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हिंदी कविता

नादाँ है वो जो मंजिलों पर नजर टिकाये हुए है | उन्हें क्या मालूम रास्तों ने क्या गुल खिलाये हुए है || ज़िंदगी नाम है ज़िंदादिली से जीने का फिर भी लोग बहुत कुछ पाने की रट लगाये हुए है || कभी ख़ुशी कभी गम ज़िंदगी के साये है फिर भी हमेशा खुश रहने की ज़िद लगाये हुए है || यहां दिल सिर्फ भावनाओ से जीते जा सकते है फिर भी लोग तोहफों की प्रथा चलाये हुए है || मानो तो सभी अपने है वरना सभी पराये है फिर भी न जाने क्यों लोग अपने पराये का भेद बनाए हुए है || कहते है सब मालूम है की ज़िंदगी को कैसे जिया जाए फिर भी दिखावे के भ्रम में भरमाये हुए है || एक ख़ुशी की चाहत में इतने पगलाए हुए है की झूठ बोलते खुद को झुठलाए हुए है  || भरे बाजार में बोलना आता है  यहां लोगो को पर खुद से नजरें मिलाने पर घबरेए हुए है || यह सब देख समझ में नहीं आता कि ज़िंदगी क्या है इसे ज़ीने के लिए यह आये है या दिखने के लिए आये हुए है || नादाँ है वो जो मंजिलों पर नजर टिकाये हुए है | उन्हें क्या मालूम रास्तों ने क्या गुल खिलाये हुए है ||

Hindi kavita- हिंदी कविता

माना हालात प्रतिकूल हैं, रास्तों पर बिछे शूल हैं रिश्तों पे जम गई धूल है पर तू खुद अपना अवरोध न बन तू उठ…… खुद अपनी राह बना……………………….. माना सूरज अँधेरे में खो गया है…… पर रात अभी हुई नहीं, यह तो प्रभात की बेला है तेरे संग है उम्मीदें, किसने कहा तू अकेला है तू खुद अपना विहान बन, तू खुद अपना विधान बन……………………….. सत्य की जीत हीं तेरा लक्ष्य हो अपने मन का धीरज, तू कभी न खो रण छोड़ने वाले होते हैं कायर तू तो परमवीर है, तू युद्ध कर – तू युद्ध कर……………………….. इस युद्ध भूमि पर, तू अपनी विजयगाथा लिख जीतकर के ये जंग, तू बन जा वीर अमिट तू खुद सर्व समर्थ है, वीरता से जीने का हीं कुछ अर्थ है तू युद्ध कर – बस युद्ध कर……………………….. – अभिषेक मिश्र ( Abhi ) हे वीर पुरुष हे वीर पुरुष, पुरुषार्थ करो तुम अपना मान बढ़ाओ न ……. अपनी इच्छा शक्ति के बल पर उनको जवाब दे आओ न ……………………….. वे वीर पुरुष होते हीं नहीं जो दूजों को तड़पाते हैं वे वीर पुरुष होते सच्चे जो दूजों का मान बढ़ाते हैं……………………….. इतनी जल्दी थक जाओ नहीं चलना तुमको अभी कोसों है पांडव तो अब भी पाँच हीं हैं पर कौरव अब भी सौ-स