जिंदगी जरा हट के
आज भी जब कभी अपने अतीत के पन्नो को टटोलता हूँ, तो कुछ पन्नो को मैं बड़े प्यार से खोलता हूँ इन पन्नो से मेरी साँसे जुडी हैं इन्ही पे मेरी शरारते लिखी हैं ! सुबह हुई नहीं कि दिमाग़ मे शरारत का मीटर भागना शुरू! शरारत मे मैं अपने मोहल्ले का था गुरु! घर हो या बाहर स्कूल हो या बाजार मैं शैतानी के मौके तलाशता किसी के कपड़ो पे स्याही गिराता तो चोरी से किसे का नाश्ता खा जाता ! भाई-बहन की कापियाँ बड़ी चालाकी से छुपा देता वो ढूँढ़ कर परेशन होते मैं मन ही मन हँसता बाद मे उन्हे जब लाकर देता बदले मे उनकी पेंसिल ले लेता ! छुटकी के जन्म दिन पर माँ बड़ा सा केक लाई थी बड़े चाकू से काटने को उसने आस लगाई थी, केक काटने के वक़्त उसका मुँह खुला रह गया था, क्योंकि आधा केक मैं पहले ही चट कर गया था! स्कूल मे एक अकडू बच्चे के बस्ते मे रख दिया था साँप नकली हो गयी हालत उसकी पतली साँप-साँप चिल्लाकर भागा उस दिन से वो हो गया सीधा! और वो पड़ोस के नंदू को एक दिन बरफी खिलाई थी दो बरफी के बीच मे मैंने मिर्ची की परत लगाई थी जैसे ही उसने एक टुकड़ा अपने मुँह मे डाला था , थू-थू कर के व