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राजा भोज और सत्य

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वृद्ध ने कहा- “राजन मैं सत्य हूँ और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ। मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख!” राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए। राजा भोज बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत, तीर्थ, कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुँए, बगीचे आदि भी बनवाए थे। राजा के मन में इन कार्यों के कारण अभिमान आ गया था। वृद्ध  पुरुष के रूप में आये सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए। वहाँ जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ, सब एक-एक करके सूख गए, बागीचे बंज़र भूमि में बदल गए । राजा इतना देखते ही आश्चर्यचकित रह गया।। फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया। सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ, वह खँडहर में बदल गया। वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ, तीर्थ, कथा, पूजन, दान आदि के लिए बने स्थानों, व्यक्तियों, आदि चीजों को ज्यों ही छुआ, वे सब राख हो गए।।राजा यह सब देखकर विक्षिप्त-सा हो गया। सत्य ने कहा-“ राजन! यश की इच्छा के लिए जो कार्य किये जाते हैं, उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है, धर्म का निर्वहन नहीं।। सच्ची सदभावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्यभाव ...

मैडम मैरी क्युरी का प्रेरणादायी जीवन

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भारत में एवं विश्व के अनेक देशो में अनगिनत महिलाओं ने अपनी उपलब्धियों से अपने देश का नाम रौशन किया है। कुछ महिलाएं अपने कार्य तथा अपनी सोच के कारण हर किसी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। जनहित और राष्ट्र कल्याण के लिए अपने प्राणों की भी परवाह न करने वाली  मैडम क्युरी  समस्त विश्व के लिए एक आर्दश उदाहरण हैं। लिंग और सिमाओं से परे हर किसी के लिए  मैरी क्युरी  प्रेरणा स्रोत हैं। मैडम क्युरी मैडम क्युरी एक रशियन महिला थीं। उनका  जन्म  वारसा (पोलैंड) में 7 नवंबर 1867 को हुआ था। माता पिता सुयोग्य अध्यापक थे। माँ अध्यापिका तथा पिता प्रोफेसर थे। माता-पिता की शिक्षाओं का असर मैरी क्युरी पर भी पड़ा। वे बचपन से ही पढाई लिखाई में तेज थीं। माता पिता के प्रोत्साहन तथा पढाई में रुची के कारण वे सभी प्रारंभिक कक्षाओं में अवल्ल रहीं। परंतु बचपन में ही घर की तंग आर्थिक स्थिति के कारण उन्हे अपनी बहन के पास पढने के लिए पेरिस जाना पड़ा। आर्थिक तंगी का वास्तविक कारण था, पिता का शासन की शोषण नीति के विरुद्ध आवाज उठाना। मैरी के पिता देशभक्त थे उन्हे जनता के प्रति हो रही नाइंसाफी पस...

ज़मीन – एक कहानी

ज़मीन – एक कहानी एक गॉव में एक किसान रहता था ! उसका नाम नटखटराम था ! उसका स्वभाव बहुत ही खुश मिजाज़ था. वह हमेशा दूसरों के भले के बारे में सोचता था उसका छोटा सा परिवार था l जिसमें उसके पास दो लड़किया तथा एक लड़का था ,तथा थोड़ी सी उसके पास ज़मीन थी जिससे वह अपने घर का खर्च चलाया करता था धीरे धीरे समय आगे बदलता जाता है और उसके बच्चे बढ़े हो जाते हैं l आज उसकी बढ़ी बेटी कि शादी के लिये रिश्ता आया है सभी घर में बहुत खुश हैं ,सभी के चेरहे पर खुशी है परन्तु नटखटराम का चेहरा आज चिंता में है नटखटराम के चिंता का विषय लड़के के पक्ष से दहेज की माँग है ,परन्तु उसके पास केवल तीन बीघा ज़मीन है ,जिसमें से वह कुछ ज़मीन बेच कर अपनी बढ़ी लड़की कि शादी करेगा कुछ ज़मीन बेच कर छोटी लड़की कि शादी करेगा . धीरे धीरे शादी की तिथि नजदीक आ जाती है आज उसको अपनी ज़मीन बेचनी है ,जिस को वो कभी नहीं बेच न चाहता था l                            शादी की तैयारी चल रही है घर में मंगलमय गीत गाये जा रहे...

श्रवण कुमार

श्रवण कुमार का नाम इतिहास में मातृभक्ति और पितृभक्ति के लिए अमर रहेगा। उसके माँ-बाप बूढ़े थे, अंधे थे। वह दिन भर उनकी सेवा करता।वह कभी काम के कारण शिकायत न करता।उसने विवाह किया। उसकी पत्नी उसके बूढे माता.पिता का तिरस्कार करती थी। वह नाराज़ होकर घर छोड़कर चली जाती है। फिर भी श्रवण पत्नी के लिएमाँ-बाप को नहीं छोड़ता।एक दिन श्रवण के माँ-बाप तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छा प्रकट करते हैं। उन दिनों रेल या बस नहीं थी। देखो कैसे श्रवण उन्हें तीर्थ पर ले जाता है।,बहुत समय पहले श्रवण कुमार नाम का एक बालक था। श्रवण के माता-पिता अंधे थे। श्रवण अपने माता-पिता को बहुत प्यार करता। उसकी माँ ने बहुत कष्ट उठाकर श्रवण को पाला था। जैसे-जैसे श्रवण बड़ा होता गया, अपनेमाता-पिता के कामों में अधिक से अधिक मदद करता।सुबह उठकर श्रवण माता-पिता के लिए नदी से पानी भरकर लाता। जंगल से लकड़ियाँ लाता। चूल्हा जलाकर खाना बनाता। माँ उसे मना करतीं-”बेटा श्रवण, तू हमारे लिए इतनी मेहनत क्यों करता है? भोजन तो मैं बना सकती हूँ। इतना काम करके तू थक जाएगा।“”नहीं माँ, तुम्हारे और पिता जी का काम करने में मुझे जरा भी थकान नहींहोती। मुझे ...

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का नाम तो तुमने सुना ही होगा। वे महान दार्शनिक और समाज सेवी थे।बचपन में उनका नाम नरेंद्र था। नरेंद्र पशु-पक्षियों से प्यार करते थे। जरूरतमंद लोगों की मदद करते थे। हनुमान जी की कहानी सुनकर उन्होंने सोचा कि वे भी ताकतवर बनेंगे। वे जानते थे कि जब तक लोग ताकतवर नहीं होंगे तब तक दूसरों की सेवा नहीं कर सकेंगे। आओ पढ़ें कि वेजरूरतमंद लोगों की मदद कैसे करते थे।,”ठहर तो, अभी तुझे मजा चखाता हूँ।“ बालक नरेंद्र अपने पालतू खरगोश के पीछे दौड़ रहा था। खरगोश भागकर नरेंद्र की माँ भुवनेश्वरी की गोद में छिप गया।”अच्छा तो तू मेरी माँ की गोद में छिपा बैठा है। मेरे खरगोश को अपनी गोद से उतार दो माँ। मैं इसके साथ खेलूंगा।“भुवनेश्वरी हॅंस पड़ीं। खरगोश को गोदी से उतार उन्होंने बेटे का माथा चूम लिया। नरेंद्र को पशु-पक्षियों से बहुत प्यार था। नरेंद्र के पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता शहर के मशहूर वकील थे। नरेंद्र माता-पिता की आँखों का तारा था। बेटे की रूचि जानकर पिता ने नरेंद्र के लिए तरह-तरह के पशु-पक्षी मॅंगा रखे थे। नरेंद्र उन्हें दाना खिलाता, उनके साथ खेलता।नरेंद्र की माँ रोज भगवान की पूजा करतीं। ...

सम्राट अशोक

सम्राट अशोक मगध के राजा थे। वे पास-पड़ोस के सभी राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लेना चाहते थे। इस कोशिश में उन्होंने कई राज्यों को जीतकर मगध के अधीन कर लिया था लेकिनकलिंग को जीतना आसान नहीं था। चार साल तक युद्ध हुआ, लेकिन कलिंग के राजा बहादुरी से लड़ रहे थे और सम्राट अशोक जीत नहीं पाए।एक दिन खबर मिली कि कलिंग के राजा युद्ध में मारे गए। फिर भी अशोक की सेना कलिंग के दुर्ग के अंदर प्रवेश नहीं कर सकी।अचानक दुर्ग का फाटक खुला और कलिंग की राजकुमारी पद्मा सैनिक की वेशभूषा में आकर अशोक से कहती हैं- हमसे लड़ो। हमें मारोगे तभी किले के अंदर जा सकते हो। सम्राट अशोक कहते हैं- यह कैसे हो सकता है? क्या मैं स्त्रियों पर हथियार चलाऊंगा?,अशोक सम्राट बिंदुसार के पुत्र थे। पिता की मुत्यु के बाद अशोक मगधके सिंहासन पर बैठे। अशोक बहुत वीर राजा थे। वे अपने राज्य को दूर-दूर तक फैलाना चाहते थे। सम्राट अशोक ने कई राजाओं को हराकर, अपने राज्य का विस्तार किया। उन दिनों कलिंग का राज्य भी मगध राज्य के समान प्रसिद्ध था।कलिंग वासी बहुत वीर थे। वे अपने राजा और अपनी जन्मभूमि से बहुत प्यार करते थे। अपना राज्य बढ़ाने के लिए सम...

अधिकार

यह कहानी महात्मा गौतम बुद्ध के बचपन की है। बालक गौतम का हृदय कोमलथा। उसमें जीव-जंतुओं के प्रति करूणा थी। उसका चचेरा भाई देवदत्त क्रूर था। उसे जानवरों का शिकार करने में आनंद आता था। एक बार देवदत्त ने हंस पक्षी को मार गिराया और गौतम ने उसकी जान बचाई। देवदत्त कहता है- ”यह मेरा शिकार है। मुझे दे दो।“ गौतम कहता है-”नहीं ! मैंने इसकी जान बचाई, यह मेराहै।“ देखो कौन जीतता है।,सुबह का समय था। ठंडी-ठंडी हवा बह रही थी। मगध के राजकुमार सिद्धार्थ राजमहल के बाग में घूम रहे थे। राजकुमार को लोग प्यार से गौतम पुकारते थे। उनके साथ उनका चचेरा भाई देवदत्त भी था। गौतम बहुत दयालु स्वभाव के थे। वह पशु-पक्षियों को प्यार करते, पर देवदत्त कठोर स्वभाव का था। पशु-पक्षियों के शिकार में उसे बड़ा आनंद मिलता।बाग बहुत सुंदर था। तालाब में कमल खिले हुए थे। फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मॅंडरा रही थीं। पेड़ों पर चिड़ियाँ चहचहा रही थीं। राजकुमार गौतम को देखकर बाग के खरगोश और हिरन उनके चारों ओर जमा होगए। गौतम ने बड़े प्यार से उन्हें हरी-हरी घास खिलाई। उसी बीच देवदत्त ने एक तितली पकड़ उसके पंख काट डाले। गौतम को बहुत दुख हुआ-”यह...