हिंदी कविता
नादाँ है वो जो मंजिलों पर नजर टिकाये हुए है | उन्हें क्या मालूम रास्तों ने क्या गुल खिलाये हुए है || ज़िंदगी नाम है ज़िंदादिली से जीने का फिर भी लोग बहुत कुछ पाने की रट लगाये हुए है || कभी ख़ुशी कभी गम ज़िंदगी के साये है फिर भी हमेशा खुश रहने की ज़िद लगाये हुए है || यहां दिल सिर्फ भावनाओ से जीते जा सकते है फिर भी लोग तोहफों की प्रथा चलाये हुए है || मानो तो सभी अपने है वरना सभी पराये है फिर भी न जाने क्यों लोग अपने पराये का भेद बनाए हुए है || कहते है सब मालूम है की ज़िंदगी को कैसे जिया जाए फिर भी दिखावे के भ्रम में भरमाये हुए है || एक ख़ुशी की चाहत में इतने पगलाए हुए है की झूठ बोलते खुद को झुठलाए हुए है || भरे बाजार में बोलना आता है यहां लोगो को पर खुद से नजरें मिलाने पर घबरेए हुए है || यह सब देख समझ में नहीं आता कि ज़िंदगी क्या है इसे ज़ीने के लिए यह आये है या दिखने के लिए आये हुए है || नादाँ है वो जो मंजिलों पर नजर टिकाये हुए है | उन्हें क्या मालूम रास्तों ने क्या गुल खिलाये हुए है ||