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यदि आप प्राइवेट स्कूलों कि मनमानी से परेशान हैं

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आप शिकायत कर सकते है इस मेल ई. डी पर

गन्दा तालाब

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फ्रेडी मेंढक एक तालाब के पास से गुजर रहा था , तभी उसे किसी की दर्द भरी आवाज़ सुनाई दी . उसने रुक के देखा तो फ्रैंक नाम का एक मेंढक उदास बैठा हुआ था . ” क्या हुआ , तुम इतने उदास क्यों हो ?” , फ्रेडी ने पुछा . ” देखते नहीं ये तालाब कितना गन्दा है …यहाँ ज़िन्दगी कितनी कठिन है ,” फ्रैंक ने बोलना शुरू किया , “पहले यहाँ इतने सारे कीड़े-मकौड़े हुआ करते थे …पर अब मुश्किल से ही कुछ खाने को मिल पाता है …अब तो भूखों मरने की नौबत आ गयी है .” फ्रेडी बोला , ” मैं करीब के ही एक तालाब में रहता हूँ , वो साफ़  है और वहां बहुत सारे कीड़े -मकौड़े भी मौजूद हैं , आओ तुम भी वहीँ चलो .” ” काश यहाँ पर ही खूब सारे कीड़े होते तो मुझे हिलना नहीं पड़ता .”, ” फ्रैंक मायूस होते हुए बोला . फ्रेडी ने समझाया , “लेकिन अगर तुम वहां चलते हो तो तुम पेट भर के कीड़े खा सकते हो !” ” काश मेरी जीभ इतनी लम्बी होती कि मैं यहीं बैठे -बैठे दूर -दूर तक के कीड़े पकड़ पाता …और मुझे यहाँ से हिलना नहीं पड़ता ..”, फ्रैंक हताश होते हुए बोला . फ्रेडी ने फिर से समझाया , ” ये तो तुम भी जानते हो कि तुम्हारी जीभ कभी इत...

सच्ची मदद

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एक नन्हा परिंदा अपने परिवार-जनों से बिछड़ कर अपने आशियाने से बहुत दूर आ गया था । उस नन्हे परिंदे को अभी उड़ान भरने अच्छे से नहीं आता था… उसने उड़ना सीखना अभी शुरू ही किया था ! उधर नन्हे परिंदे के परिवार वाले बहुत परेशान थे और उसके आने की राह देख रहे थे । इधर नन्हा परिंदा भी समझ नहीं पा रहा था कि वो अपने आशियाने तक कैसे पहुंचे? वह उड़ान भरने की काफी कोशिश कर रहा था पर बार-बार कुछ ऊपर उठ कर गिर जाता। कुछ दूर से एक अनजान परिंदा अपने मित्र के साथ ये सब दृश्य बड़े गौर से देख रहा था । कुछ देर देखने के बाद वो दोनों परिंदे उस नन्हे परिंदे के करीब आ पहुंचे । नन्हा परिंदा उन्हें देख के पहले घबरा गया फिर उसने सोचा शायद ये उसकी मदद करें और उसे घर तक पहुंचा दें । अनजान परिंदा – क्या हुआ नन्हे परिंदे काफी परेशान हो ? नन्हा परिंदा – मैं रास्ता भटक गया हूँ और मुझे शाम होने से पहले अपने घर लौटना है । मुझे उड़ान भरना अभी अच्छे से नहीं आता । मेरे घर वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे । आप मुझे उड़ान भरना सीखा सकते है ? मैं काफी देर से कोशिश कर रहा हूँ पर कामयाबी नहीं म...

दोस्ती की आग

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अली नाम के एक लड़के को पैसों की सख्त ज़रुरत थी . उसने अपने मालिक से मदद मांगी . मालिक पैसे देने को तैयार हो गया पर उसने एक शर्त रखी . शर्त ये थी कि अली को बिना आग जलाये कल की रात पहाड़ी की सबसे ऊँची चोटी पर बितानी थी , अगर वो ऐसा कर लेता तो उसे एक बड़ा इनाम मिलता और अगर नहीं कर पाता तो उसे मुफ्त में काम करना होता . अपने काम, अपने कथन और अपने मित्र के प्रति सच्चे रहिये…. अली जब दुकान से निकला तो उसे एहसास हुआ कि वाकई कड़ाके की ठण्ड पड़ रही है और बर्फीली हवाएं इसे और भी मुश्किल बना रही हैं . उसे मन ही मन लगा कि शायद उसने ये शर्त कबूल कर बहुत बड़ी बेवकूफी कर दी है . घबराहट में वह तुरंत अपने दोस्त आदिल के पास पहुंचा और सारी बात बता दी . आदिल ने कुछ देर सोचा और बोला , “ चिंता मत करो , मैं तुम्हारी मदद करूँगा . कल रात , जब तुम पहाड़ी पर होगे तो ठीक सामने देखना मैं तुम्हारे लिए सामने वाली पहाड़ी पर सारी रात आग जल कर बैठूंगा . तुम आग की तरफ देखना और हमारी दोस्ती के बारे में सोचना ; वो तुम्हे गर्म रखेगी। और जब तुम रात बिता लोगे तो बाद में मेरे पास आना , मैं बदले मे...

लघु कहानी

अक्ल के अंधे प्रवीण कुमार के एक मित्र हैं--- हितैषी राय . कुछ-एक लोगों के साथ मिलकर उन्होंने एक कल्याणकारी संस्था बनायी. संस्था का नाम रखा -- 'जन कल्याण.' हालांकि उनकी संस्था छोटी है , लेकिन उनकी भावी योजनाएं बड़ी हैं. फिलहाल उनकी योजना एक अनाथालय भवन निर्माण की है . एक दिन हितैषी राय दान लेने के लिए प्रवीण के पास गए. बोले- "प्रवीण जी, आप मेरे परम मित्र हैं. हमारे शुभ कार्य अनाथालय के भवन-निर्माण के लिए दिल खोलकर दान दीजिए और दान देने के लिए अपने सेठ मित्रों के नाम भी सुझाइए." दान देने के बाद प्रवीण कुमार ने नगर के उद्योगपति गिरधारी लाल का नाम सुझाया और बात-बात में यह भी बता दिया -- "गिरधारी लाल ऎसी तबियत के शख्स हैं कि दान देने के लिए उन्हें किसी मित्र के सिफारिशी ख़त की ज़रूरत नहीं पड़ती. दूसरे दिन ही हितैषी राय अपने कुछ साथियों के साथ दान लेने के लिए गिरधारी लाल के पास पहुंच गये. रास्ते में उन्होंने अपने सथियों को सावधान कर दिया --'हमें गिरधारी लाल से यह कहने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है कि दान लेने के लिए प्रवीण कुमार ने हमे आपके पास भेजा है. ख...

लघुकथाएं

अपने–अपने सन्दर्भ इस भयंकर ठंड में भी वेद बाबू दूध वाले के यहाँ मुझसे पहले बैठे मिले। मंकी कैप से झाँकते उनके चेहरे पर हर दिन की तरह धूप–सी मुस्कान बिखरी थी। लौटते समय वेदबाबू को सीने में दर्द महसूस होने लगा। वे मेरे कंधे, पर हाथ मारकर बोले–‘‘जानते हो, यह कैसा दर्द है?’’मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना मद्धिम स्वर में बोले–‘‘यह दर्दे–दिल है। यह दर्द या तो मुझ जैसे बूढ़ों को होता है या तुम जैसे जवानों को।’’ मैं मुस्करा दिया। धीरे–धीरे उनका दर्द बढ़ने लगा। ‘‘मैं आपको घर तक पहुँचा देता हूँ।’’ मोड़ पर पहुँचकर मैंने आग्रह किया–‘‘आज आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही है।’’ ‘‘तुम क्यों तकलीफ करते हो? मैं चला जाऊँगा। मेरे साथ तुम कहाँ तक चलोगे? अपने वारण्ट पर चित्रगुप्त के साइन होने भर की देर है।’’ वेद बाबू ने हंसकर मुझको रोकना चाहा। मेरा हाथ पकड़कर आते हुए वेदबाबू को देखकर उनकी पत्नी चौंकी–‘‘लगता है आपकी तबियत और अधिक बिगड़ गई है? मैंने दूध लाने के लिए रोका था न?’’ ‘‘मुझे कुछ नहीं हुआ। यह वर्मा जिद कर बैठा कि बच्चों की तरह मेरा हाथ पकड़कर चलो। मैंने इनकी बात मान ली।’’ वे हँसे उनकी पत्नी...

लघुकथाएं

मुखौटा नेताजी को चुनाव लड़ना था। जनता पर उनका अच्छा प्रभाव न था। इसके लिए वे मुखौटा बेचने वाले की दूकान में गए। दूकानदार ने भालू, शेर, भेडिए,साधू–संन्यासी के मुखौटे उसके चेहरे पर लगाकर देखे। कोई भी मुखौटा फिट नहीं बैठा। दूकानदार और नेताजी दोनों ही परेशान। दूकानदार को एकाएक ख्याल आया। भीतर की अँधेरी कोठरी में एक मुखौटा बरसों से उपेक्षित पड़ा था। वह मुखौटा नेताजी के चेहरे पर एकदम फिट आ गया। उसे लगाकर वे सीधे चुनाव–क्षेत्र में चले गए। परिणाम घोषित हुआ। नेताजी भारी बहुमत से जीत गए। उन्होंने मुखौटा उतारकर देखा। वे स्वयं भी चौंक उठे–वह इलाके के प्रसिद्ध डाकू का मुखौटा था। >>>>>>>>>>>>>>>>>> दूसरा सरोवर एक गाँव था। उसी के पास में था स्वच्छ जल का एक सरोवर। गाँव वाले उसी सरोवर का पानी पीते थे। किसी को कोई कष्ट नहीं था। सब खुशहाल थे। एक बार उजले–उजले कपड़े पहनकर एक आदमी गाँव में आया। उसने सब लोगों को मुखिया की चौपाल में इकट्ठा करके बहुत अच्छा भाषण दिया। उसने कहा–‘‘सरोवर आपके गाँव में एक मील की दूरी पर है। आप लोगों को पानी ल...