♻️वाक्यांश के लिए एक शब्द ♻️ [कुल-50]❤️

♻️वाक्यांश के लिए एक शब्द ♻️
 [कुल-50]❤️

1.जंगल में फैलनेवाली आग - दावाग्नि
2.समुद्र में लगने वाली आग - बड़वानल
3.जो सपना दिन में देखा जाए - दिवास्वप्न
4.जिसे कठिनाई से जाना जा सके - दुर्ज्ञेय 
5.जो कठिनाई से समझ में आता हो - दुर्बोध
6.अर्द्धरात्रि का समय - निशीथ 
7.रंगमंच पर पर्दे के पीछे का स्थान - नेपथ्य 
8.आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेने वाला - नैष्ठिक
9.नाटक का पर्दा गिरना - पटाक्षेप 
10.रंगमंच का पर्दा - यवनिका
11.जो उत्तर न दे सके - निरुत्तर
12.केवल दूध पर जीवित रहने वाला - पयोहारी
13.शरणागत की रक्षा करने वाला - प्रणतपाल
14.एक बार कही हुई बात को दोहराते रहना - पिष्टपेषण
15.जो पूछने योग्य हो - पृष्टव्य 
16.प्रमाण द्वारा सिद्ध करने योग्य - प्रमेय 
17.रात का भोजन - ब्यालू/ रात्रिभोज
18.जिसकी आंखें मगर जैसी हो - मकराक्ष
19.जिस स्त्री की आंखें मछली के समान हो - मीनाक्षी 

20.जिस पुरुष की आंखें मछली के समान हो - मीनाक्ष 
21.हरिण के नेत्रों-सी आंखों वाली - मृगनयनी
22.मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा - मुमुक्षा 
23.मरने की इच्छा - मुमूर्षा
24.युद्ध करने की इच्छा - युयुत्सा
25.सृजन करने की इच्छा - सिसृक्षा
26.खुले हाथ से दान देने वाला - मुक्तहस्त
27.माता की हत्या करने वाला - मातृहन्ता
28.जिसने मृत्यु को जीत लिया हो - मृत्युंजय
29.वह कन्या जिसका विवाह करने का वचन दे दिया गया हो -  वाग्दत्ता
30.व्याकरण का ज्ञाता - वैयाकरण
31.शत्रु का नाश करने वाला - शत्रुघ्न
32.जिसका कोई आदि और अंत न हो - शाश्वत
33.जो सब कुछ जानता हो - सर्वज्ञ
34.सब कुछ पाने वाला - सर्वलब्ध 
35.जो गुप्त रूप से निवास करता हो - छद्मवासी
37.दिन और रात के बीच का समय - गोधूलि वेला
38.जिसका अर्थ स्वयं ही सिद्ध है - सिद्धार्थ
39.वह व्यक्ति जिसका ज्ञान अपने ही स्थान तक सीमित है - कूपमंडूक
40.भोजन करने के बाद का बचा हुआ अन्न/जूठन - उच्छिष्ट
41.जिसे सूँघा न जा सके - आघ्रेय
42.वह कवि जो तत्काल कविता कर सके - आशुकवि
43.जिसका कोई शत्रु न जन्मा हो - अजातशत्रु
44.जो इंद्रियों (गो) द्वारा न जाना जा सके - अगोचर
45.किसी बात को अत्यधिक बढाकर कहना - अतिशयोक्ति
46.जिसे बुलाया न गया हो - अनाहूत 
47.जो सबके मन की बात जनता हो - अंतर्यामी
48.जो मापा न जा सके - अपरिमेय
49. किसी वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा - अभीप्सा
50.आवश्यकता से अधिक धन का ग्रहण न करना - अपरिग्रह

स्रोत पुस्तक - राघव प्रकाश।

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