश ने मुकुल से कहा, "आज स्कूल से लौटते समय कुछ पटाखे, बम आदि लेते हुए घर चलेंगे...तुम्हें चाहिए तो तुम भी खरीद लेना।'
पटाखों का नाम सुनते ही मुकुल की आँखों में चमक आ गई फिर एकाएक वह उदास हो गया और बोला- "मैं तुम्हारे साथ चलूँगा लेकिन पटाखे नहीं ख़रीदूँगा। हमारे घर दीपावली नहीं मनाई जाती।"
"अरे दीपावली तो हम हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। तुम्हारे यहाँ दीपावली क्यों नहीं मनाई जाती ?'
"पहले हमारे घर में भी दीपावली मनाई जाती थी....करीब सात वर्ष पहले जब मैं चार वर्ष का था तब मेरी बहन की मृत्यु दीपावली के दिन हो गई थी। तब से हमारे घर में दीपावली नहीं मनाई जाती।'
'अरे यह तो पुरानी बातें हैं इन को अब कौन मानता है,तुम्हारे घर में जरूर तुम्हारे दादा-दादी होंगे इसी लिए तुम्हारे यहाँ दीपावली को खोटा मान लिया गया है।'
"हमारे दादा-दादी नहीं हैं और हमारे यहाँ इस त्योहार को खोटा भी नहीं माना जाता पर इस दिन मम्मी-पापा बहुत उदास हो जाते हैं...हमारे एक ही बहन थी...उसकी याद आ जाती है फिर दीपावली मनाने का मन ही नहीं करता।'
"क्या हुआ था तुम्हारी बहन को ?' सुकेश ने पूछा।
"मेरी बहन के ह्यदय में छेद था। मुझ से वह दो वर्ष बड़ी थी। दीपावली के दिन अचानक उसकी तबियत खराब हो गई। दीपावली का दिन होने की वजह से डॉक्टर भी समय से नहीं मिल पाए। अस्पताल तक जाते-जाते रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई थी।"
मुकुल को सांत्वना देते हुए सुकेश बोला, "यह तो सचमुच बहुत बुरा हुआ, वैसे भी एक बहन तो सब की होनी ही चाहिये ।घर की रौनक बहन से ही होती है... एक बात बताओ, तुम्हारा मन दीपावली मनाने को नहीं करता ?'
"सच कहूँ सुकेश, दीपावली का न मनाया जाना तो मुझे बुरा नहीं लगता लेकिन अब पटाखे, बम, अनार जलाने को मेरा भी मन करने लगा है।'
"कोई बात नहीं मुकुल, आज मैं भी पटाखे नहीं ख़रीदूँगा। अपन सीधे घर जाएँगे।'
सुकेश के घर से स्कूल करीब एक किलोमीटर दूर था। वह पैदल ही स्कूल जाया करता था। रास्ते में मुकुल का घर पड़ता था। सुकेश मुकुल को उसके घर से लेते हुए साथ स्कूल जाता था। दोनों साथ ही लौटते थे। स्कूल में भी साथ ही खेलना, साथ ही खाना।
दीपावली के चार-पाँच दिन पहले सुकेश ने मुकुल से कहा, "आज स्कूल से लौटते समय कुछ पटाखे, बम आदि लेते हुए घर चलेंगे...तुम्हें चाहिए तो तुम भी खरीद लेना।'
पटाखों का नाम सुनते ही मुकुल की आँखों में चमक आ गई फिर एकाएक वह उदास हो गया और बोला- "मैं तुम्हारे साथ चलूँगा लेकिन पटाखे नहीं ख़रीदूँगा। हमारे घर दीपावली नहीं मनाई जाती।"
"अरे दीपावली तो हम हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। तुम्हारे यहाँ दीपावली क्यों नहीं मनाई जाती ?'
"पहले हमारे घर में भी दीपावली मनाई जाती थी....करीब सात वर्ष पहले जब मैं चार वर्ष का था तब मेरी बहन की मृत्यु दीपावली के दिन हो गई थी। तब से हमारे घर में दीपावली नहीं मनाई जाती।'
'अरे यह तो पुरानी बातें हैं इन को अब कौन मानता है,तुम्हारे घर में जरूर तुम्हारे दादा-दादी होंगे इसी लिए तुम्हारे यहाँ दीपावली को खोटा मान लिया गया है।'
"हमारे दादा-दादी नहीं हैं और हमारे यहाँ इस त्योहार को खोटा भी नहीं माना जाता पर इस दिन मम्मी-पापा बहुत उदास हो जाते हैं...हमारे एक ही बहन थी...उसकी याद आ जाती है फिर दीपावली मनाने का मन ही नहीं करता।'
"क्या हुआ था तुम्हारी बहन को ?' सुकेश ने पूछा।
"मेरी बहन के ह्यदय में छेद था। मुझ से वह दो वर्ष बड़ी थी। दीपावली के दिन अचानक उसकी तबियत खराब हो गई। दीपावली का दिन होने की वजह से डॉक्टर भी समय से नहीं मिल पाए। अस्पताल तक जाते-जाते रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई थी।"
मुकुल को सांत्वना देते हुए सुकेश बोला, "यह तो सचमुच बहुत बुरा हुआ, वैसे भी एक बहन तो सब की होनी ही चाहिये ।घर की रौनक बहन से ही होती है... एक बात बताओ, तुम्हारा मन दीपावली मनाने को नहीं करता ?'
"सच कहूँ सुकेश, दीपावली का न मनाया जाना तो मुझे बुरा नहीं लगता लेकिन अब पटाखे, बम, अनार जलाने को मेरा भी मन करने लगा है।'
"कोई बात नहीं मुकुल, आज मैं भी पटाखे नहीं ख़रीदूँगा। अपन सीधे घर जाएँगे।'
आज दीपावली थी। सुकेश दोपहर को अचानक मुकुल के घर चला आया और मुकुल की
मम्मी से बोला - "आंटी, मैं मुकुल को अपने घर ले जाना चाहता हूँ। हम साथ-साथ दीपावली मनाएँगे, सुबह उसे वापस भेज दूँगा।'
"लेकिन बेटे, हम ने बहुत दिन से दीपावली नहीं मनाई।' आँखें पोंछते हुए मुकुल की मम्मी ने कहा।
सुकेश कुछ कहता, उससे पहले ही मुकुल के पिताजी बोले - "हाँ रेखा यह सही है कि हमने बहुत दिन से दीपावली नहीं मनाई पर हमारे घर दीपावली मनाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है... तब मुकुल छोटा था और पटाखों से डरता था और हमारा दुख भी ताजा था इसलिए दीपावली मनाने का मन नहीं करता था ....पर अब मुकुल बड़ा हो रहा है उसका मन भी पटाखे जलाने को करता होगा। यह उम्र हंसने-खेलने की है... मायूस होकर घर में बैठने की नहीं।..इस वर्ष से हम भी दीपावली मनाएँगे।'
"ठीक है बेटे, तुम्हारे पापा ने इजाजत दे दी है तो कपड़े बदल कर चले जाओ लेकिन पटाखे छोड़ने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना। एक बाल्टी पानी पास में अवश्य रखना ताकि गलती से किसी के कपड़ों में आग लग जाए तो बुझाई जा सके। लंबी स्टिक से पटाखे को आग लगाना। पटाखों के बंडल को पटाखे जलाने की जगह से दूर रखना....हो सके तो घर के बड़े सदस्यों की देख-रेख में बम, अनार, रॉकेट आदि जलाना।'
मम्मी ने कुछ रुपये मुकुल को देते हुए कहा - "इन से तुम पटाखे खरीद लाना।'
" मैं बाजार से मिठाई,दीये और पूजा का सामान लेने जा रहा हूँ...पटाखे खरीद कर तुम दोनों पहले यहाँ दीपावली मनाओ फिर दोस्तों के साथ मनाना।'
"थैंक्यू मम्मी, थैंक्यू पापा' कहते हुए मुकुल के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई और वह सुकेश के साथ पटाखे लेने चल पड़ा।
विकलांगता का दुख -- short hindi motivational story
मदन ने जब आँखें खोलीं तो सामने पिता, माँ व दादी खड़े थे। उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई तो जगह अनजानी लगी।
"माँ मैं कहाँ हूँ ?'
"बेटे, तुम अस्पताल में हो। कल स्कूल जाते समय तुम्हारी कार का एक्सीडेंट हो गया था।'
"मेरी आँख पर यह पट्टी क्यों है ? हाथ पर भी प्लास्टर है। क्या हाथ की हड्डी टूट गई है ?'
"हाँ बेटे, तुम्हारे हाथ की हड्डी टूट गई है। एक आँख में भी चोट लगी है।'
आँख में चोट लगने की बात सुन कर मदन घबरा गया, "आँख में चोट ? माँ कहीं ऐसा तो नहीं कि इस एक आँख से अब मैं देख ही न पाऊँ ?'
"ऐसा कुछ नहीं होगा। तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे ।'
मदन आँखें बंद करके लेट गया। उसे बहुत सी बातें याद आ रही थीं। पिछले वर्ष कक्षा में सोनू के प्रथम आने पर उसने अपने मित्र अमित से कहा था, "यार, इस बार तो लँगड़े सोनू ने बाजी मार ली।'
अमित को उसकी बात पसंद नहीं आई थी। उसने कहा था, "मदन, क्या तू खाली सोनू नहीं कह सकता। नाम से पहले लँगड़ा या ऐसा कोई भी विशेषण लगाना जरूरी है ? शर्म की बात है हमारे लिए कि शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बाद भी पढ़ाई में हम उससे पीछे हैं।'
"लँगड़ा है, इसीलिए तो प्रथम आ गया। न तो वह खेल सकता है और न कहीं ज्यादा आ जा सकता है। खाली बैठा क्या करे ... पढ़ता रहता होगा।...ज्यादा पढ़ेगा तो प्रथम तो आएगा ही।'
अमित ने कहा, "मदन, ये सब फालतू के तर्क हैं। पता नहीं दूसरों की कमियाँ ढूँढ़ने में तुझे क्या मजा आता है। हमें दूसरों की अच्छाई देखनी चाहिए। दिलीप के हाथ में छह उँगली हैं तो तू उसे छंगा कहता है। मोहन को हकला कहता है। सुरेश को मोटा होने की वजह से हाथी कहता है। यह अच्छी बात नहीं है। शारीरिक दोष तो किसी में कभी भी आ सकता है।एक दुर्घटना में सोनू की टाँग कट गई थी तो वह लँगड़ा कर चलता है। तू किसी की शारीरिक कमी का मजाक उड़ाना छोड़ दे।'
ये बातें याद करके मदन रोने लगा था । उसे लगा कि वह अब एक आँख से देख नहीं पाएगा।
माँ-पापा यहाँ तक कि डॉक्टर ने भी उसे विश्वास दिलाया था कि वह ठीक हो जाएगा।
लेकिन कुछ भी ठीक नहीं हुआ था। आँख में कार का शीशा चुभ गया था। डॉक्टर उसकी आँख नहीं बचा पाए। उसे एक कृत्रिम आँख लगा दी गई थी। वह अपने कमरे में बैठा रहता। सोचता रहता था कि नकली आँख देख कर बच्चे उसका मजाक उड़ाएँगे।
माता-पिता ने उसे बहुत समझाया लेकिन स्कूल भेजने में सफल नहीं हुए फिर अमित ने ही मदन को समझाया था और कहा था, "यह तुम्हारा भ्रम है। कोई मजाक नहीं उड़ाएगा। नवाब पटौदी की भी एक आँख दुर्घटना में खराब हो गई थी। उनकी भी कृत्रिम आँख लगी थी । उसके बाद भी वह विज्ञापनों में काम कर रहे और जहाँ तक मुझे याद पड़ता है बाद में भी वह क्रिकेट खेले हैं। उनकी योग्यता के सामने शारीरिक दोष छिप गया। तुम भी इस दुर्घटना को भूल जाओ और मेरे साथ स्कूल चलो। सब तुम्हें बहुत याद करते हैं।'
दुर्घटना के बहुत दिन बाद आज वह स्कूल गया था। शिक्षक व कक्षा के सभी छात्रों ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया था। सोनू भी हमेशा की तरह उससे बड़ी गर्मजोशी से मिला था लेकिन मदन सोनू से नजर नहीं मिला पा रहा था। वह स्वयं को शर्मिंदा महसूस कर रहा था। विकलांगता का दुख उसकी समझ में आ गया था। अब उसे दूसरे की तकलीफों का एहसास होने लगा था। बिना कुछ कहे उसने सोनू को गले से लगा लिया। दोनों की आँखों में आँसू थे।.
पानी के बताशे - hindi story with moral
ट्यूशन पढ़ कर लौटते हुए शालिनी की नजर चाट के ठेले पर पड़ी। गोल गप्पे देख कर उस के मुंह में पानी भर आया।उसने अपनी सहेली से कहा -- "रोहिणी देख सामने की बंडी पर पानी के बताशे मिल रहे हैं ।"
"तुम इन्हें पानी के बताशे बोलती हो, हम इन्हें गोल गप्पे कहते हैं।''
"हाँ कुछ लोग पानी पूरी भी कहते हैं पर यार है बड़े मजे की चीज। इन्हें देख कर तो मेरे मुंह में पानी आ रहा है,चल खाते हैं।''
"नहीं शालिनी मैं बाहर के गोल गप्पे कभी नहीं खाती । मेरी मम्मी ने कभी खाने ही नहीं दिए। सब से ज्यादा इंफैक्शन की जड़ हैं ये ।''
" वो कैसे ?''
" देख शालिनी आज कल पीने का पानी कितना गंदा आ रहा है। अपने घरों में एक्वागार्ड या इसी तरह की पानी साफ करने की कोई न कोई मशीन लगी है।... पर इनके पानी का कोई भरोसा नहीं है।''
" हाँ सो तो है।''
" देख जिन हाथों से ये रुपए पैसे लेते हैं, उन्ही हाथों से यह चाट बना रहे हैं...इन्ही से घड़े में हाथ डुबो कर बताशों में पानी भर भर कर लोगों कों खिलाते भी जा रहे हैं। इस तरह हाथ की सारी गंदगी उस पानी में घुलती जाती है।''
"हाँ रोहिणी बात तो तूने बिलकुल सच कही है पर यह रूपए पैसे वाली बात मेरी समझ में नहीं आई।''
" ये रुपए पैसे सैंकड़ों लोगों के हाथ से गुजरते हैं।जैसे हम खाँसते या छींकते समय मुंह पर हाथ रखते हैं, हाथ गंदे हो गए न,सफाई कर्मचारी कचरा उठा रहा है किसी ने रूपए दिए तो उन्हीं हाथों से ले कर उसने जेब में रख लिए ... कहने मतलब यह है कि रूपए पैसे लेते देते समय हाथों की गंदगी रुपयों में लगती रहती है और रुपयों की यात्रा जारी रहती है । ''
" ओ हाँ रोहिणी रुपए पैसे तो वाकई गंदे होते हैं। यह गंदगी भी हाथों द्वारा पानी में घुल जाती होगी । छी, अब तो मैं बाहर पानी के बताशे कभी भी नहीं खाऊंगी।...पर ये मुझे बहुत पसंद हैं तुझे अच्छे नहीं लगते ?'
" अच्छे क्यों नहीं लगते शालिनी, मुझे भी बहुत पसंद हैं । मैं खाती भी हूँ पर घर पर ।...आजकल तो बाजार में गोल गप्पों का पैकेट मिलता है,पापा वही ले आते हैं।मम्मी आलू ओर मटरा उबाल लेती हैं और पानी भी घर में ही बना लेती हैं ।इस तरह हम लोग तो अक्सर घर में खाते ही रहते हैं ।''
" पर बाहर का पानी बहुत मजेदार होता है ,वैसा घर में नहीं बन पाता होगा ।''
" घर में भी अच्छा बन जाता है,मम्मी तो धनियां ,पोधीना जाने क्या क्या डाल कर बनाती हैं,सब मसालों का खेल है। वैसे बाजार में पानी पुड़ी मसाले का पैकेट भी आता है।...पर सब से खास बात शालिनी यह है कि स्वाद के चक्कर में हम स्वास्थ्य से खिलवाड़ तो नहीं कर सकते न ।''
" बिलकुल ठीक कहा तूने रोहिणी ,स्वास्थ्य से खिलवाड़ का मतलब है ...डाक्टर्स के चक्कर लगाओ, दवाएं खाओ।... मतलब समय व धन दोनो की बरबादी।''
"हाँ कुछ लोग पानी पूरी भी कहते हैं पर यार है बड़े मजे की चीज। इन्हें देख कर तो मेरे मुंह में पानी आ रहा है,चल खाते हैं।''
"नहीं शालिनी मैं बाहर के गोल गप्पे कभी नहीं खाती । मेरी मम्मी ने कभी खाने ही नहीं दिए। सब से ज्यादा इंफैक्शन की जड़ हैं ये ।''
" वो कैसे ?''
" देख शालिनी आज कल पीने का पानी कितना गंदा आ रहा है। अपने घरों में एक्वागार्ड या इसी तरह की पानी साफ करने की कोई न कोई मशीन लगी है।... पर इनके पानी का कोई भरोसा नहीं है।''
" हाँ सो तो है।''
" देख जिन हाथों से ये रुपए पैसे लेते हैं, उन्ही हाथों से यह चाट बना रहे हैं...इन्ही से घड़े में हाथ डुबो कर बताशों में पानी भर भर कर लोगों कों खिलाते भी जा रहे हैं। इस तरह हाथ की सारी गंदगी उस पानी में घुलती जाती है।''
"हाँ रोहिणी बात तो तूने बिलकुल सच कही है पर यह रूपए पैसे वाली बात मेरी समझ में नहीं आई।''
" ये रुपए पैसे सैंकड़ों लोगों के हाथ से गुजरते हैं।जैसे हम खाँसते या छींकते समय मुंह पर हाथ रखते हैं, हाथ गंदे हो गए न,सफाई कर्मचारी कचरा उठा रहा है किसी ने रूपए दिए तो उन्हीं हाथों से ले कर उसने जेब में रख लिए ... कहने मतलब यह है कि रूपए पैसे लेते देते समय हाथों की गंदगी रुपयों में लगती रहती है और रुपयों की यात्रा जारी रहती है । ''
" ओ हाँ रोहिणी रुपए पैसे तो वाकई गंदे होते हैं। यह गंदगी भी हाथों द्वारा पानी में घुल जाती होगी । छी, अब तो मैं बाहर पानी के बताशे कभी भी नहीं खाऊंगी।...पर ये मुझे बहुत पसंद हैं तुझे अच्छे नहीं लगते ?'
" अच्छे क्यों नहीं लगते शालिनी, मुझे भी बहुत पसंद हैं । मैं खाती भी हूँ पर घर पर ।...आजकल तो बाजार में गोल गप्पों का पैकेट मिलता है,पापा वही ले आते हैं।मम्मी आलू ओर मटरा उबाल लेती हैं और पानी भी घर में ही बना लेती हैं ।इस तरह हम लोग तो अक्सर घर में खाते ही रहते हैं ।''
" पर बाहर का पानी बहुत मजेदार होता है ,वैसा घर में नहीं बन पाता होगा ।''
" घर में भी अच्छा बन जाता है,मम्मी तो धनियां ,पोधीना जाने क्या क्या डाल कर बनाती हैं,सब मसालों का खेल है। वैसे बाजार में पानी पुड़ी मसाले का पैकेट भी आता है।...पर सब से खास बात शालिनी यह है कि स्वाद के चक्कर में हम स्वास्थ्य से खिलवाड़ तो नहीं कर सकते न ।''
" बिलकुल ठीक कहा तूने रोहिणी ,स्वास्थ्य से खिलवाड़ का मतलब है ...डाक्टर्स के चक्कर लगाओ, दवाएं खाओ।... मतलब समय व धन दोनो की बरबादी।''
" देख शालिनी सामने की दुकान पर गोल गप्पों का पैकेट मिल रहा है।चल लेते हैं साथ ही इसके मसाले का पैकेट भी ले लेंगे।''
" पर पानी कौन बनाएगा ?''
" शालिनी,पहले मेरे घर चल मम्मी से पानी बनवा लेंगे,तू भी देख लेना कैसे बनता है।..हमारी फ्रिज में हमेशा कुछ उबले आलू जरूर रहते हैं।...अब तू गोल गप्पे खा कर ही जाना और हाँ हमारे घर से अपनी मम्मी को फोन कर देना...वरना वह चिन्ता करेंगी।''
" अरे मेरे मुंह में तो फिर पानी आने लगा '' दोनो हँसती हैं
" पर पानी कौन बनाएगा ?''
" शालिनी,पहले मेरे घर चल मम्मी से पानी बनवा लेंगे,तू भी देख लेना कैसे बनता है।..हमारी फ्रिज में हमेशा कुछ उबले आलू जरूर रहते हैं।...अब तू गोल गप्पे खा कर ही जाना और हाँ हमारे घर से अपनी मम्मी को फोन कर देना...वरना वह चिन्ता करेंगी।''
" अरे मेरे मुंह में तो फिर पानी आने लगा '' दोनो हँसती हैं
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